अभूतपूर्व आर्थिक संकट के चलते साल 2022 में बड़े पैमाने पर उथल पुथल और राष्ट्रपति के सत्ता से हटने के बाद श्रीलंका में पहला राष्ट्रपति चुनाव हो रहा है.
शनिवार को हो रहे मतदान को एक तरह से देश को पटरी पर लाने के लिए किए गए आर्थिक सुधारों पर जनमत संग्रह के रूप में देखा जा रहा है.
लेकिन टैक्स बढ़ने, सब्सिडी और कल्याणकारी खर्चों में कटौती के कारण अभी भी अधिकांश श्रीलंकाई मुश्किल का सामना कर रहे हैं.
कई विश्लेषकों का अनुमान है कि इस कांटे के चुनाव में मतदाताओं के ज़ेहन में आर्थिक संकट सबसे प्रमुख होगा.
भारत के थिंकटैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में एसोसिएट फ़ेलो सौम्या भौमिक ने बीबीसी से कहा, “देश में बढ़ती महंगाई, जीवनयापन की आसमान छूती क़ीमतें और ग़रीबी ने मतदाताओं के अंदर क़ीमतों को स्थिर करने का हल निकालने और जीवनयापन में सुधार को लेकर बेचैनी अधिक है.”
उनके मुताबिक़, “एक ऐसा देश जो आर्थिक संकट से उबरने की कोशिश में है, वहां यह चुनाव श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने और सरकार में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय भरोसे को पैदा करने के लिए बहुत ही अहम साबित होने वाला है.”
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श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकालने का भारी भरकम कार्यभार राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को मिला था. वो दोबारा कार्यकाल पाने के लिए रेस में हैं.
जब पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को सत्ता छोड़नी पड़ी थी, तो उसके एक सप्ताह बाद ही संसद ने 75 साल के विक्रमसिंघे को नियुक्त किया था.
कार्यकाल संभालने के कुछ दिनों बाद ही विक्रमसिंघे ने जो बचा खुचा प्रदर्शन था, उसे बलपूर्वक ख़त्म किया था. उन पर राजपक्षे परिवार को बचाने और फिर से ताक़त हासिल करने देने के आरोप लगते रहे हैं, हालांकि वे इन आरोपों से इनकार करते हैं.
राष्ट्रपति पद की दौड़ में एक और मज़बूत उम्मीदवार हैं और वो हैं वामपंथी राजनेता अरुना कुमारा दिसानायके. उनके भ्रष्टाचार विरोधी प्लेटफ़ॉर्म को लगातार अच्छा ख़ासा जनता का समर्थन हासिल हो रहा है.
शनिवार के इस चुनाव में श्रीलंका के इतिहास के सबसे अधिक उम्मीदवार मैदान में हैं. लेकिन तीन दर्जन उम्मीदवारों में से चार सुर्खियों में हैं.
विक्रमसिंघे और दिसानायके के अलावा प्रतिपक्ष के नेता सजित प्रेमदासा और बेदख़ल किए गए राष्ट्रपति के भतीजे और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के 38 साल के बेटे नमल राजपक्षे हैं.
स्थानीय समय के अनुसार शाम चार बजे मतदान समाप्त हो जाएगा और रविवार को नतीजे आएंगे.
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जब देश में आर्थिक संकट गहरा गया था तो एक आंदोलन ‘अरागालया’ (संघर्ष) उठ खड़ा हुआ है जिसने पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को गद्दी से उतरने को मजबूर कर दिया.
सालों तक कम टैक्स, कमज़ोर निर्यात और बड़ी बड़ी नीतिगत ग़लतियों ने कोविड-19 की महामारी के बाद मिलकर ऐसा विकराल रूप धारण किया कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार ख़त्म हो गया. सार्वजनिक कर्ज़ 83 अरब डॉलर से भी अधिक हो गया और महंगाई 70% तक पहुंच गई.
हालांकि इस गहरे संकट से देश के सामाजिक और राजनीतिक रूप से रसूखदार आमतौर पर अछूते रहे लेकिन आम लोगों के लिए राशन, गैस सिलेंडर और दवाएं पाना मुश्किल हो गया, जिसने असंतोष और अशांति में घी का काम किया.
उस समय राष्ट्रपति रहे राजपक्षे और उनकी सरकार को इस संकट के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया और उनके इस्तीफ़े की मांग के लिए महीने भर तक प्रदर्शन हुए.
13 जुलाई 2022 को एक नाटकीय घटनाक्रम में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर धावा बोल दिया. ये घटना पूरी दुनिया में प्रसारित हुई और लोगों ने देखा कि प्रदर्शनकारी स्विमिंग पूल में छलांग लगा रहे थे और घर में तोड़फोड़ कर रहे थे.
राजपक्षे के देश छोड़कर जाने के बाद राष्ट्रपति विक्रमसिंघे की अंतरिम सरकार ने आर्थिक संकट को कम करने के लिए बहुत कड़ी खर्च कटौती को लागू किया.
राजपक्षे 50 दिनों तक देश से बाहर निर्वासित थे.
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हालांकि आर्थिक सुधार महंगाई को सफलतापूर्वक नीचे लाने में कामयाब रहा और श्रीलंकाई रुपये को मज़बूत भी किया.
लेकिन हर श्रीलंकाई इन सुधारों के असर का दर्द महसूस करता है.
32 साल के येशान जयालथ कहते हैं, "नौकरी पाना सबसे मुश्किल है. अकाउंटिंग डिग्री होने के बाद भी मैं एक परमानेंट नौकरी नहीं पा सकता." वो पार्ट टाइम या अस्थाई नौकरी कर रहे हैं.
पूरे देश में अधिकांश छोटे व्यवसाय उस संकट से अभी भी उबर नहीं पाए हैं.
उत्तरी कोलंबो में नॉर्बेट फ़र्नांडो की रूफ़ टाइल फ़ैक्ट्री थी, जिसे उन्हें 2022 में बंद करना पड़ा था.
उन्होंने बीबीसी को बताया कि मिट्टी, लकड़ी और केरोसिन जैसे कच्चे माल दो साल पहले के मुकाबले आज तीन गुना महंगे हैं. बहुत कम लोग घर बना रहे हैं या रूफ़ टाइल्स ख़रीद रहे हैं.
उन्होंने बीबीसी को बताया, “35 सालों बाद, फ़ैक्ट्री का बंद होना तकलीफ़ देता है.” उन्होंने ये भी बताया कि उस इलाके में 800 टाइल फ़ैक्ट्रियां थीं. लेकिन 2022 के बाद सिर्फ 42 ही बची हैं.
व्यवसाय के माहौल को लेकर केंद्रीय बैंक के आंकड़े दिखाते हैं कि 2022-23 में मांग में काफ़ी गिरावट आई और 2024 में हालात थोड़े सुधरे लेकिन यह संकट से पहले वाली स्थिति में फिर भी नहीं आ पाया है.
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप (आईसीजी) में श्रीलंका को लेकर काम करने वाले सीनियर कंसल्टेंट एलन कीनान ने बीबीसी को बताया, “श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था अब अपने पैरों पर फिर से खड़ी हो सकती है लेकिन बहुत सारे नागरिकों को ये समझाने की ज़रूरत है कि जो क़ीमत वे अदा कर रहे हैं उसकी अपनी अहमियत है.”
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रानिल विक्रमसिंघेः पहले के दो राष्ट्रपति चुनावों में इन्हें हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन संसद की बजाय श्रीलंकाई जनता द्वारा चुने जाने के लिए उनके पास यह तीसरा मौका है.
अरुना कुमारा दिसानायकेः वामपंथी नेशनल पीपुल्स पार्टी अलायंस के उम्मीदवार ने भ्रष्टाचार विरोधी कड़े उपायों और गुड गवर्नेंस का वादा किया है.
सजित प्रेमदासाः विपक्षी नेता प्रेमदासा अपनी समागी जन बलावेगाया पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनके पिता 1993 में हत्या किए जाने से पहले तक श्रीलंका के दूसरे कार्यकारी राष्ट्रपति थे.
नमल राजपक्षेः 2005 और 2015 में देश की अगुवाई करने वाले महिंदा राजपक्षे के बेटे हैं नमल राजपक्षे. वो एक ताक़तवर राजनीतिक परिवार से आते हैं, लेकिन उन्हें मतदाताओं का मन जीतना होगा, जो आर्थिक संकट के लिए इसी परिवार को ज़िम्मेदार मानते हैं.
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श्रीलंका में मतदाता वरीयताक्रम में तीन उम्मीदवारों में से रैंकिंग के आधार पर एक विजेता को चुनते हैं.
अगर एक उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत मिल जाता है तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाएगा.
अगर ऐसा नहीं हुआ तो दूसरे दौर की मतगणना कराई जाएगी, इसके बाद दूसरी और तीसरी वरीयता के वोटों की गिनती की जाएगी.
श्रीलंका में अभी तक दूसरी और तीसरी वरीयता वाले वोटों की गिनती तक नहीं जाना पड़ा है, क्योंकि पहले वरीयता वोटों के आधार पर एक अकेला उम्मीदवार हमेशा ही स्पष्ट विजेता के रूप में उभरा है.
लेकिन इस साल कुछ अलग हो सकता है.
आईसीजी के कीनान ने कहा, “ओपिनियन पोल्स और शुरुआती चुनाव प्रचार अभियानों से पता चलता है कि पहली बार ऐसा हो सकता है कि पहली बार कोई उम्मीदवार पूर्ण बहुमत न हासिल कर सके.”
उनके मुताबिक़, “उम्मीदवार, पार्टी नेता और चुनाव अधिकारी को किसी भी संभावित विवाद को शांति पूर्वक और स्थापित प्रक्रियाओं के तहत हल करने के लिए तैयार रहना चाहिए.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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