राजस्थान पुलिस की एंटी गैंगस्टर टास्क फोर्स (AGTF) ने 15 साल से फरार कुख्यात अपराधी प्रवीण उर्फ लाला को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से गिरफ्तार कर लिया। यह अपराधी 2010 में भरतपुर के कामां में हुए जघन्य हत्याकांड का मुख्य आरोपी था। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने उस पर 5 लाख रुपये का इनाम घोषित किया था। प्रवीण पिछले 15 सालों से पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को चकमा दे रहा था। इस गिरफ्तारी को पुलिस की अब तक की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक माना जा रहा है।
जानें क्या था 2010 का हत्याकांड
29 जुलाई 2010 को भरतपुर के कामां में तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश रामेश्वर दयाल रोहिल्ला के परिवार पर हमला हुआ था। पुरानी रंजिश के चलते प्रवीण उर्फ लाला, परसराम, डालचंद और बबलू ने जज के पिता खेमचंद रोहिल्ला और भाई गिर्राज प्रसाद की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस हमले में जज के भाई एडवोकेट राजेंद्र प्रसाद रोहिल्ला, प्रमिला और अंजू भी घायल हुए थे। इस सनसनीखेज मामले का मुख्य आरोपी प्रवीण घटना के बाद से ही फरार था।
सीबीआई ने जाँच अपने हाथ में ले ली थी
हत्या की गंभीरता को देखते हुए, राजस्थान पुलिस ने प्रवीण पर 25,000 रुपये का इनाम रखा था, लेकिन वह पकड़ा नहीं जा सका। मार्च 2011 में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने जाँच सीबीआई को सौंप दी। सीबीआई ने प्रवीण, परसराम, डालचंद और पदम सिंह को दोषी ठहराया। डालचंद और पदम सिंह 2013 में पकड़े गए, लेकिन प्रवीण और परसराम 15 साल तक फरार रहे। सीबीआई ने दोनों पर 5-5 लाख रुपये का इनाम घोषित किया था।
जानिए कैसे पकड़ा गया अपराधी
एजीटीएफ के अतिरिक्त महानिदेशक दिनेश एम.एन. के निर्देशन में, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सिद्धांत शर्मा और राजेश मलिक के नेतृत्व में एक विशेष टीम का गठन किया गया। इसमें हेड कांस्टेबल महेंद्र कुमार, राम अवतार, अभिमन्यु कुमार सिंह, पुलिस निरीक्षक सुभाष सिंह तंवर, हेड कांस्टेबल राधा मोहन, कमल सिंह और कांस्टेबल रविंद्र सिंह शामिल थे। डेढ़ साल की कड़ी मेहनत और मुखबिर से मिली सूचना के आधार पर 19 अगस्त 2025 को टीम ने गाजियाबाद में छापा मारा। प्रवीण फर्जी दस्तावेजों के साथ छिपा हुआ था। टीम ने संकरी गलियों और लाखों की भीड़ में रोज़ाना 20 किलोमीटर घूमकर उसके ठिकाने का पता लगाया। स्थानीय पुलिस की मदद से शुक्रवार सुबह 4 बजे उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
पुलिस की मेहनत रंग लाई
इस ऑपरेशन में हेड कांस्टेबल महेंद्र कुमार, राम अवतार और अभिमन्यु कुमार सिंह की अहम भूमिका रही। पूरी टीम की मेहनत से 15 साल पुराने इस बड़े मामले को सुलझाने में सफलता मिली।
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