विपक्षी दलों ने हाल ही में बिहार में चल रही एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिविजन) प्रक्रिया और चुनावों में कथित गड़बड़ी को लेकर चुनाव आयोग पर सवाल उठाए.
विपक्ष ने इस प्रक्रिया के ख़िलाफ़ बिहार में 'वोटर अधिकार यात्रा' शुरू की है, जो अभी जारी है.
असम से कांग्रेस के तीन बार के सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि मोदी सरकार के आने के बाद चुनाव आयोग की गरिमा घटी है.
उन्होंने बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले मतदाता सूची में संशोधन करने के समय पर सवाल उठाया और मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटाने के साथ ही आधार कार्ड को लेकर चुनाव आयोग के रुख़ की आलोचना की.
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बीबीसी हिंदी के संपादक नितिन श्रीवास्तव ने एसआईआर से जुड़े सवालों के साथ-साथ राहुल गांधी और बीजेपी से जुड़े मुद्दों पर गौरव गोगोई से ख़ास की.
उन्होंने बताया कि इस बार के संसद के मानसून सत्र में विपक्षी पार्टियों ने दो अहम मुद्दों पर पूरा जोर दिया है. पहला, ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम को लेकर सरकार की जवाबदेही और दूसरा, बिहार में एसआईआर का मामला.
इस बातचीत को संक्षिप्त सवाल-जवाब के रूप में यहां दिया जा रहा है-
'चुनाव आयोग पक्षपात कर रहा है'सवालः इस समय आपके शीर्ष नेता राहुल गांधी, बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन को लेकर एक यात्रा निकाल रहे हैं. इस मुद्दे से बिहार कितना जुड़ रहा है और राहुल गांधी से कितना जुड़ पा रहा है?
जवाबः हमें जो जानकारी मिल रही है वो ये है कि बहुत ही एक शानदार रिस्पॉन्स हमको मिल रहा है. क्योंकि लोग समझते हैं कि किसी सरकार के आधार पर उसे हटाने या वापस लाने का उनका जो संवैधानिक और मूल अधिकार है उस पर सवालिया निशान लगाया जा रहा है.
अच्छा होता कि चुनाव आयोग की पूरी प्रक्रिया पर जो सवाल उठाए जा रहे हैं उनका वो पूरी निष्पक्षता से जवाब देता. कहीं ना कहीं चुनाव आयोग खुद की छवि का खंडन कर रहा है.
सवालः इलेक्शन कमिशन कहता है कि आपकी पार्टी कांग्रेस और राहुल गांधी एक दुष्प्रचार अभियान चला रहे हैं, जनता को गुमराह कर रहे हैं. ये एक ऐसी प्रक्रिया है जो सालों से होती रही है. दोनों तरफ़ से सबूत दिए जा रहे हैं. एक संवैधानिक निकाय को चुनौती देना क्या एक सोची समझी रणनीति है?
जवाबः राहुल गांधी ने महादेवपुरा में लगभग एक लाख फ़र्जी नाम किस प्रकार से वोटर लिस्ट में शामिल हुए उसे तथ्यों के आधार पर प्रकाशित किया. उसके बाद बीजेपी के अनुराग ठाकुर ने दूसरी विधानसभाओं की वोटर लिस्ट में फ़र्जी नाम को लेकर एक प्रेसवार्ता की.
लेकिन जब हम चुनाव आयोग की बात सुनते हैं तो लगता है कि वो सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी पर निशाना साध रहे हैं. उन्होंने बीजेपी पर सवाल नहीं उठाए. क्यों वो अनुराग ठाकुर से हलफ़नामा नहीं मांगते? आज चुनाव आयोग क्या स्पष्टीकरण देता है कि अगर उनसे कोई ग़लती हुई तो उसे पकड़ने ज़िम्मेदारी राजनीतिक दलों की है. जबकि ये ज़िम्मेदारी उनकी है कि वे ग़लत वोटर लिस्ट प्रमाणित न करें.
एसआईआर में 65 लाख मतदाताओं को हटाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की राय के ख़िलाफ़ उन्होंने हर विषय पर दलीलें दीं. आयोग ने कहा कि इसका स्पष्टीकरण देना ज़रूरी नहीं, आधार कार्ड ज़रूरी नहीं है. फिर भी फ़ैसला इनके विपरीत आया.
सवालः सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार को मान्य किया जाए, 65 लाख लोगों की लिस्ट छापी जाए. लेकिन कोर्ट ने शुरू से इस प्रक्रिया को ग़लत नहीं ठहराया. तो इस एसआईआर की प्रक्रिया पर सवाल उठाना क्या सही था?
जवाबः चुनाव आयोग को हर पार्टी को विश्वास में लेकर बातचीत करनी चाहिए थी. क्या उन्होंने किसी पार्टी से बातचीत की? क्यों बिहार के चुनाव के दो-तीन महीने पहले ये करना पड़ा? जबकि बिहार में जून के महीने में एक समरी रिविज़न हो चुका था. तो ये क्यों करना पड़ा?
कहीं ना कहीं देश देख रहा है कि अपनी अध्यक्षता में एक बार टीएन शेषण जिस चुनाव आयोग की छवि को बहुत ऊंचाई तक ले के गए, आज मोदी सरकार के आने के बाद चुनाव आयोग की गरिमा में बहुत गिरावट आई है. बहुत सवाल उठे हैं.
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सवाल: कांग्रेस के इतिहास में एक ऐसा भी दौर रहा है, जब कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों पर निरंकुश होने, भाई-भतीजावाद करने, मनमाफ़िक सरकार चलाने और इमरजेंसी लगाने के आरोप लगे थे. उस दौरान भी इस तरह की संस्थाओं पर सवाल उठाए गए थे. विरोध हुए, जुलूस निकले, अख़बारों ने लिखा. इसे कैसे सही ठहराएंगे?
जवाब: जिस दौर का ज़िक्र कर रहे हैं, उसके बाद कई कांग्रेस सरकारें आईं और कई कांग्रेस विरोधी सरकारें भी बनीं. आज भी जनता अपना मत देना चाहती है. जनता अपेक्षा करती है कि भारत सरकार और केंद्रीय चुनाव आयोग मशीन रीडेबल वोटर लिस्ट सबको उपलब्ध कराए, ताकि एक नाम चार बार दर्ज न हो. आज तकनीक इतनी उन्नत है कि अगर कोई व्यक्ति चार अलग-अलग प्रदेशों में दर्ज है तो चुनाव आयोग तुरंत उसे पकड़ सके.
आख़िर उनके पास अफ़सरों की कोई कमी नहीं है और अगर कमी है तो संसद को बताएं, हम उन्हें और ताक़त देंगे. विपक्ष का काम हर समय जनता के हित में सरकार से सवाल पूछना होता है और वही कर्तव्य आज हम निभा रहे हैं.
सवाल: इंडिया गठबंधन में बहुत सारे मतभेद हैं, उसमें पार्टियां आती-जाती रहती हैं. इसमें किस बात को लेकर सर्वसम्मति है?
जवाब: मुझे तो काफ़ी जगह सर्वसम्मति दिखती है, क्योंकि मैं उन बैठकों में उपस्थित भी रहा हूं जहां विभिन्न दलों के नेता आते हैं. अगर आज के माहौल को देखूं तो हम सब सदन के अंदर भी एकजुट हैं. यह एक लोकतांत्रिक माहौल है जहां सभी को अपनी बात रखने का अवसर मिलता है. यह एनडीए गठबंधन नहीं है जहां सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी जी बोलते हैं और बाकी सब चुपचाप बैठकर सुनते हैं. यह इंडिया गठबंधन है.
हम सभी की बात सुनते हैं, सम्मान करते हैं और बाद में सार्वजनिक एकजुटता के साथ आगे बढ़ते हैं.
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सवाल: राहुल गांधी पर वंशवाद का आरोप लगता है. उनके पास खानदान की विरासत है. एक और आरोप है कि वे शुरुआत तो अच्छी करते हैं लेकिन उसे जीत में बदल नहीं पाते.
जवाब: मैं पहली बार 2014 में सांसद बना, उस समय हमारी पार्टी में लगभग 44 सांसद थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में हमारे लगभग 12 से 14 सांसद और बढ़े. फिर आया 2024 का चुनाव. जिन्होंने 400 पार का सपना देखा, वे बहुमत भी नहीं बना पाए और हम 100 तक पहुंचे. असम में हमारा प्रदर्शन बेहतरीन रहा. वहां हमने एक क्षेत्रीय दल को 10 लाख वोट से हराया. जिस सीट से मैं जीता, वहां पिछली दो बार से हम जीत नहीं पा रहे थे.
सवाल: असम में 126 विधायक हैं. 2011 में जब आपके पिता तरुण गोगोई सबसे बड़े नेता थे तब कांग्रेस के पास 78 सीटें थीं. 2016 में यह घटकर 26 रह गईं और 2021 में 29 ही रहीं. हिमंत बिस्वा सरमा आपके पिता के साथ थे और आज वे लगातार आपको चुनौती दे रहे हैं. आप नए प्रदेश अध्यक्ष हैं, अपने गृह राज्य में कांग्रेस को खड़ा करने में आपके सामने कितनी बड़ी चुनौती है?
जवाब: असम में कांग्रेस की सरकार 2001 से 2016 तक यानी लगभग 15 साल लगातार रही. उसके बाद असम के लोगों ने एक विकल्प के तौर पर सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में बीजेपी को मौका दिया. उसी सरकार को 2021 में भी जनता ने दोबारा चुना. हमने जनादेश स्वीकार किया. लेकिन असम के वर्तमान मुख्यमंत्री, जो आदिवासी, एसटी-एससी की बात करते हैं, उन्होंने राजनीतिक कुटिलता से एक जनप्रिय मुख्यमंत्री को हटाकर खुद कुर्सी संभाल ली.
सवाल: आपने सोनोवाल बनाम हिमंत की बात की. क्या आप इतिहास दोहराने की कोशिश कर रहे हैं, जैसा बीजेपी ने कांग्रेस के साथ किया था?
जवाब: बीजेपी तो वॉशिंग मशीन है. जब कोई कांग्रेस में रहता है तो उसी पर आरोप लगते हैं और जैसे ही वह बीजेपी में शामिल हो जाता है, तो महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री बन जाता है, असम में मुख्यमंत्री बन जाता है या किसी और प्रदेश में मंत्री बना दिया जाता है.
सवाल: बीजेपी का कहना है कि असम में कांग्रेस खुद ही कमज़ोर स्थिति में आ गई है क्योंकि वह फिर से वंशवादी राजनीति में लौट आई है?
जवाब: बीजेपी की यह दोहरी नीति है. कैबिनेट में आपको कांग्रेस से आए लोग दिखेंगे, लेकिन बीजेपी के कितने नेता राजनीतिक परिवारों से नहीं हैं? उनके सहयोगी दल चाहे बिहार में हों, जम्मू-कश्मीर में हों या पंजाब में, अधिकतर दल लंबे समय से एक ही परिवार से जुड़े हुए हैं.
एक समय तो प्रधानमंत्री ने ही सदन में हमारे सवाल का उत्तर देते हुए कहा था कि इसमें उन्हें कोई हर्ज नहीं दिखता अगर एक ही परिवार से कई लोग राजनीति में आएं. इससे उलट मैं इसे छुपाता नहीं. मैं गर्व से कहता हूं कि मैं स्वर्गीय तरुण गोगोई का बेटा हूं.
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सवाल: आपने यह भी कहा था कि अगर राजनीति में रहना है तो मोटी चमड़ी होना बहुत ज़रूरी है. निजी तौर पर और कांग्रेस में आपको किस स्तर की चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
जवाब: देखिए, मुझे कांग्रेस पार्टी ने बहुत सी ज़िम्मेदारी दी है. हमारी कोशिश रही है कि जो भी ज़िम्मेदारी हमें मिले, उसे पूरी ताक़त से निभाएं. राजनीति के अपने नुकसान भी हैं.
सवाल: पहली बार जब यह कहा गया कि आपकी पत्नी ब्रिटिश नागरिक हैं, वो आईएसआई की एजेंट हैं, तब आपकी प्रतिक्रिया कैसी थी?
जवाब: मैं तो काफ़ी आश्चर्यचकित था कि बीजेपी कांग्रेस पार्टी को लेकर इतनी चिंतित है कि वह झूठ को एक बैसाखी की तरह इस्तेमाल करेगी. मैं तो बीजेपी का आभारी हूं कि उन्होंने अपनी मानसिक कमजोरी को साफ़ तौर पर ज़ाहिर किया. जिस दिन यह बात सामने आई, उसी दिन हमारे दल के नेताओं ने भी बीजेपी की इस कमज़ोरी को समझा और शायद उसके बाद ही तय किया गया कि असम में हमें और ध्यान देना चाहिए और प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मुझे चुना गया.
सवाल: ऑपरेशन सिंदूर के बाद कहा गया कि पाकिस्तान को लेकर गौरव गोगोई का सॉफ्ट कॉर्नर है?
जवाब: देखिए, झूठ बीजेपी की रोज़ी-रोटी है. वो चाहे हमारे संबंध में हों या किसी और के संबंध में. महिलाओं पर कीचड़ उछालना इनकी पुरानी आदत है. "50 करोड़ की गर्लफ्रेंड", "जर्सी गाय" जैसे कई शब्द बीजेपी के नेताओं, और वह भी बड़े-बड़े नेताओं, की ओर से कहे गए. इसीलिए आज, दस साल बाद, मुझे लगता है कि काफ़ी लोग जिन्होंने विकास के नाम पर बीजेपी को वोट दिया था, अब उससे दूर हो चुके हैं.
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