अमेरिका चीन के साथ अपने व्यापार युद्ध को बढ़ा रहा है. लेकिन उसने दक्षिण कोरिया और जापान जैसे सहयोगियों पर भी रेसिप्रोकल टैरिफ़ लगाया है.
रिपोर्टों के मुताबिक़ इससे उत्तर-पूर्व एशियाई देशों के बीच लंबे समय से रुका हुआ मुक्त व्यापार समझौता फिर से चर्चा में आ गया है.
पिछले महीने चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के वाणिज्य मंत्रियों ने आर्थिक सहयोग के संभावित उपायों पर चर्चा करने के लिए छह साल में पहली बार मुलाक़ात की थी.
इसके बाद तीनों देश त्रिपक्षीय फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट पर बातचीत को बढ़ावा देने के लिए, मिलकर काम करने पर सहमत हुए हैं.
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मुक्त व्यापार समझौता दो या दो से अधिक देशों के बीच एक ऐसा समझौता है, जिसमें हर देश एक-दूसरे को व्यापार के मामले में तरजीह देता है.
इसमें टैरिफ़ और अन्य व्यापार बाधाओं को दूर कर, एक-दूसरे को अपने देश के बाज़ारों तक विशेष पहुँच उपलब्ध कराई जाती है.
इस तरह के समझौतों में टैरिफ़ को पूरी तरह ख़त्म कर दिया जाता है या अन्य देशों पर लागू टैरिफ़ की तुलना में काफ़ी कम कर दिया जाता है.
शायद यही वजह है कि चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच बातचीत से अमेरिका में भी हलचल है.
इसी महीने सात अप्रैल को डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर ब्रायन शेट्ज़ ने चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के मुक्त व्यापार पर सहयोग करने की संभावना को चौंकाने वाली बात बताया है.
अगर इन तीनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता हो जाता है तो तीनों मिलकर क़रीब 24 ट्रिलियन डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के साथ एक बड़ी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करेंगे.
इन देशों की अर्थव्यवसथा का यह आंकलन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य के आधार पर है.
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब तीनों के बीच मुक्त व्यापार की चर्चा सामने आई है.
ये देश एक दशक से अधिक समय तक बातचीत करने के बावजूद किसी समझौते को अंतिम रूप देने में नाकाम रहे हैं.
चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच मुक्त व्यापार का प्रस्ताव साल 2012 में रखा गया था.
इसके अगले साल सोल में इस मुद्दे पर औपचारिक बातचीत शुरू हुई. यह बातचीत आधिकारिक तौर पर साल 2019 तक चली.
अब तक क्यों नहीं हुआ समझौतादूसरे विश्व युद्ध में जापान की आक्रामकता और मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा चीन में काफ़ी संवेदनशील माना जाता है.
इसके अलावा हाल के वर्षों में जापान और दक्षिण कोरिया में कई लोगों ने हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के पक्ष में प्रदर्शन किए हैं.
डॉ. हीओ यून सोगांग ग्रेजुएट स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ में अंतरराष्ट्रीय ट्रेड के प्रोफेसर और साउथ कोरिया के वाणिज्य, उद्योग और ऊर्जा मंत्रालय के व्यापार नीति सलाहकार परिषद के अध्यक्ष हैं.
उनका मानना है कि तीनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता होने की संभावना 'शून्य' के क़रीब है.
डॉ. हीओ यून ऐसे समझौते में चीन की नई दिलचस्पी को 'राजनीति से प्रेरित कदम' के रूप में देखते हैं.
उनका कहना है कि यह वैसा ही है जैसा कि ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) के जवाब में साल 2012 में चीन ने बातचीत शुरू की थी.
टीपीपी प्रशांत महासागर की सीमा पर मौजूद 12 देशों के बीच एक क्षेत्रीय व्यापार समझौता है, जिसकी अगुआई अमेरिका के तत्कालीन ओबामा प्रशासन ने की थी.

दक्षिण कोरिया के कार्यवाहक राष्ट्रपति हान डक-सू से पूछा गया कि क्या उनका देश अमेरिकी टैरिफ़ के खिलाफ़ अन्य देशों के साथ समझौता कर सकता है तो उन्होंने सीएनएन न्यूज़ से कहा, "हम वो तरीका नहीं अपनाएंगे".
दक्षिण कोरिया को पिछले राष्ट्रपति के महाभियोग के बाद जून में एक नए राष्ट्रपति का चुनाव करना है.
बहुराष्ट्रीय वित्तीय सेवा फर्म नेटिक्सिस में एशिया-प्रशांत क्षेत्र की मुख्य अर्थशास्त्री एलिसिया गार्सिया-हेरेरो ने चेतावनी दी है कि तीन देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता होने से अमेरिका के साथ दक्षिण कोरिया और जापान के व्यापार संबंधों में तनाव आ सकता है.
उनका कहना है, "चीन के पास खोने के लिए अब कुछ नहीं है, लेकिन दक्षिण कोरिया और जापान के पास खोने के लिए बहुत कुछ है, इसलिए यह समझौता नहीं होगा."
पहले से मौजूद द्विपक्षीय समझौतेसोगांग ग्रेजुएट स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के डॉक्टर हीओ का कहना है कि दक्षिण कोरिया और चीन के बीच मौजूदा मुक्त व्यापार समझौता बहुत ज़्यादा उदार है और इस पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है.
जबकि मौजूदा समय में दक्षिण कोरिया और जापान या चीन और जापान के बीच कोई द्विपक्षीय समझौता मौजूद नहीं है.
उन्होंने कहा, "जब भी दक्षिण कोरिया की सरकार जापान के साथ एफटीए का बात उठाती है, तो यह जल्दी ही एक राजनीतिक मुद्दा बन जाता है. सरकार पर 'जापान समर्थक' होने के आरोप लगने लगता है."
ऐसी टिप्पणियाँ क्षेत्रीय तनाव को बढ़ाती हैं. मसलन चीन और जापान के बीच द्वीपों के एक समूह पर विवाद है. इन द्वीपों को जापान में सेनकाकू कहता है और चीन दियाओयू.
दक्षिण कोरिया, जापान और चीन सहित एशिया-प्रशांत के पंद्रह देशों के बीच क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (रिजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशीप या आरसीईपी) को अक्सर सीमित तौर पर द्विपक्षीय एफटीए के विकल्प के रूप में देखा जाता है.
मूडीज एनालिटिक्स में जापान के अर्थशास्त्र के प्रमुख स्टीफन एंग्रीक कहते हैं, "अगर कोई भी समझौता होता है तो वह काफ़ी साधारण होगा."
उनका कहना है, "हमने ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान ऐसा देखा है. उस समय आरसीईपी समझौते पर हस्ताक्षर करने को लेकर बहुत चर्चा हुई थी. ट्रंप ने कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) से अमेरिका को बाहर निकालने के बाद आरसीईपी का गठन किया गया था."
उन्होंने बताया, "आरसीईपी में मौजूद टैरिफ कटौती के वादे सीपीटीपीपी की तुलना में बहुत कम थे."
किस तरह के समझौते की उम्मीद है?एएनजेड बैंक में ग्रेटर चाइना के मुख्य अर्थशास्त्री रेमंड येउंग का कहना है कि वो एफटीए को महज एक 'आधा-अधूरा उपाय' मानते हैं और व्यावहारिक तौर पर इसके साकार होने की संभावना नहीं है.
उनका कहना है, "व्यापार समझौतों को भू-राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता. जापान और दक्षिण कोरिया अमेरिका के सहयोगी हैं और इसके सैन्य समर्थन पर निर्भर हैं. जब चीन और अमेरिका के बाज़ारों के बीच किसी एक को चुनने की बात आती है, तो आपको क्या लगता है कि वे किसको प्राथमिकता देंगे?"
इन तीनों देशों के बीच समझौते को लेकर फिर भी कुछ पर्यवेक्षक आशावादी बने हुए हैं.
दक्षिण कोरिया में सूकम्युंग वीमेन्स यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉक्टर कांग इन-सू का मानना है कि मौजूदा माहौल पहले की तुलना में तीनों देशों के बीच समझौते के लिए ज़्यादा अनुकूल है.
उनका कहना है, "पहले चीन अपने बाज़ारों को पूरी तरह से खोलने के लिए तैयार नहीं था. लेकिन अब टैरिफ़ की वजह से पैदा हुए गंभीर हालात के बीच चीन अमेरिका का मुक़ाबला करते हुए ख़ुद को मुक्त व्यापार के चैंपियन के रूप में स्थापित करना चाह सकता है."
विश्व बैंक के पूर्व स्वतंत्र चीनी अर्थशास्त्री एंडी ज़ी इस बात से सहमत हैं कि ट्रंप के टैरिफ़ ने तीनों देशों के बीच एफटीए की संभावना को बढ़ा दिया है.
हालाँकि उनको संदेह है कि ऐसा निकट भविष्य में हो मुमकिन हो पाएगा.
उनका कहना है, "जापान और दक्षिण कोरिया मूल रूप से अमेरिका के सहयोगी हैं. कोई तीसरा पक्ष इनको ये आदेश दे कि क्या बेचना है और क्या नहीं ये शायद संभव नहीं है."
क्या सोचते हैं लोग?
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले आयात शुल्क लगाया और फिर इसमें बदलाव किए हैं. इससे हाल के हफ़्तों में दुनियाभर के बाज़ारों में भारी उथल-पुथल देखी गई है.
ऐसे में कर्मचारी संभावित नए मुक्त व्यापार समझौते को कैसे देखते हैं?
मून त्सुई एक इवेंट प्रोड्यूसर हैं जो चीन, जापान और दक्षिण कोरिया सहित कई देशों में जनसंपर्क से जुड़े प्रोग्राम कराती हैं.
उनका कहना है कि एक मुक्त व्यापार समझौता उनके व्यवसाय को थोड़े समय के लिए तेज़ी दे सकता है, लेकिन वो इस सुझाव को खारिज करती हैं कि इससे कोई बड़ा बदलाव आएगा.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "यह वास्तव में शेयर बाज़ारों को ऊपर-नीचे करने का एक खेल है. यह अमीर लोगों का खेल है. अगर आप ग़रीब हैं तो यह आपके जीवन पर असर नहीं डालता है."
हालाँकि हॉन्गकॉन्ग के फ़ाइनेंस सेक्टर में काम करने वाले चार्ल्स का नज़रिया इस मामले में ज़्यादा सकारात्मक दिखता है.
उनका कहना है, "कच्चे माल या वस्तुओं के निर्यात और आयात की लागत में कमी से कीमतें कम होंगीं. दुनियाभर में महंगाई के दौर में यह न केवल विनिर्माण उद्योगों के लिए अनुकूल होगा, बल्कि वस्तुओं की खपत में भी तेज़ी आएगी और अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा."
लेकिन उन्होंने बीबीसी से बातचीन में इस बात को लेकर चेतावनी दी कि इससे क्षेत्र में ताक़त का केंद्र एक जगह से दूसरी जगह पर शिफ़्ट हो सकता है.
काज़ू जापान के वाणिज्य क्षेत्र में काम करते हैं और मुक्त व्यापार समझौते से पुराने दुश्मनों को एक साथ लाने का समर्थन करते हैं.
उनका कहना है, "हमारे बीच तनाव कम होना चाहिए और इससे ज़्यादा लोग एक-दूसरे का सम्मान करेंगे. इस क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए यह एक अच्छा कदम होना चाहिए."
बीबीसी ने दक्षिण कोरिया के विनिर्माण क्षेत्र के एक कर्मचारी से इस मुद्दे पर बात की, जिनपर ट्रंप के टैरिफ का काफ़ी असर पड़ने की संभावना है.
उन्होंने अपनी कंपनी पर संभावित असर को देखते हुए अपना नाम गुप्त रखा है.
उनका कहना है, "मैं पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हूं कि मुक्त व्यापार समझौता मौजूदा समस्या का समाधान करेगा, क्योंकि हम जिस समस्या का सामना कर रहे हैं, जरूरी नहीं है कि वह बाज़ार तक पहुंच के बारे में हो."
वो कहते हैं, "टैरिफ़ लगाना एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है, जिसे सरकार को बातचीत के जरिए हल करना चाहिए. मैं बस ट्रंप का कार्यकाल ख़त्म होने का इंतजार कर रहा हूं. यह व्यापार के लिए एक आपदा की तरह है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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