एक महीना बीत चुका है. लेकिन बेंगलुरु के क्रिकेट स्टेडियम के पास हुई भयावह भगदड़ में अपनों को खोने वाले परिवार वालों की आंखों के आंसू अभी भी नहीं थमे हैं.
इस भगदड़ में अपनी 24 वर्षीय बेटी को खोने वाले सुरेश बाबू सुबकते हुए कहते हैं, ''हमें अभी भी ये यकीन नहीं होता कि वो हमारे बीच नहीं है. हमें नहीं पता कि इस सदमे से कैसे उबरें. भगवान ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया, यह बात हमें समझ नहीं आती. एक ही झटके में हमारी सारी खुशियां छिन गईं,"
एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली सहाना, 4 जून को चिन्नास्वामी क्रिकेट स्टेडियम में मची भगदड़ में मारे गए लोगों मे शामिल थीं. आईपीएल की विजेता टीम रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के स्वागत समारोह के दौरान ये भगदड़ मची थी.
यह जश्न इन परिवारों के लिए हमेशा के लिए शोक दिवस बन गया है.
उस दिन क्रिकेट के दीवानों का जुनून ऐसा था कि 35,000 की क्षमता वाले स्टेडियम में तीन से पांच लाख लोग पहुंच गए थे. ये लोग सिर्फ़ अपने क्रिकेट सितारों की एक झलक पाने के लिए वहां उमड़ पड़े थे.
इससे पहले सरकार ने भी प्रोटोकॉल तोड़ते हुए टीम का स्वागत विधान सौध (विधान सभा भवन) की सीढ़ियों पर करने का फै़सला किया था.
सरकार ने दिए तीन जांच के आदेशसरकार इस त्रासदी की भयावहता और प्रशासनिक तंत्र की तमाम विफलताओं से स्तब्ध थी. इसलिए उसने एक नहीं बल्कि तीन जांचों का एलान किया.
सरकार ने एक और अभूतपूर्व कदम उठाते हुए पुलिस आयुक्त और ए़डीजीपी रैंक के अधिकारी बी. दयानंद को निलंबित कर दिया. उनके साथ दो आईपीएस अधिकारियों और दो अन्य अधिकारियों को भी निलंबित कर दिया गया.
सरकार ने एक मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया. राज्य सीआईडी की ओर से बनी एक विशेष जांच टीम की ओर से भी जांच का एलान हुआ.
फिर कर्नाटक हाई कोर्ट के एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग का गठन किया गया. इसके अलावा कर्नाटक हाई कोर्ट की फर्स्ट बेंच ने स्वत: संज्ञान लिया.
हमेशा की तरह न्याय का पहिया धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है.
सिर्फ़ एक अपवाद दिखा है. जस्टिस जॉन माइकल कुन्हा की अध्यक्षता वाला जांच आयोग निर्धारित समय के मुताबिक़ 5 जुलाई को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप सकता है.
बीबीसी हिंदी को एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर ये जानकारी दी.
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सहाना रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की जबरदस्त फैन थीं. उन्होंने एक बार स्टेडियम जाकर उनका मैच भी देखा था.
4 जून को, जब उनके दोस्तों ने विजयी टीम को देखने स्टेडियम जाने का फ़ैसला किया, तो सहाना पहले थोड़ी झिझकीं, लेकिन फिर दोस्तों के साथ चली गईं.
लेकिन इस बार उन्होंने अपने माता-पिता या बहन को नहीं बताया कि वो कहां जा रही हैं. उनके भाई ने बीबीसी मराठी को उनके अंतिम संस्कार के दौरान यह जानकारी दी थी.
उनके दोस्तों ने उनके परिवार वालों को बताया था कि जब लोग अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे तो सहाना स्टेडियम के गेट के पास गिर पड़ी थीं. सहाना और उनके दोस्त नीचे गिर पड़े.
इसके बाद एक बैरिकेड भी उन पर गिर गया. भीड़ गिरे हुए बैरिकेड से गुजरने लगी और इस चक्कर में सहाना कुचल गईं. सहाना को अस्पताल लाया गया,जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.
सहाना के पिता और स्कूल शिक्षक सुरेश बाबू बीबीसी हिंदी से बात करते हुए बार-बार रो पड़ते हैं.
उन्होंने कहा, '' मैं क्या कहूं? वह घर की सारी जिम्मेदारियां निभाती थी. हम तो अपने बच्चों के लिए जीते थे. हमने कभी किसी का बुरा नहीं किया. फिर भगवान ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया?"
बेंगलुरु के एक और हिस्से में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्र भौमिक ने उस दिन शाम चार बजे मेट्रो से अपनी मां को फोन किया कि वो स्टेडियम के पास पहुंच रहे हैं.
लेकिन कुछ घंटों बाद उनका परिवार अस्पताल पहुंचा और देखा कि वो अब इस दुनिया में नहीं हैं. उनके कारोबारी पिता डी.एच. लक्ष्मण इस सदमे से टूट चुके हैं.
सुरेश बाबू की तरह लक्ष्मण ने भी पुलिस को अपना बयान दिया. उस भगदड़ से किसी तरह बच निकले 24 वर्षीय राहुल ने भी पुलिस को जानकारी दी.
उन्होंने कहा "भीड़ बहुत ज़्यादा थी. इसे देखते हुए हमने पीछे हटने का फ़ैसला किया. तभी अचानक गेट खुला और सब गिर पड़े. लोग हमारे ऊपर से चलते रहे.
उन्होंने कहा, ''मैं सन्न था.''
पुलिस ने उन्हें और उनकी मंगेतर को अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उनकी गर्दन पर एक बड़ा कॉलर लगाया.
वो कहते हैं ''मुझे बेहद तेज दर्द होता है. डॉक्टरों ने सख़्त हिदायत दी है कि मैं तुरंत कॉलर पहनूं,"
राहुल को एक इंश्योरेंस कंपनी में अपनी नई नौकरी पर रिपोर्ट करना था.
उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, '' कंपनी का रुख़ काफी अच्छा था. उसने मुझे कहा कि आप बाद में भी रिपोर्ट कर सकते हैं. मुझे उम्मीद है कि मैं इस हफ्ते जॉइन कर पाऊंगा."
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इस भगदड़ की वजह से प्रशासन को गैर राजनीतिक वर्ग से लेकर हर तरह के लोगों से आलोचना सुननी पड़ी. इसके बाद कर्नाटक पुलिस अकादमी ने एक सप्ताह के भीतर कुछ कदम उठाए.
पुलिस के एडिशनल डायरेक्टर जनरल (प्रशिक्षण) आलोक कुमार ने बीबीसी हिंदी को बताया, "10 जून से हमने अपने कांस्टेबलों को कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) का प्रशिक्षण दिलाने के लिए डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों को बुलाया. पहले कांस्टेबलों को केवल सामान्य प्राथमिक उपचार वगैरह की ट्रेनिंग दी जाती थी.''
उन्होंने कहा, '' किसी भी स्थिति में, चाहे वह भगदड़ हो, आगजनी हो या बम विस्फोट , मेडिकल टीम से पहले पुलिस ही घटनास्थल पर पहुंचती है. ऐसे में ये जरूरी है कि पुलिसकर्मी प्राथमिक चिकित्सा और सीपीआर देने की स्थिति में हों. हमारे पास लगभग 5,300 ट्रेनी हैं. सभी को जल्द ही ये ट्रेनिंग दी जाएगी.''
यह कदम इसलिए भी अहम हैं क्योंकि चिन्नास्वामी स्टेडियम में भगदड़ के दिन ऐसी स्थिति थी कि ज्यादातर जगहों पर एंबुलेंस भी पहुंच नहीं सके थे.
पुलिस महानिदेशक एम. ए. सलीम ने भी भीड़ प्रबंधन के लिए एसओपी जारी की है. इनमें कार्यक्रम से पहले की योजना और सिमुलेशन, सुरक्षा ऑडिट, जोख़िम आकलन और आपातकालीन स्थिति में लोगों को निकालने की योजनाएं शामिल हैं.
सबसे अहम बात यह है कि उन्होंने अधिकारियों को यह निर्देश दिया है कि जो आयोजन सुरक्षा ऑडिट में विफल रहते हैं उन्हें मंजूरी न दी जाए.
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बेंगलुरु (अर्बन) के जिला मजिस्ट्रेट और डिप्टी कमिश्नर जी. जगदीशा की ओर की जा रही मजिस्ट्रेट जांच में उन पांच पुलिस अधिकारियों के बयान लिए जा चुके हैं जिन्हें निलंबित किया गया था.
कुछ नागरिकों ने भी अपनी शिकायतें दर्ज कराई हैं. इस जांच को अपनी रिपोर्ट जमा करने के लिए 19 जुलाई तक का एक्स्टेंशन दिया गया है.
एसआईटी भी उस परिस्थितियों की जांच कर रही है जिसकी वजह से ये भगदड़ हुई.
लेकिन कमीशन ऑफ इनक्वायरी एक्ट के तहत गठित न्यायिक आयोग एक महीने की समयसीमा के अंदर अपना काम पूरा कर चुका है.
इस आयोग की अध्यक्षता न्यायमूर्ति जॉन माइकल कुन्हा कर रहे हैं और उन्हें रिटायर्ड आईपीएस अफसर और पूर्व डीजीपी एम.के. श्रीवास्तव और रिटायर्ड आईएएस अफसर प्रसन्न कुमार मदद कर रहे हैं.
तीन-तीन जांच के फ़ैसले ने प्रशासनिक तंत्र, ख़ासकर पुलिस महकमे को हैरान कर दिया.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बीबीसी हिंदी को नाम न छापने की शर्त पर कहा, "यह समझना कठिन है कि तीन जांचों की घोषणा के पीछे सरकार की मंशा क्या थी. आख़िरकार न्यायिक आयोग ही सर्वोच्च निकाय होगा जिसकी रिपोर्ट अन्य दो जांचों की निष्कर्षों के ऊपर रहेगी."
इन जांचों के अतिरिक्त, कर्नाटक हाई कोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस कमेश्वर राव ने भी इस भगदड़ मामले पर स्वतः संज्ञान लिया है.
एडवोकेट जनरल शशि किरण शेट्टी ने सरकार की ओर से "सीलबंद लिफाफे" में हलफ़नामा सौंपा है. बीती तीन सुनवाइयों में, अदालत दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलें सुन चुकी है कि सीलबंद दस्तावेज खोले जाएं या नहीं.
हाई कोर्ट आरसीबी की उस याचिका पर भी विचार कर रहा है, जिसमें उसके चार अधिकारियों के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को रद्द करने की मांग की गई है.
इन तमाम जांचों और अदालती कार्यवाहियों के बीच, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (सीएटी) ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त रहे विकास कुमार विकास के निलंबन को रद्द कर दिया है.
साथ ही, इस आदेश को अन्य निलंबित पुलिस अधिकारियों पर भी लागू किया है. हालांकि, सरकार ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी है.
सीएटी के आदेश की सबसे दिलचस्प बात ये थी कि उसने आरसीबी को भी कठघरे में खड़ा किया है.
उसने कहा है कि आरसीबी ने सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करने से जुड़े नियमों का उल्लंघन किया है.
नियमों के मुताबिक़ आरसीबी को यह कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति कम-से-कम सात दिन पहले लेनी चाहिए थी और यह अनुमति अतिरिक्त पुलिस आयुक्त से ली जानी चाहिए थी.
लेकिन आरसीबी ने केवल क्षेत्रीय पुलिस थाने के इंस्पेक्टर को एक चिट्ठी भर सौंपी थी.
भौमिक के पिता लक्ष्मण ने बीबीसी हिंदी से कहा, ''मुझे नहीं पता मुझे किसने बुलाया. सीआईडी थी या कोई और. मैं गया और अपना बयान दे दिया. मेरा बेटा अब नहीं है. बाकी मुझे अब कुछ नहीं पता.''
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