महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य बनाने के फै़सले का विरोध होने के बाद सरकार ने इसे रद्द कर दिया था.
इस मुद्दे के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र की राजनीति के दो बड़े नेता, राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे मिलकर मार्च निकालने वाले थे, लेकिन सरकार के फ़ैसला रद्द करने के बाद दोनों नेताओं ने मार्च की बजाय विजय रैली निकाली.
इस रैली में शिवसेना (यूबीटी), महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) और अन्य राजनीतिक दलों के कुछ नेता भी मौजूद थे.
एमएनएस अध्यक्ष राज ठाकरे ने रैली में कहा, "महाराष्ट्र किसी भी झगड़े या विवाद से बड़ा है. हम 20 साल बाद एक साथ आ रहे हैं. जो बालासाहेब नहीं कर सके, जो कई लोग नहीं कर सके. वह देवेंद्र फडणवीस ने कर दिखाया है."
वहीं शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा, "हमारे बीच की बाधा को उन्होंने हटा दिया गया है और अब हम एक-दूसरे का साथ देने के लिए एक साथ आए हैं. हम एक साथ मिलकर आपको बाहर करेंगे."
लेकिन ये सवाल अब भी बना हुआ है कि अब जब ये दोनों एक साथ आ गए हैं तो वास्तव में क्या होगा और इससे किसे क्या संदेश दिया जाएगा.
ये समझने के लिए बीबीसी ने कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों से बात की राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अगर राजनीतिक रूप से एक साथ आते हैं तो वो अपने बीच के मतभेदों को कैसे दूर रखेंगे.
आइए जानते हैं कि शनिवार को आयोजित विजय रैली के मायने क्या हैं. साथ ही ये भी समझते हैं कि रैली में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की भूमिका क्या थी.
उद्धव ठाकरे ने क्या कहा?मुंबई के वर्ली में आयोजित इस रैली में उद्धव ठाकरे ने भाजपा और शिवसेना (यूबीटी) गुट के एकनाथ शिंदे की तीखी आलोचना की.
उन्होंने कहा, "महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में भाजपा ने 'बटेंगे तो कटेंगे' जैसे नारे देकर लोगों के बीच तनाव भड़काए और चुनाव जीते. राजनीति के मैदान में भाजपा व्यवसायी है. वो इस्तेमाल करते हैं और फिर फेंक देते हैं."
एकनाथ शिंदे की आलोचना करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा, "कल एक व्यक्ति ने 'जय गुजरात' का नारा लगाया. जो व्यक्ति अपने नेता के आने पर 'जय गुजरात' कहता है, वह मराठी का चैंपियन कैसे हो सकता है?"
उन्होंने कहा कि बालासाहेब ठाकरे कहा करते थे किसी के साथ अन्याय मत करो, लेकिन अगर कोई तुम्हारे ख़िलाफ़ हाथ उठाता है, तो उसे अपने पास मत रखो.
उन्होंने कहा, "आप कहते हैं कि मराठी भाषा के नाम पर धमकाओ मत, लेकिन क्या कभी किसी मराठी व्यक्ति ने महाराष्ट्र के बाहर किसी को धमकाया है?"
उद्धव ठाकरे ने कहा, "मैं महाराष्ट्र के लोगों से निवेदन करता हूं कि हम चाहे किसी भी पार्टी से जुड़े हों, लेकिन अब हमें महाराष्ट्र की तरह एकजुट होना चाहिए. भाजपा में जो मराठी हैं वो भी इसमें शामिल हों. अगर मराठी लोग इसे लेकर शोर मचाएं और उनकी बात सुनी न जाए तो ऐसे में उनके लिए मर जाना बेहतर है."
उन्होंने कहा, "हम किसी को नहीं धमकाएंगे, लेकिन हम उन लोगों को बर्दाश्त नहीं करेंगे जो हमें धमकाते हैं. आइए सभी मतभेदों को ख़त्म करें और सभी मराठी लोग एक साथ मज़बूत बनें. मराठी लोगों को ये नहीं भूलना चाहिए कि हमें मराठी पहचान को बांटना नहीं है, हमें इस पहचान को मिटाना नहीं चाहिए."
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इसी सभा में राज ठाकरे ने कहा, "मार्च आज ही होना चाहिए था और ये एक बेहतरीन उदाहरण होता कि कैसे हर तरफ से मराठी लोग एक साथ आ रहे हैं. लेकिन हमें मार्च के कारण की वजह से कार्यक्रम में बदलाव करना पड़ा. आज की ये सभा शिवतीर्थ में होनी थी, लेकिन बारिश के कारण ऐसा नहीं हो सका."
उन्होंने कहा, "यह सब तब शुरू हुआ जब मैंने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि महाराष्ट्र का मुद्दा किसी भी झगड़े या विवाद से बड़ा है. दो दशक के बाद हम फिर से एक साथ आ रहे हैं. जो बालासाहेब नहीं कर सके, जो कई लोग नहीं कर सके, वह देवेंद्र फडणवीस ने किया."
राज ठाकरे ने साथ आने के फ़ैसले पर कहा, "मराठी ही हमारा एकमात्र एजेंडा है, हम महाराष्ट्र को बंटता हुआ नहीं देखना चाहते."
दो दशक के बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ आने से ये सवाल उठ रहा है कि दोनों एक मंच पर तो आ गए लेकिन क्या वे इतने सालों के अपने मतभेदों को भूल पाएंगे?
महाराष्ट्र की राजनीति पर पैनी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार हेमंत देसाई से हमने पूछा कि इन दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता सभी चुनावों में एक-दूसरे का विरोध करते दिखते हैं, शाखा स्तर पर भी एक-दूसरे के ख़िलाफ़ नज़र आते हैं, इतनी जल्दी ये सभी मतभेद भुलाकर साथ कैसे काम कर सकते हैं.
हेमंत देसाई कहते हैं कि जब आपातकाल के कुछ महीने बाद जनता पार्टी में कई पार्टियां एक साथ आई थीं, तो 17-18 साल के विरोध के बाद ये दोनों दल एक साथ आ ही सकते हैं.
वह कहते हैं, "पिछले दो साल से दोनों पार्टियों को साथ लाने के लिए कोशिशें हो रही थीं. एमएनएस नेता बाला नंदगांवकर ने दोनों के एक साथ आने को लेकर सीधा बयान दिया था. जब राज ठाकरे ने एक साथ रैली करने का संदेश दिया, तो जो लोग परसों तक एक-दूसरे के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी कर रहे थे, वो आनन-फानन में साथ आ गए. इसका मतलब ये है कि इन दोनों पार्टियों में केवल आदेशों का पालन हो रहा है. लेकिन अगर जनता तय कर लेगी, तो उन्हें करना ही पड़ेगा."
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत देसाई का कहना है, "पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने बंगाली पहचान को हथियार बनाया, बिहार में नीतीश कुमार ने बिहारी पहचान को ज़ोर-शोर से उठाया. ये यहां भी हो सकता है. मराठी लोग अब मुंबई में बदलाव देख रहे हैं. लोगों के बीच ग़रीबों और मध्यम वर्ग को लूटने वालों के ख़िलाफ़ में काफी नाराज़गी है और ठाकरे भाइयों ने इसे अपना मुद्दा बना लिया है."
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वरिष्ठ पत्रकार अमेय तिरोडकर ने बीबीसी से कहा, "ये दोनों पार्टियां एक साथ आकर सिर्फ़ भाषा के मुद्दे पर आगे नहीं बढ़ सकती, उन्हें प्रदेश के लोगों को एक वैकल्पिक एजेंडा देना होगा और बताना होगा कि वो महाराष्ट्र को और मुंबई को क्या देंगे."
वह कहते हैं, "अगर बीजेपी सत्ता हासिल करने के लिए गठजोड़ कर सकती है, तो इन दोनों के साथ आने में क्या दिक्कत है? ये दोनों अगर साथ में राजनीति के मैदान में उतरे तो एकनाथ शिंदे के लिए न केवल मुंबई में बल्कि ठाणे में भी राजनीतिक मुश्किल हो जाएगी. मुझे लगता है कि इन दोनों को एमके स्टालिन और रेवंत रेड्डी जैसे नेताओं को बुलाना चाहिए और लोगों की पहचान के मुद्दे को जिंदा रखना चाहिए."
अमेय तिरोडकर ने कहा, "भाजपा बहुत ही चालाकी से राजनीति करती है. मुंबई में मराठी के साथ-साथ अन्य भाषाएं बोलने वाले लोग भी हैं. इनका इस्तेमाल भाजपा मराठी ध्रुवीकरण के ख़िलाफ़ कर सकती है. उसकी नज़र मुंबई के साथ-साथ मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर क्षेत्र) की नगरपालिकाओं पर भी है."
अमेय तिरोडकर ने कहा कि ये समझना होगा कि अगर भाजपा एकनाथ शिंदे का महत्व कम करने के लिए इस मामले में चुप है तो इसका असर उसपर भी पड़ेगा.
बीते वक्त में राज ठाकरे की नज़दीकी भाजपा से रही है, जबकि उद्धव ठाकरे भाजपा के विरोध में हैं. कहा ये जा रहा है कि अगर भाजपा राद ठाकरे से रिश्ते मज़बूत रखती तो वो उद्धव के साथ हाथ नहीं मिलाते.
वरिष्ठ पत्रकार अमेय तिरोडकर का कहना है, "लेकिन अब इन दोनों भाइयों के लिए ये बताना काफी नहीं होगा कि वो एक साथ आए हैं. उन्हें बीजेपी का एक विकल्प खड़ा करना होगा. केवल भाषा के मुद्दे से काम नहीं चलेगा, उन्हें महाराष्ट्र और मुंबई को ये बताना होगा कि साथ में आकर वो क्या देंगे."
हमें धारणा की लड़ाई में उतरना होगा - आशीष जाधव
इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार आशीष जाधव कहते हैं, "मुंबई के मतदाताओं पर नज़र डालें तो मराठी भाषियों के साथ-साथ मुस्लिम मतदाताओं का रुझान भी उद्धव ठाकरे के पक्ष में है."
आशीष जाधव का मानना है कि मुंबई में कोंकणी मुसलमानों, महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों के मुसलमानों और उत्तर भारतीय मुसलमानों के बीच कोविड काल से ही रुझान उद्धव ठाकरे के पक्ष में रहा है.
वह कहते हैं, "आज धारणा बनाने की ज़रूरत है. जिस तरह भाजपा ये धारणा बनाती है कि ये दोनों पार्टियां हमारे ख़िलाफ़ हैं, उसी तरह इन्हें भी धारणा बनाने की ज़रूरत है. राज ठाकरे ने कहा कि जो बालासाहेब नहीं कर सके, वह देवेंद्र फडणवीस ने किया, यह महत्वपूर्ण बयान है, उन्होंने इशारा दिया है कि ये फेविकोल का मज़बूत जोड़ बन गया है."
आशीष जाधव ने कहा, "भाजपा ने यह धारणा बनाई थी कि वह गवर्नेंस के पक्ष में है. इस सभा ने उस धारणा को तोड़ दिया है. मराठी लोगों को आश्चर्य हो रहा होगा कि इन सबमें महाराष्ट्र कहां है. ये भी चर्चा हो रही होगी कि राज ठाकरे अब भाजपा की बात नहीं सुन रहे हैं."
आशीष समझाते हैं कि देखा जाए तो दोनों ठाकरे भाइयों ने अपनी-अपनी स्क्रिप्ट पहले ही लिख ली थी. उद्धव ठाकरे ने जाति-आधारित विभाजन का मुद्दा उठाया और संकेत दिया कि मुंबई महानगरपालिका में दोनों के गठबंधन से भाजपा मराठी और गैर-मराठी के ध्रुवीकरण की राजनीति कर सकती है.
मुंबई की पूर्व मेयर और शिवसेना (यूबीटी) गुट की नेता किशोरी पेडनेकर ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि दोनों पार्टियों के बीच अब राजनीतिक गठबंधन 100 फ़ीसदी होगा.
उन्होंने कहा, "अब दोनों के बीच राजनीतिक गठबंधन होगा. दोनों ने लोगों के सामने 'मन की बात' कही है और मराठी लोगों के लिए एक साथ आए हैं."
उन्होंने कहा, "जिस पार्टी पर प्रधानमंत्री 70,000 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं, अगर वह साथ आ सकती है तो हम एक साथ क्यों नहीं आ सकते?"
कुछ वक्त पहले (नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी) एनसीपी ने बीजेपी का दामन थाम लिया था. प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी पार्टी पर 70 हज़ार करोड़ के घाटोले का आरोपलगाया था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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