कर्नाटक में एक गुफा में मिली रूसी महिला रविवार रात रूस रवाना हो गई. कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें और उनके बच्चों को इस यात्रा के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ जारी किए गए थे.
40 वर्षीय नीना कुटीना और उनकी सात साल और पाँच साल की दो बेटियों को जुलाई महीने की शुरुआत में उत्तर कन्नड़ जिले के गोकर्ण में मौजूद रामतीर्थ पहाड़ियों की एक गुफा में पाया गया था.
वो यहां क़रीब दो महीने से रह रही थीं. उत्तर कन्नड़ जिला पर्यटकों के लिए मशहूर गोवा राज्य की सीमा से सटा हुआ है.
नीना कुटीना के पास भारत में रहने के लिए वैध दस्तावेज नहीं थे. उन्हें बेंगलुरु से क़रीब 76 किमी दूर टुमकुर स्थित विदेशी महिलाओं के लिए बनाए गए एक रिस्ट्रिक्शन सेंटर में भेज दिया गया था.
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विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफ़आरआरओ) के सूत्रों ने बीबीसी हिंदी को बताया, "माँ और तीन बच्चे, जिनमें एक बच्चा उनके पिछले रिश्ते से है, रविवार रात रूस रवाना हो गए."
यह आदेश कर्नाटक उच्च न्यायालय के जस्टिस बीएम श्याम प्रसाद ने दिया था, जो डॉर श्लोमो गोल्डस्टीन की याचिका पर आया था.
गोल्डस्टीन दोनों लड़कियों के पिता हैं. उन्होंने अपनी बेटियों को निर्वासित न किए जाने की मांग की थी और कोर्ट से उनकी कस्टडी मांगी थी.
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इसी साल 9 जुलाई को कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ ज़िले के सुदूर इलाके़ की एक गुफा में पुलिस को एक रूसी महिला और दो बच्चियां मिली थीं.
पुलिस उस समय हैरान रह गई जब गश्त करने वाली टीम को गुफा की एंट्री पर लगभग '700 से 800 मीटर नीचे' कुछ कपड़े दिखे थे, जिससे उन्हें गुफा में किसी के होने का संकेत मिला.
जब गश्ती टीम जंगल से गुज़र रही थी, तब उन्हें एक विदेशी दिखने वाली बच्ची गुफा से दौड़कर बाहर निकलती दिखी. बच्ची को जंगल में देखकर पुलिस टीम को हैरानी हुई.
पुलिस के मुताबिक़ महिला साल 2016 में बिजनेस वीज़ा पर भारत आई थी और उनकी वीज़ा की अवधि लगभग आठ साल पहले ख़त्म हो चुकी है.
पुलिस ने बीबीसी को बताया कि उन्हें बच्चियों की माँ को यह समझाने में काफी मुश्किल हुई कि इस एकांत जगह में काफ़ी सांप पाए जाते हैं और यहां रहना ख़तरनाक है.
पुलिस के मुताबिक़ इसपर महिला ने कहा, "जानवर और साँप हमारे दोस्त हैं, इंसान खतरनाक हैं."
उन्होंने यह भी कहा कि बच्चे खुश और स्वस्थ हैं.
यह गुफा एक गाँव के पास थी, जिससे उन्हें भोजन और अन्य ज़रूरी सामान ख़रीदने में आसानी होती थी.
हालाँकि, पुलिस ने कोई जोखिम नहीं लिया क्योंकि यह इलाक़ा मानसून के दौरान भूस्खलन के लिए जाना जाता है.
इसके बाद पुलिस माँ और बच्चों को मेडिकल जांच के लिए ले गई और कानूनी औपचारिकताओं के बाद उन्हें कर्नाटक के टुमकुर के केंद्र भेज किया गया.
वहाँ एक डीएनए परीक्षण किया गया, जिससे यह साबित हुआ कि दूसरी लड़की भी नीना की ही संतान है. यह काफ़ी अहम बात थी क्योंकि दूसरी बच्ची के पास यात्रा दस्तावेज तो दूर बर्थ सर्टिफ़िकेट तक नहीं था. इस बच्ची का जन्म गोवा में ही हुआ था.
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गोल्डस्टीन ने अदालत को बताया कि दूसरी बच्ची की ज़िम्मेदारी उनकी है और वे माँ के साथ ही दोनों बच्चों की देखभाल कर रहे हैं. इसराइली व्यवसायी गोल्डस्टीन ने एक टीवी चैनल को बताया कि नीना बिना बताए गोवा से चली गई थीं और उन्होंने गोवा पुलिस में उनकी गुमशुदगी की शिकायत भी दर्ज कराई थी.
उन्होंने यह भी कहा कि वे उन्हें रूस जाने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे.
गोल्डस्टीन की वकील बीना पीके ने तर्क दिया कि माँ और बच्चों का "निर्वासन" बच्चों के हित में नहीं होगा और भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (यूएनसीआरसी) पर हस्ताक्षर किए हैं और यह गोवा चिल्ड्रन एक्ट, 2003 के मुताबिक़ भी उचित नहीं है.
भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अरविंद कामथ ने अदालत को बताया कि इसे निर्वासन नहीं कहा जा सकता क्योंकि माँ ने ख़ुद रूसी दूतावास को पत्र लिखकर रूस लौटने की इच्छा जताई थी.
उन्होंने कहा, "जब कोई स्वेच्छा से अपने देश लौटना चाहता है, तो उसे निर्वासन नहीं कहा जा सकता."
वकील बीना ने यह भी कहा कि दूसरी बच्ची जाहिर तौर पर गोवा में पैदा हुई थी और गोल्डस्टीन ने उसकी कस्टडी के लिए आवेदन किया है, जो लंबित है. ऐसे में माँ और बच्चों को रूस भेजना यूएनसीआरसी के खिलाफ होगा.
हालांकि कामथ ने तर्क दिया, "जो भी व्यक्ति भारत में अधिक समय तक रहता है, उसे विदेशी अधिनियम के अनुसार अपने देश वापस भेजा जाना चाहिए. यदि याचिकाकर्ता का बच्चों पर अधिकार है, तो उसे उस देश में जाकर कानूनी लड़ाई लड़नी चाहिए. भारत को इस लड़ाई का मैदान नहीं बनाया जा सकता."
नीना कुटीना के पक्ष में एक निर्णायक बात यह रही कि उन्होंने चेन्नई स्थित रूसी वाणिज्य दूतावास को पत्र लिखकर अपने देश लौटने की इच्छा जताई थी. उनके ईमेल के आधार पर, रूसी वाणिज्य दूतावास ने उन्हें आपातकालीन यात्रा दस्तावेज (ईटीडी) जारी किए, जो 25 सितंबर से 9 अक्टूबर तक वैध थे.
इस मामले के अन्य अहम मुद्देअदालत ने यह सवाल उठाया कि निकासी परमिट जारी करना क्या बच्चों के हितों के खिलाफ होगा, और इस पर भी जोर दिया कि याचिकाकर्ता यह स्पष्ट नहीं कर सके कि माँ और दोनों बच्चे एकांत गुफा में क्यों रह रहे थे.
जस्टिस श्याम प्रसाद ने कहा, "इस न्यायालय का विचार है कि बच्चों के सर्वोत्तम हितों से जुड़े सवालों की जांच करना न्यायसंगत और उचित होगा, विशेष रूप से इस मामले की पृष्ठभूमि और अन्य ख़ास परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए."
अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि चेन्नई स्थित रूसी वाणिज्य दूतावास ने आपातकालीन यात्रा दस्तावेज (ईटीडी) जारी किए थे और बेंगलुरु स्थित विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफ़आरआरओ) से अनुरोध किया कि निकासी परमिट जारी किया जाए
अदालत ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि माँ और बच्चों को रूस यात्रा के लिए आवश्यक दस्तावेज जारी करना भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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