पश्चिम बंगाल में ठीक एक साल बाद होने वाले अहम विधानसभा चुनाव से पहले क्या सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में अंदरखाने सब कुछ ठीक चल रहा है?
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच हुई कहासुनी सार्वजनिक होने और सौगत राय जैसे अनुभवी नेताओं के जम कर भड़ास निकालने के बाद यहां राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठ रहा है.
पार्टी में नया बनाम पुराना विवाद तो पुराना है. लेकिन अब पार्टी के तीन वरिष्ठ नेताओं की आपसी कलह भी खुलकर सामने आ गई है.
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह दरअसल, अहम की लड़ाई है. विवाद के केंद्र में रहे तीनों नेता यानी महुआ मोइत्रा, कल्याण बनर्जी और सौगत राय अपने-अपने इलाके में बेहद मजबूत हैं और पार्टी के लिए उनकी काफी अहमियत है.
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वैसे, पार्टी की महिला सांसद महुआ मोइत्रा और लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के मुख्य सचेतक कल्याण बनर्जी के बीच इससे पहले भी सार्वजनिक रूप से बहस हो चुकी है.
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि महुआ ने मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी से इस मामले की लिखित शिकायत भी की है लेकिन मौजूदा राजनीतिक समीकरण कुछ ऐसे हैं कि ममता इन तीनों में किसी को नाराज करने का खतरा नहीं मोल ले सकतीं.
उस नेता का कहना था कि ताजा विवाद के बाद ममता ने तीनों नेताओं से अलग-अलग बात की है.
तृणमूल कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि ताजा विवाद की वजह चुनाव आयोग में जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में महिला सांसद महुआ का नाम ऐन वक्त पर कट जाना था.
उनकी जगह एक अन्य महिला सांसद काकोली घोष दस्तीदार का नाम जोड़ दिया गया था लेकिन वो मौके पर मौजूद ही नहीं थी. इस मुद्दे पर महुआ और कल्याण बनर्जी की कहासुनी हो गई.
पार्टी के वरिष्ठ नेता सौगत राय ने कोलकाता में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि बनर्जी के साथ बहस के बाद महुआ मोइत्रा रोने लगी थी. बनर्जी को मुख्य सचेतक के पद से हटा दिया जाना चाहिए. उन्होंने पार्टी की छवि को धक्का पहुंचाया है.
बनर्जी और महुआ के बीच हुई बहस के दौरान चुनाव आयोग के दफ्तर में मौजूद नहीं थे लेकिन उन्होंने कहा, "मैंने बाद महुआ को रोते और दूसरे सांसदों से बनर्जी की शिकायत करते देखा था. कल्याण पहले भी विवादित काम करते रहे हैं."
पार्टी करेगी कार्रवाई का फ़ैसला
दूसरी ओर, हुगली ज़िले के श्रीरामपुर से सांसद का भी बयान आया है. उन्होंने दिल्ली में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में महुआ का नाम लिए बिना कहा, "महिला सांसद ने मौके पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों से मुझे गिरफ्तार करने को कह दिया. वो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वो किसी का भी अपमान कर सकती हैं."
कल्याण ने पार्टी सांसद सौगत राय पर भी पलटवार किया है. उनका कहना था, "सौगत दा ने कई मौकों पर पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया है. वो साल 2001 से ही मुझे नापसंद करते हैं."
इसके जवाब में सौगत राय ने कोलकाता में पत्रकारों से कहा, "पता नहीं वो (कल्याण बनर्जी) मुझे निशाना क्यों बना रहे हैं. अब उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई का फ़ैसला पार्टी का शीर्ष नेतृत्व करेगा."
नया बनाम पुराना विवादबीते विधानसभा चुनाव के बाद से ही तृणमूल कांग्रेस नया बनाम पुराना विवाद से जूझ रही है. इनमें महासचिव और ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी को नए गुट का नेता बताया जाता है.
वो पार्टी की बैठक में अक्सर नए चेहरों को मौका दिए जाने की वकालत करते रहे हैं. इससे पार्टी के पुराने नेता नाराज़ रहे हैं.
पार्टी में रह-रह कर यह विवाद सिर उठाता रहा है. इस मुद्दे पर ममता और अभिषेक के बीच दूरियां बढ़ने के कयास भी लगते रहे हैं.
बीती 27 फ़रवरी को अगले विधानसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में आयोजित पार्टी की मेगा बैठक में ममता और अभिषेक करीब छह महीने बाद एक साथ नजर आए थे.
हालांकि अभिषेक इस दौरान अपनी आंखों के इलाज में व्यस्त रहे लेकिन दोनों नेताओं के सार्वजनिक तौर पर एक साथ नजर नहीं आने से इस विवाद को हवा मिलती रही.
सवाल यह है कि क्या अगले साल के चुनाव से पहले पार्टी में सब कुछ ठीक ठाक है?
तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "किसी भी पार्टी में जब इतने वरिष्ठ नेता हों तो कभी-कभार उनका अहम टकरा ही जाता है. यह मामला भी कुछ ऐसा ही है. ममता ने तीनों नेताओं से अलग-अलग बात की है. यह मामला भी जल्दी ही सुलझ जाएगा."
उनका कहना था कि इस विवाद में शामिल तीनों नेता अपने-अपने इलाकों में पार्टी के मजबूत स्तंभ हैं. सौगत ने दमदम इलाके को संभाल रखा है और महुआ ने नदिया को.
इसी तरह कल्याण बनर्जी ने हुगली जिले में संगठन को मज़बूत बनाए रखा है. ये वो इलाके हैं जहां भाजपा हर चुनाव में अपना पूरा ज़ोर लगाती है.
'ये अहम का टकराव है'राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि महुआ मोइत्रा लोकसभा में काफी मुखर रहती हैं. कई बार वो पार्टी की ओर से तय समय सीमा की भी अनदेखी कर देती हैं.
यह बात कल्याण बनर्जी को अक्सर चुभ जाती है. कल्याण ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा कि महुआ चाहती हैं कि वो जब तक बोलें कोई उनको रोके-टोके नहीं.
राजनीतिक विश्लेषक शिखा मुखर्जी कहती हैं, "यह सीधे तौर पर ईगो क्लैश यानी अहम का टकराव है. तीनों नेता फिलहाल पार्टी के लिए अपरिहार्य हैं. पार्टी में ममता का फैसला ही सर्वोपरि है."
वो कहती हैं, "जहां तक भाजपा का सवाल है वह तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के विवाद को तो बढ़ा-चढ़ा कर पेश करती है. इन तीनो नेताओं में लंबे समय से चली आ रही नाराजगी अब सार्वजनिक हुई है लेकिन पार्टी को राजनीतिक तौर पर इससे कोई नुकसान होता नहीं नजर आता."
कोलकाता के रबींद्र भारती विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती बीबीसी से कहते हैं, "यह वरिष्ठ नेताओं के आपसी अहम के टकराव का मामला है और पहले भी ऐसा होता रहा है. इसका असर न तो तृणमूल कांग्रेस की राजनीति पर पड़ेगा और न ही चुनावी संभावनाओं पर."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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