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वीडियो में जाने क्या सच में जयगढ़ के तहखानों में छिपा है एक शापित खजाना? जिसकी आज भी आत्माएं कर रही हैं पहरेदारी

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राजस्थान की राजधानी जयपुर के पास अरावली की पहाड़ियों पर स्थित जयगढ़ किला इतिहास, वास्तुकला और रहस्य का अद्भुत संगम है। महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा 1726 में निर्मित यह किला रणनीतिक रूप से आमेर किले की रक्षा के लिए बनाया गया था। लेकिन इस भव्य किले के भीतर एक ऐसा रहस्य दफन है, जिसे लेकर वर्षों से सवाल उठते रहे हैं — क्या जयगढ़ किले में भूतिया खजाना छिपा है? और क्या वह खजाना आज भी किसी अलौकिक शक्ति के पहरे में है?


खजाने की कहानी: अफगानिस्तान से लेकर जयगढ़ तक
कहानी की शुरुआत होती है 18वीं शताब्दी से, जब भारत मुगलों और राजपूतों के बीच सत्ता का संघर्ष चरम पर था। ऐसा माना जाता है कि मुगल सम्राट औरंगज़ेब के निधन के बाद जब उनके उत्तराधिकारी कमजोर पड़ गए, तो राजपूतों ने अवसर का लाभ उठाकर कई मुगल खज़ानों को अपने किलों में छिपा लिया।लोककथाओं के अनुसार, एक विशाल खजाना जो अफगानिस्तान की लड़ाइयों और दिल्ली दरबार की लूट का हिस्सा था, उसे जयगढ़ के एक गुप्त सुरंग के ज़रिए लाया गया और किले के नीचे बने अंधेरे तहखानों में छिपा दिया गया। यही खजाना आज जयगढ़ का भूतिया खजाना कहलाता है।

खजाने की खोज और इंदिरा गांधी का हस्तक्षेप
1976 में एक ऐतिहासिक मोड़ आया जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर जयगढ़ किले में आयकर विभाग और सेना ने खजाने की तलाश शुरू की। यह खोज पूरी तरह गुप्त रूप से की गई और किले को आमजन से अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया।
कहा जाता है कि खजाने की तलाश में किले के गहरे तहखानों की खुदाई की गई, लेकिन सरकार की ओर से कोई स्पष्ट जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई। न खजाने का मिलना स्वीकार किया गया, न नकारा गया। यही रहस्य और चुप्पी इस कहानी को और भी रहस्यमयी और भूतिया बनाते हैं।

भूतिया पहलू: क्यों कहते हैं लोग इसे “शापित खजाना”?
कई स्थानीय लोग और गाइड बताते हैं कि खजाने के आसपास कई अलौकिक घटनाएं दर्ज की गई हैं। किले के कुछ खास हिस्सों में, विशेष रूप से तहखानों और सुरंगों के पास, कई लोगों ने अजीब सी ठंडी हवाएं, अनजानी परछाइयाँ, और कदमों की आहटें महसूस की हैं।यह भी माना जाता है कि खजाने की रक्षा करने वाली आत्माएं अभी भी किले में भटकती हैं। कुछ गवाहों का कहना है कि जब कोई उस क्षेत्र के करीब जाता है जहां खजाना छिपा माना जाता है, तो उसे सिरदर्द, चक्कर, उलझन या डर का अनुभव होता है।

आख़िर क्यों नहीं मिला खजाना आज तक?
अगर खजाना वाकई मौजूद था, तो क्या वह बरामद कर लिया गया और इसे गुप्त रखा गया? या फिर यह सब केवल लोककथाओं और भय की उपज है?कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राजनीतिक कारणों से खजाने के मिलने की बात को गुप्त रखा गया होगा। वहीं कुछ रहस्य प्रेमी शोधकर्ता मानते हैं कि खजाना कभी अस्तित्व में था ही नहीं, बल्कि ये अफवाहें लोगों को डराकर किले के कुछ हिस्सों से दूर रखने के लिए फैलाई गई थीं।

जयगढ़ किले के तहखाने: बंद दरवाजे और अनजाने रास्ते
जयगढ़ किले में आज भी कई ऐसे तहखाने और गलियारे हैं जो आम पर्यटकों के लिए खुले नहीं हैं। इन बंद दरवाजों और सुरंगों के पीछे ही खजाना छिपा होने की संभावना जताई जाती है।एक और दिलचस्प बात यह है कि आमेर किले और जयगढ़ किले को जोड़ने वाली एक गुप्त सुरंग भी है, जो कभी आपातकाल में राजपरिवार के बचाव के लिए इस्तेमाल होती थी। कुछ कहते हैं कि इसी रास्ते से खजाना लाया गया था।

पर्यटन, रोमांच और डर का संगम
आज जयगढ़ किला एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जहां लोग विशाल तोप 'जयवाना', खूबसूरत जलाशय, और राजपूताना वास्तुकला को देखने आते हैं। लेकिन कुछ जिज्ञासु पर्यटक, इतिहास प्रेमी और पैरानॉर्मल खोजकर्ता विशेष रूप से यहां सिर्फ इस रहस्य को महसूस करने आते हैं — क्या जयगढ़ किला वास्तव में भूतिया है?

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