ग़ज़ा में भुखमरी के गंभीर हालात के बीच फ़लस्तीन को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता देने की फ़्रांस की घोषणा के बाद बाकी पश्चिमी देशों पर भी ऐसा करने का दबाव बढ़ गया है.
ब्रिटेन की किएर स्टार्मर सरकार पर उनके ही सांसदों का दबाव बढ़ गया है. लेबर पार्टी के कई सांसद भी ऐसा चाहते हैं और शुक्रवार की सुबह विदेशी मामलों की कमेटी ने भी तत्काल मान्यता देने की अपील की है.
ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा है कि इमैनुएल मैक्रों और जर्मन चांसलर फ़्रेड्रिक मर्ज़ से वह बात करेंगे. ये इस बात का संकेत है कि ग़ज़ा के हालात को लेकर चिंता बढ़ रही है.
लेकिन इसराइल के मुख्य समर्थक अमेरिका और ब्रिटेन सहित उसके सहयोगियों ने फ़लस्तीन को अब तक मान्यता नहीं दी है.
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फ़्रांस की ताज़ा घोषणा का इसराइल और अमेरिका ने विरोध किया है.
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस क़दम की आलोचना करते हुए कहा कि यह 'आतंकवाद को इनाम देने जैसा है."
अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, "संयुक्त राष्ट्र महासभा में फ़लस्तीन को राष्ट्र का मान्यता देने की इमैनुएल मैक्रों की योजना को अमेरिका सख़्ती से ख़ारिज करता है."
उन्होंने लिखा, "यह गैर-ज़िम्मेदाराना फै़सला सिर्फ़ हमास के प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देता है और यह अशांति बढ़ाएगा. यह 7 अक्तूबर के हमले के पीड़ितों के लिए एक तमाचे जैसा है."
वहीं फ़्रांस में अमेरिकी राजदूत चार्ल्स कुशनर ने एक्स पर लिखा, "फ़्रांस का फ़लस्तीन को मान्यता देने का फ़ैसला हमास को एक तोहफ़ा और शांति प्रक्रिया को एक झटका है. मैं अभी यहां पहुंचा हूं और बेहद निराश हूं. राष्ट्रपति मैक्रों मुझे उम्मीद है कि सितंबर से पहले मैं आपका मत बदल सकूंगा. बंधकों को रिहा करें. युद्धविराम पर ध्यान दें. यही टिकाऊ शांति का रास्ता है."
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फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि उनका देश फ़लस्तीन को इसी साल सितंबर में आधिकारिक तौर पर मान्यता देगा.
राष्ट्रपति मैक्रों ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, "आज की सबसे बड़ी ज़रूरत यह है कि ग़ज़ा में युद्ध ख़त्म हो और नागरिकों को बचाया जाए. शांति संभव है. तत्काल युद्धविराम, सभी बंधकों की रिहाई और ग़ज़ा के लोगों को बड़े पैमाने पर मानवीय सहायता की ज़रूरत है."
गुरुवार को एक्स पर अपने पोस्ट में मैक्रों ने लिखा, "मध्य पूर्व में न्यायपूर्ण और स्थायी शांति के प्रति अपनी ऐतिहासिक प्रतिबद्धता के तहत, मैंने फ़ैसला लिया है कि फ़्रांस फ़लस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता देगा."
उन्होंने कहा, "हमें हमास का विसैन्यीकरण (हथियारों से मुक्त करना) सुनिश्चित करना होगा, साथ ही ग़ज़ा को सुरक्षित बनाना और उसका पुनर्निर्माण भी करना होगा."
बीबीसी के यूरोप डिज़िटल एडिटर पॉल किर्बी के अनुसार, हालांकि फ़्रांस की वामपंथी और मथ्यमार्गी पार्टियों ने इसका स्वागत किया है और दक्षिणपंथी पार्टियों ने कोई बयान नहीं दिया.
लेकिन धुर दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली की नेता मरीन ली पेन ने इसे 'राजनीतिक और नैतिक ग़लती' क़रार दिया और कहा, "हमास के राष्ट्र को मान्यता देना एक आतंकी राष्ट्र को मान्यता देने जैसा है."
उधर, फ़लस्तीनी अधिकारियों ने मैक्रों के फ़ैसले का स्वागत किया है.
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आगामी सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक होगी जिसमें फ़्रांस इस बारे में औपचारिक रूप से ये क़दम उठाएगा.
फ़्रांस को उम्मीद है कि बाकी बड़ी शक्तियां भी उसका अनुसरण करेंगी.
ऐसा क़दम उठाने वाला फ़्रांस, यूरोपीय संघ का सबसे प्रभावशाली देश है. हालांकि यूरोपीय संघ में रहते हुए स्वीडन, स्पेन, आयरलैंड और स्लोवेनिया ने पहले ही फ़लस्तीन मान्यता दे दी है. पोलैंड और हंगरी ने 80 के दशक में ही कम्युनिस्ट शासन में मान्यता दे दी थी.
फ़लस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 140 से ज़्यादा देशों की ओर से मान्यता प्राप्त है. स्पेन और आयरलैंड सहित कुछ यूरोपीय संघ के देश भी इनमें शामिल हैं.
साल 1988 में भारत फ़लस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक बन गया. वर्ष 1996 में भारत ने गज़ा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला, जिसे बाद में 2003 में रामल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया था.
लेकिन इसराइल, अमेरिका और ब्रिटेन समेत पश्चिम के कई देशों ने अभी तक मान्यता नहीं दी है.
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स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, क़तर, जार्डन और सऊदी अरब ने मैक्रों के एलान का समर्थन किया है.
स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है, "मैं इसका स्वागत करता हूं कि फ्रांस ने भी स्पेन और अन्य यूरोपीय देशों के साथ मिलकर फ़लस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने का फ़ैसला किया है. हमें मिलकर उस समाधान की रक्षा करनी होगी जिसे नेतन्याहू नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं. दो-राष्ट्र समाधान ही एकमात्र रास्ता है."
पिछले साल मई में स्पेन, आयरलैंड और नॉर्वे ने फ़लस्तीनी राष्ट्र को मान्यता दी थी.
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने कहा है कि फ़लस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देना ही टिकाऊ शांति की गारंटी है.
एक्स पर पोस्ट किए गए बयान में पीएम अल्बानीज़ ने लिखा, "फ़लस्तीन के लोगों की अपनी स्वतंत्र राष्ट्र की वैध आकांक्षाओं को मान्यता देना ऑस्ट्रेलिया में लंबे समय से एक सर्वदलीय रुख़ रहा है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय दो-राष्ट्र समाधान को इसलिए मानता है क्योंकि न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति इसी पर निर्भर करती है."
"ऑस्ट्रेलिया उस भविष्य के लिए प्रतिबद्ध है जहां इसराइल और फ़लस्तीन दोनों के लोग सुरक्षित और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर शांति से रह सकें."
क़तर ने फ़्रांस की घोषणा का स्वागत किया है और बाकी देशों से भी ऐसा ऐसा ही करने की अपील की है.
क़तर के विदेश मंत्रालय ने एक्स पर एक बयान जारी कर कहा है, "जिन देशों ने अभी तक फ़लस्तीनी राष्ट्र की मान्यता नहीं दी है, वे फ़्रांस का अनुसरण करें और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और फ़लस्तीनी लोगों के उनकी ज़मीन पर ऐतिहासिक और अपरिहार्य अधिकारों के समर्थन में सीधे आएं."
सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने एक बयानजारी कर कहा है, "सऊदी अरब फ़्रांस के इस ऐतिहासिक निर्णय की सराहना करता है, जो फ़लस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और 1967 की सीमाओं के आधार पर पूर्वी यरुशलम को राजधानी बनाकर एक स्वतंत्र राष्ट्र स्थापित करने के उनके अधिकार पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आम सहमति की पुष्टि करता है."
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क्या राष्ट्रपति मैक्रों का सितंबर में संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन को मान्यता देने का फ़ैसला कोई बड़ा बदलाव लाएगा?
बीबीसी अंतरराष्ट्रीय संपादक जेरेमी बोवेन के अनुसार, शायद उनका मानना है कि यह दो-राष्ट्र समाधान पर लंबे समय से चले आ रहे नारों में कुछ नई ऊर्जा भर सकता है.
इसराइल ने साफ़ तौर पर अपने इस रुख़ को दोहराया है कि वह कभी भी फ़लस्तीनी राष्ट्र को स्वीकार नहीं करेगा.
प्रधानमंत्री नेतन्याहू की स्थिति स्पष्ट है. उनका कहना है कि फ़लस्तीनी राष्ट्र इसराइल को समाप्त करने के लिए एक लॉन्चपैड बन जाएगा.
अति-राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी धड़े से जुड़े नेताओं, जैसे कि वित्त मंत्री बेज़लेल स्मोटरिच, मौजूदा हालात का इस्तेमाल एक नई मुहिम के लिए कर रहे हैं, जिसे उन्होंने "एकतरफा दबाव के ख़िलाफ़ यहूदी राष्ट्रवादी जवाब" बताया है.
स्मोटरिच के लिए इसका मतलब है उस क्षेत्र पर इसराइली संप्रभुता बढ़ाना जिसे इसराइल 'जूडिया और समारिया' कहता है — जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वेस्ट बैंक के रूप में जाना जाता है.
इसराइल के कट्टर दक्षिणपंथी नेता कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक को इसराइल में मिलाना चाहते हैं.
स्मोटरिच और उनके समर्थक चाहते हैं कि फ़लस्तीनियों को कब्ज़े वाले इलाकों से पूरी तरह हटाया जाए और उस पूरे क्षेत्र को यहूदियों के लिए इसराइली संप्रभुता के अंतर्गत लाया जाए.
ग़ज़ा में भुखमरी के हालातहमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि पिछले 24 घंटों में अकाल और कुपोषण के कारण दो और मौतें दर्ज की गई हैं. गुरुवार तक भूख से मरने वालों की कुल संख्या 113 हो गई.
इसी सप्ताह की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा था कि ग़ज़ा की 21 लाख आबादी बुनियादी आपूर्ति की गंभीर कमी का सामना कर रही है, कुपोषण "बढ़ रहा है" और ग़ज़ा में "भुखमरी हर दरवाजे पर दस्तक दे रही है."
संयुक्त राष्ट्र की फ़लस्तीनी शरणार्थी एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) ने चेतावनी दी है कि ग़ज़ा में मानवीय हालात तेज़ी बिगड़ रहे हैं.
एजेंसी ने कहा कि ग़ज़ा में हर पांचवां बच्चे कुपोषित है.
गुरुवार को एजेंसी के प्रमुख फिलिप लाज़ारिनी ने एक बयान जारी कर कहा, "हमारी टीम ने जिन बच्चों की जांच की है उनमें से अधिकांश दुबले और कमज़ोर हैं और इलाज़ न मिलने की स्थिति में उनके मरने का ख़तरा अधिक है."
100 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मानवीय सहायता ग्रुपों ने ग़ज़ा में बड़े पैमाने पर भुखमरी की चेतावनी दी है. बुधवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि ग़ज़ा की एक बड़ी आबादी भुखमरी से पीड़ित है.
लाज़ारिनी ने कहा कि एजेंसी के पास जॉर्डन और मिस्र में "खाद्य और चिकित्सा आपूर्ति से भरे 6,000 ट्रकों के बराबर सामान मौजूद है. जिसे ग़ज़ा में प्रवेश का इंतज़ार है."
इस बीच इसराइल ने संघर्ष विराम पर हमास के साथ वार्ता करने वाली टीम को वापस बुला लिया है और कुछ ही दिन पहले दैर अल बलाह में ज़मीनी कार्रवाई शुरू कर दी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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