मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा मोड़ तब आया जब लंबे समय बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे शनिवार को एक साथ सार्वजनिक मंच साझा करेंगे। यह 'विजय रैली' मुंबई के वर्ली इलाके में एनएससीआई डोम में आयोजित की जाएगी, जहां ये दोनों नेता महाराष्ट्र सरकार की तीन-भाषा नीति को वापस लेने की खुशी में लोगों को संबोधित करेंगे।
क्या है मुद्दा?
महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल में एक सरकारी आदेश के तहत कक्षा एक से पांच तक हिंदी भाषा को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने की घोषणा की थी। इसके खिलाफ राज्यभर में विरोध शुरू हो गया। शिवसेना (उद्धव गुट) और मनसे (राज ठाकरे की पार्टी) ने इस आदेश को हिंदी थोपी जा रही है बताकर जलाकर विरोध किया। राजनीतिक दबाव और जनभावनाओं को देखते हुए सरकार ने 29 जून को यह आदेश वापस ले लिया और हिंदी को वैकल्पिक भाषा बना दिया।
अब क्या हो रहा है?
उद्धव ठाकरे (शिवसेना यूबीटी) और राज ठाकरे (मनसे) अब इसे जनता की जीत मानते हुए शनिवार को विजय उत्सव मना रहे हैं। यह आयोजन वर्ली के एनएससीआई डोम में होगा, जो आदित्य ठाकरे का विधानसभा क्षेत्र भी है। इस मौके पर कोई पार्टी झंडा, चुनाव चिह्न या झंडा इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, लेकिन इस एकता का राजनीतिक संदेश साफ है। दोनों ठाकरे भाई आखिरी बार 2005 में मालवण उपचुनाव के दौरान एक साथ मंच पर आए थे। उसी साल राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर 2006 में अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई थी।
कौन-कौन शामिल हो रहा है?
एनसीपी (शरद पवार गुट) के नेता सुप्रिया सुले या जीतेन्द्र आव्हाड कार्यक्रम में शामिल होंगे। कांग्रेस इस मंच पर शामिल नहीं होगी, लेकिन उसने मराठी भाषा के समर्थन में अपनी वैचारिक एकजुटता जताई है। इसके साथ ही साहित्य, कला, नाटक और सांस्कृतिक क्षेत्रों के लोग भी आमंत्रित किए गए हैं।
रैली के राजनीतिक मायने
लोकसभा चुनाव 2024 में शिवसेना यूबीटी ने 20 सीटें जीती थीं, लेकिन मनसे पूरी तरह खाली हाथ रही। निकाय चुनाव खासकर मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के पहले यह एकजुटता उनके लिए राजनीतिक ताकत दिखाने का मंच बन सकती है।
ठाणे में जश्न का माहौल
रैली की पूर्व संध्या पर ठाणे में मनसे और शिवसेना यूबीटी कार्यकर्ताओं ने मिलकर लड्डू बांटे। ढोल-ताशों के साथ लोगों को मिठाइयां बांटी गईं और सड़कों पर बड़े-बड़े पोस्टरों में उद्धव और राज ठाकरे साथ दिखे। वहीं कोली समाज ने ठाणे के आई एकविरा मंदिर में विशेष पूजा की और ठाकरे बंधुओं की एकता की प्रार्थना की। यह आयोजन सिर्फ एक भाषायी मुद्दे पर नहीं, बल्कि मराठी अस्मिता, क्षेत्रीय पहचान और राजनैतिक समीकरणों का भी प्रतीक बनता जा रहा है। उद्धव और राज ठाकरे का एक मंच पर आना आगामी चुनावों से पहले महाराष्ट्र की राजनीति में नई करवट ला सकता है।
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