जम्मू-कश्मीर में नई सरकार बनने के बाद चरमपंथी घटनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. हाल के दिनों में किश्तवाड़ और श्रीनगर में ऐसी कई घटनाऍं हुई हैं.
पिछले इतवार 10 नवंबर को किश्तवाड़ में चरमपंथियों और भारतीय सेना के बीच एक मुठभेड़ हुई.
इसमें सेना के एक अधिकारी मारे गए और तीन जवान घायल हो गए. इस इलाक़े में चरमपंथियों को खोजने के लिए सोमवार से तलाशी अभियान चल रहा है.
बीते हफ़्ते ही किश्तवाड़ के एक गाँव में विलेज डिफेंस गार्ड्स (वीडीजी) से जुड़े दो लोगों की चरमपंथियों ने हत्या कर दी थी.
श्रीनगर की ज़बरवान पहाड़ियों में क़रीब दो दशक के बाद कोई चरमपंथी घटना हुई है.
उधर, सोपोर में भी पुलिस ने मुठभेड़ के दौरान इस इतवार को एक चरमपंथी को मारने का दावा किया है.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए ये भी पढ़ेंइस बीच, ताज़ा घटना के मुताबिक़, मंगलवार 12 नवंबर को उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा में सेना और चरमपंथियों के बीच मुठभेड़ शुरू हुई.
यह जानकारी श्रीनगर में भारतीय सेना के चिनार कोर ने एक्स पर दी है.
चिनार कोर ने पोस्ट किया है, “…नग्मार्ग, बांदीपोरा में आतंकवादियों की मौजूदगी की ख़ुफ़िया जानकारी मिली. इसके बाद भारतीय सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने संयुक्त अभियान शुरू किया. जब सुरक्षाबलों ने उन्हें चुनौती दी तो उन्होंने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. हमारे जवानों ने मुस्तैदी के साथ जवाबी कार्रवाई की. ऑपरेशन जारी है."
बीते एक महीने में कश्मीर घाटी में कई सारी चरमपंथी घटनाऍं हुई हैं. इनमें पंद्रह से अधिक लोग मारे गए हैं. इसमें प्रवासी मज़दूर, सैनिक और आम कश्मीरी शामिल हैं.
कश्मीर घाटी में चरमपंथ की ये घटनाऍं विधानसभा चुनाव ख़त्म होने और नई सरकार बनने के बाद हो रही हैं. ऐसा लग रहा था कि कश्मीर में चरमपंथी घटनाऍं कम हो रही हैं.
हालाँकि, जम्मू क्षेत्र में साल 2021 से चरमपंथ की घटनाऍं लगातार देखने को मिल रही हैं. जम्मू-कश्मीर में साल 1989 में चरमपंथ ने पाँव फैलाना शुरू किया था.
ये भी पढ़ेंसाउथ एशिया टेररिज़म पोर्टल पर चरमपंथी घटनाओं से जुड़े ऑंकड़े हैं. जम्मू-कश्मीर में साल 2020 में चरमपंथ से संबंधित हत्या की 140 घटनाऍं हुई थीं.
इन घटनाओं में 33 आम लोग, 56 सुरक्षाकर्मी और 232 चरमपंथी मारे गए थे.
साल 2021 में हत्या की 153 घटनाऍं हुईं. इनमें 36 आम लोग, 45 सुरक्षाकर्मी और 193 चरमपंथी मारे गए थे.
पोर्टल के मुताबिक़, इस तरह साल 2022 में चरमपंथ से संबंधित हत्या की 151 घटनाऍं सामने आई थीं. इन घटनाओं में 30 आम लोग, 30 सुरक्षाकर्मी और 193 चरमपंथी मारे गए थे.
साल 2023 में हत्या की कुल 72 घटनाऍं सामने आई हैं. इन घटनाओं में 12 आम लोग, 33 सुरक्षाकर्मी और 87 चरमपंथी मारे गए हैं.
हालाँकि, इस साल सात नवंबर तक कुल 58 घटनाऍं सामने आई हैं. इन घटनाओं में 30 आम लोग, 26 सुरक्षाकर्मी और 63 चरमपंथी मारे गए हैं.
(साउथ एशिया टेररिज़्म पोर्टल पर ये डाटा 10 नवंबर 2024 तक अपडेट है)
BBC विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं? Getty Images यह तस्वीर तीन नवंबर 2024 की है. श्रीनगर में हुए ग्रेनेड धमाके में दस लोग घायल हो गए थे'आतंकवाद ज़रूर कम हुआ है लेकिन...'
कश्मीर घाटी में हो रही घटनाओं पर बीबीसी ने सुरक्षा मामलों के कुछ जानकार से बात की. इनका कहना है, चरमपंथी ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि कश्मीर में सब कुछ ठीक नहीं है.
भारतीय सेना के उत्तरी कमान के पूर्व जनरल कमांडिंग अफसर (जीओसी) दीपेंद्र सिंह हूडा बताते हैं, "आतंकवादी, सरकार के इस दावे को ख़ारिज करना चाहते हैं कि अब सब कुछ ठीक है. सरकार का कहना है कि चुनाव हुए. सरकार भी बन चुकी है. कश्मीर में पर्यटक भी आ रहे हैं."
उन्होंने कहा, "अभी जो आतंकवादी घटनाऍं हो रही हैं, उसे इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. इसके ज़रिए वे संदेश दे रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में सब कुछ ठीक नहीं है. इसीलिए आतंकवादी ऐसे टारगेट चुन रहे हैं."
वे कहते हैं, "आतंकवादी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को निशाना बना रहे हैं. मज़दूरों को मार रहे हैं. विलेज डिफेंस गार्ड्स को मार रहे हैं."
हूडा मानते हैं कि चरमपंथ की घटनाऍं घुसपैठ के कारण हो रही हैं.
उनका कहना है, "जम्मू में आतंकवाद की घटनाएँ ताज़ा घुसपैठ के कारण हुई हैं. हाल के दिनों में कश्मीर के गुलमर्ग में हमला हुआ. वह भी ताज़ा घुसपैठ का नतीजा है."
वे कहते हैं, "पाकिस्तान की भी ये बताने की कोशिश है कि हालात सामान्य नहीं हैं. ये एक ख़ास तरह का माहौल बनाने की कोशिश है."
उन्होंने कहा, "आतंकवाद का सिर्फ़ इतना मतलब नहीं है कि किसी की गोली मारकर हत्या कर दी जाए. ये एक संदेश देने का भी मामला है. आतंकवाद इसी तरह ज़िंदा रहता है."
वे ध्यान दिलाते हैं, "अगर हम बीते साल और इस साल की तुलना करेंगे तो ऐसा नहीं है कि एकदम घटनाऍं बढ़ गई हैं. देखने की बात ये है कि आतंकवादी किस तरह का निशाना चुन रहे हैं. यही नहीं, घटना का वक़्त भी अहमियत रखता है."
जब उनसे ये पूछा गया कि चरमपंथ की ये घटनाऍं रुक क्यों नहीं रही हैं, इस पर हूडा कहते हैं, "अगर आप ये कहते हैं कि ग्राफ ज़ीरो तक पहुँच जाए तो ऐसा मुमकिन नहीं है."
वे कहते हैं, "अगर श्रीनगर के हर गाँव में सुरक्षा बलों की तैनाती की जाए, तो ये भी सही नहीं है. तब तो सिर्फ़ वर्दी वाले ही नज़र आऍंगे. लोग ये सवाल उठाऍंगे कि अगर हालात सामान्य हैं तो सुरक्षाबलों को हर जगह क्यों रखा गया है."
हूडा कहते हैं, "साल 2019 के बाद आतंकवाद ज़रूर कम हुआ है. लेकिन ऐसा कहना भी सही नहीं है कि अनुच्छेद 370 हर चीज़ में रुकावट था."
वे कहते हैं, "मेरे ख्याल से आतंकवाद कम करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है. आतंकवाद को कम करने के लिए कई चीज़ें दरकार हैं. विकास की ज़रूरत है. कट्टरता को कम करने की ज़रूरत है. स्थानीय लोगों तक पहुँच बनाने की ज़रूरत है."
गौरतलब है कि पाँच अगस्त 2019 को नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 ख़त्म कर दिया था. इसके ज़रिए मिला विशेष दर्जा भी समाप्त हो गया था.
इसके बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया.
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 ख़त्म करते वक़्त केंद्र सरकार ने दावा किया था कि चरमपंथ को ख़त्म करने और विकास की राहों को खोलने के लिए यह एक बड़ी रुकावट था.
दस वर्षों के बाद इस साल ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए गए हैं.
भारत सरकार और सुरक्षा एजेंसियाँ बार-बार पाकिस्तान पर जम्मू -कश्मीर में घुसपैठ कराने का इल्ज़ाम लगाती रही हैं. हालाँकि,पाकिस्तान इससे इनकार करता रहा है.
बीते महीने ही जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस की नई सरकार बनी है.
ये भी पढ़ेंजम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक शेष पॉल वेद चरमपंथ की घटनाओं पर कहते हैं, "ये सब कुछ घुसपैठ का नतीजा है. चुनाव से पहले जम्मू क्षेत्र में घुसपैठ हुई थी. वहाँ उन्होंने अपनी मौजूदगी दिखाई."
वे कहते हैं, "कश्मीर क्षेत्र में भी घुसपैठ हुई है. वहाँ भी वे हमले कर रहे हैं. दूसरी बात, पाकिस्तान नहीं चाहता है कि जम्मू-कश्मीर में शांति हो."
उन्होंने कहा, "वे सरकार के इस नैरेटिव को बदलना चाहते हैं कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद हालात सामान्य हो गए हैं. वे दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि कश्मीर का मुद्दा अब भी ज़िंदा है."
वे कहते हैं, "पाकिस्तान का ख़ुफ़िया और सैन्य तंत्र छिपे तौर पर इन चीज़ों को आगे बढ़ा रहा है."
वेद कहते हैं, "इंटेलिजेंस एजेंसियों के कारण ही आतंकवादियों तक पहुँचा जा रहा है. उनको मारा भी जा रहा है. सीमा पर घुसपैठ रोकने के लिए सेना और बीएसएफ के बीच साझेदारी है."
वे कहते हैं, "दूसरी ओर आतंकवादियों ने भी अपनी रणनीति में बदलाव किया है. वे अब मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करते हैं. जहाँ भी स्थानीय मदद मिलती है, सुरक्षाबल या पुलिस उन तक पहुँचती है. वे एनकाउंटर में मारे भी जा रहे हैं."
हालाँकि, चरमपंथी घटनाओं को छोड़ दें तो कश्मीर घाटी में साल 2019 के बाद पथराव की घटनाएँ बंद हो चुकी हैं. हड़तालों का सिलसिला बंद हो चुका है.
ये भी पढ़ेंजम्मू -कश्मीर पुलिस के पूर्व डीआईजी और लेखक अली मोहम्मद वाटली पूछते हैं, "मुझे आप ये बताऍं कि यहाँ आतंकवाद ख़त्म ही कब हुआ था. सिर्फ़ इतना होता है कि कभी इसका ग्राफ़्र बढ़ता है. कभी कम होता है."
वे कहते हैं, "बीते कुछ दिनों से कश्मीर घाटी में घटनाएँ बढ़ गई हैं. जम्मू-कश्मीर में नई सरकार बनी है तो वे अपनी मौजूदगी महसूस करवा रहे हैं."
उन्होंने कहा, "सरकार नई हो या पुरानी, मुझे नहीं लगता है कि ये चीज़ें कभी बंद हो सकती हैं. नई सरकार बनने से पहले जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल का शासन था. उस शासन में भी आतंकवाद की घटनाऍं हुई हैं."
उनका कहना है, "एक महीने पहले कश्मीर में ख़ामोशी थी. यह अब टूट रही है. ये घटनाएँ और भी बढ़ सकती हैं. अगर ये कहा जा रहा है कि आतंकवाद पर क़ाबू पाया गया है तो ग़लत है. क़ाबू पाना उसको कहते हैं, जब कोई आतंकवादी न रहे."
वे कहते हैं, "जो भी आतंकवादी घटनाऍं हो रही हैं, उनको अंजाम देने में स्थानीय भी शामिल हैं और बाहरी भी."
चरमपंथ रोकने के मुद्दे पर वह कहते हैं, "पहले तो इसे सीमा पर रोकना होगा. सीमा से ही आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में घुसते हैं. यहाँ पहुँच कर वे अपने साथ और भी चार लोगों को मिलाते हैं."
वे कहते हैं, "दूसरी बात यह है कि सीमा पार से अब ड्रग्स की भी तस्करी होती है. चरमपंथ और ड्रग्स का काफ़ी मज़बूत गठजोड़ है. जो ड्रग्स लेकर आता है, वह हथियार लेकर भी आता है."
जम्मू-कश्मीर में हर बड़ी चरमपंथी घटना घटने के बाद सरकार सुरक्षाबलों को चरमपंथ के ढाँचे को नष्ट करने का आदेश जारी करती रही है.
जम्मू क्षेत्र में साल 2021 से एक बार फ़िर चरमपंथ की घटनाऍं शुरू हुई थीं.
हालाँकि, इन चरमपंथी घटनाओं का दायरा जम्मू का पीरपंजाल (पूंछ-राजौरी) का इलाक़ा था. लेकिन, अब पूरा जम्मू क्षेत्र ही इस चपेट में आ चुका है.
ये भी पढ़ेंजम्मू-कश्मीर में चरमपंथ की घटनाओं में अचानक तेज़ी आने के बाद नेशनल कॉन्फ़्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मख्यमंत्री डॉक्टर फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने इन हमलों की जाँच की माँग की थी.
उनका कहना था कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि उमर अब्दुल्लाह की सरकार को कमज़ोर करने की कोशिश हो रही है.
हालाँकि, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इन चरमपंथी हमलों के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया है.
जम्मू-कश्मीर भाजपा के पूर्व अध्यक्ष रवींद्र रैना ने फ़ारूक़ अब्दुलाह द्वारा चरमपंथी घटनाओं की जाँच की माँग के बयान की आलोचना की है.
रैना ने दो नवंबर को कहा था, "जब फ़ारूक़ अब्दुल्लाह को पता है कि आतंकवाद पाकिस्तान से आ रहा तो फिर उसकी जाँच की क्या ज़रूरत है. हर एक को सेना, पुलिस और सुरक्षाबलों का समर्थन करना चाहिए."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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