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हरियाणा में पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की कम तादाद चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बनता

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Getty Images लिंगानुपात के आंकड़ों में हरियाणा का स्थान काफ़ी नीचे है

भारत की राजधानी दिल्ली के सटे हरियाणा में कुछ ही दिनों में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है.

राज्य में लिंगानुपात यानी पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की कम तादाद पर अलग-अलग मंचों से अक्सर चर्चा होती है लेकिन यह मुद्दा चुनाव में नज़र नहीं आता है.

भारत सरकार ने 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना की शुरुआत भी इसी राज्य से की थी.

हरियाणा में अविवाहित पुरुषों को राज्य सरकार की तरफ़ से पेंशन भी दी जाती है. राज्य में युवाओं की शादी के लिए लड़कियों की कमी भी एक बड़ी समस्या है.

यहाँ कई इलाक़ों में शादी के लिए लड़कियों की तलाश झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में की जाती है.

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हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, बीजेपी, आम आदमी पार्टी, जेजेपी और अन्य कई दल मैदान में हैं.

चुनाव में अग्निवीर योजना, किसान आंदोलन और महिला खिलाड़ियों का मुद्दा राजनीतिक दलों के बीच काफ़ी अहम नज़र आते हैं और चुनाव प्रचार में इन पर बहुत कुछ सुनने को मिलता है.

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, "हरियाणा कई मामलों में देश के बाक़ी राज्यों आगे है लेकिन लिंगानुपात के मामले में पीछे है. यही हरियाणा का विरोधाभास है. लेकिन चुनाव में यह कोई मुद्दा नहीं बन पाता है.''

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक़ हरियाणा में एक हज़ार पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की आबादी महज़ 877 है. वहीं केरल में 1000 पुरुषों की तुलना में 1084 महिलाएं हैं.

वहीं भारत में राष्ट्रीय स्तर पर एक हज़ार पुरुषों के मुक़ाबले 940 महिलाएं हैं.

भारत में साल 2011 में हुई पिछली जनगणना में 0 से 6 साल के बच्चों में एक हज़ार लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या हरियाणा में सबसे कम 830 थी.

image Getty Images हरियाणा में वोटिंग में महिला वोटरों की भागीदारी काफ़ी अच्छी मानी जाती है नौकरी और शादी की समस्या

हरियाणा में युवाओं की शादी के लिए लड़कियों की कमी की समस्या पुरानी है. पिछले साल जुलाई में राज्य सरकार ने 45 से 60 साल तक के

की थी.

हरियाणा भारत का ऐसा पहला राज्य है, जिसने इस तरह की पेंशन योजना शुरू की है.

हरियाणा में लड़के और लड़कियों को अनुपात के हिसाब से देखें तो राज्य में प्रति एक हज़ार युवाओं में 100 से ज़्यादा युवाओं की शादी नहीं हो सकती. ज़ाहिर है कि लड़कों और लड़कियों की आबादी का संतुलन बिगड़ रहा है.

लेकिन युवाओं के अविवाहित रहने की वजह आबादी का बिगड़ता संतुलन तो है ही लेकिन बढ़ती बेरोज़गारी भी है.

भारत सरकार के श्रम और रोज़गार मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़ राज्य में साल 2022-23 में बेरोज़गारी दर 6.1% रही है. यह भारत के राष्ट्रीय दर 3.2% से क़रीब दोगुना है.

सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक़ बेरोज़गारी दर के मामले में हरियाणा देश के शीर्ष राज्यों में है. विपक्ष के नेता अक्सर केंद्र से लेकर राज्य सरकार पर इस मामले में

आते हैं.

image ANI महिला पहलवान विनेश फोगाट ने हरियाणा की जुलना सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भरा है

हेमंत अत्री याद करते हैं, "साल 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान हरियाणा बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष ओपी धनखड़ ने एक सभा में युवाओं से कहा था कि 'वोट दे दो, शादी करा दूंगा'. हालांकि यह काफ़ी हल्के अंदाज़ में कहा गया था लेकिन दुर्भाग्य से यह मुद्दा काफ़ी गंभीर है."

'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का कितना असर

साल 2000 में हरियाणा में एक हज़ार लड़कों की तुलना में महज़ 792 लड़कियों का जन्म हुआ जबकि 2015 में 851 लड़कियों का जन्म हुआ था.

केंद्र सरकार ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरुआत 22 जनवरी 2015 में हरियाणा के पानीपत से ही की थी.

image Getty Images 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना की शुरुआत साल 2015 में हुई थी (फ़ाइल फ़ोटो)

इस योजना के तहत लोगों को जागरूक और संवेदनशील बनाकर उनकी मानसिकता को बदलना था.

दावा किया गया कि इसकी वजह से एक साल में ही हरियाणा में जन्म के समय लिंगानुपात में बड़ा सुधार हुआ. एक हज़ार लड़कों के मुक़ाबले 900 लड़कियों के जन्म के साथ ही यह बीते 20 साल के सबसे अच्छे स्तर पर आ गया था.

वहीं जन्म और मृत्यु के पंजीकरण के 'सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम' के साल 2020 के आंकड़ों में राज्य में एक हज़ार लड़कों के मुक़ाबले 916 लड़कियों का जन्म हुआ था. राजनीतिक स्तर पर इस मामले में ज़्यादा बड़े सुधार के दावे भी किए गए.

हालाँकि 'एडवा' (ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन्स एसोसिएशन) की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमति सांगवान के मुताबिक़ कई जानकारों ने इस तरह के आंकड़ों को जुटाने में खामियों का आरोप लगाया था. इसलिए जब उन खामियों को ठीक किया गया तो यह आंकड़ा फिर से ख़राब हो गया.

image ANI हरियाणा में विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार जोरों पर है ज़िम्मेदार कौन?

हरियाणा बीजेपी की प्रवक्ता नेहा धवन का मानना है कि लिंगानुपात हरियाणा के चुनावों में मुद्दा बनना चाहिए लेकिन यह नहीं बन पाया है.

बीबीसी से बातचीत में नेहा धवन आरोप लगाती हैं, "कांग्रेस इस मुद्दे को इसलिए नहीं उठाती है क्योंकि इससे उसकी पुरानी नाकामी उजागर होगी और हमने इस मुद्दे पर जितना काम किया है, उसका प्रचार नहीं कर पाना हमारी कमी है."

नेहा धवन का दावा है कि साल 2014 में हरियाणा में लोग मज़ाकिया लहज़े में कहते थे कि लड़कों के लिए दूसरे राज्यों से लड़कियाँ लानी होंगी, लेकिन फिर 'बेटी बचाओ' मुहिम और भ्रूण हत्या पर सख़्ती ने हालात को बदला है.

भारत के कई इलाक़ों में गर्भ में बच्चियों की भ्रूण हत्या भी एक बड़ी समस्या रही है. जानकार मानते हैं कि इसके ख़िलाफ़ कुछ साल पहले तक टीवी और अख़बारों में चेतावनी के ज़्यादा विज्ञापन भी आते थे.

गर्भ में भ्रूण का लिंग परीक्षण क़ानूनन अपराध होने के बाद भी इस पर पूरी तरह रोक लगा पाना संभव नहीं हो पाया है. ख़बरों के मुताबिक़ ऐसे अपराध के मामलों में हरियाणा देश के शीर्ष राज्यों में बना हुआ है.

हालाँकि बीबीसी ऐसी ख़बरों की स्वतंत्र पुष्टि नहीं कर सकता है, लेकिन वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री के मुताबिक़ लिंग परीक्षण के लिए कई बार हरियाणा के लोग पड़ोसी राज्यों तक जाते हैं.

बीजेपी प्रवक्ता नेहा धवन दावा करती हैं कि हरियाणा में बीजेपी सरकार ने जो काम काम किए हैं, उसका दूरगामी असर होगा.

हालांकि कई जानकार मानते हैं कि 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना के शुरुआती साल में लिंगानुपात में कुछ सुधार के बाद हरियाणा में यह फिर से बिगड़ने लगा है.

image Getty Images हरियाणा विधानसभा चुनाव हरियाणा में महिलाओं की स्थिति

साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक़ हरियाणा में क़रीब एक करोड़ पुरुष वोटरों के मुक़ाबले महिला वोटरों की तादाद क़रीब 85 लाख़ थी.

हरियाणा के स्थानीय पत्रकार आदेश रावल कहते हैं, "हरियाणा में लिंगानुपात का चुनावी मुद्दा नहीं बनने में नेताओं की कम, लोगों की ग़लती ज़्यादा है क्योंकि पुरुष वर्चस्व वाले लोग ऐसा नहीं चाहते हैं."

"पुरुष नहीं चाहते कि यह तस्वीर बदले और इसका दोषी मैं भी हूँ. जब हम बिजली, पानी और सड़क की मांग करते हैं तो यह राजनीतिक मुद्दा भी बनता है. अगर हम मांग करेंगे तो लिंगानुपात की समस्या को भी गंभीरता से लिया जाएगा."

हरियाणा की महिलाएं घर और खेतों में काम करने के अलावा खेल के क्षेत्र में काफ़ी आगे हैं. किसान आंदोलन में भी हरियाणा की महिलाओं को काफ़ी सक्रिय देखा गया है.

भारत को ओलंपिक और अन्य खेलों में पदक दिलाने वाली कई महिला खिलाड़ियों का ताल्लुक हरियाणा से ही है.

जगमति सांगवान बताती हैं कि राजनीतिक सक्रियता के मामले में पार्टी कार्यकर्ता बनने और वोटिंग में महिलाएं आगे हैं, लेकिन शीर्ष पदों पर और नीतियाँ बनाने में अब भी वो काफ़ी पीछे हैं."

इसे पीछे हरियाणा के पारंपरिक समाज में पुरुषों के वर्चस्व को बड़ी वजह माना जाता है.

image Getty Images पुरुषों के वर्चस्व वाला समाज पूरे उत्तर भारत में है

आईएनएलडी से जुड़ीं संतोष दहिया बताती हैं, "हरियाणा में माना जाता है कि बेटियाँ पराया धन हैं, उन्हें पढ़ा दिया तो भी दहेज़ देना होगा और दूसरे घर ही जाएगी. पुरुषों की मानसिकता में ही महिलाएं उनसे कमतर हैं इसलिए उनके जन्म से लेकर पूरी ज़िंदगी उनके साथ भेदभाव होता है."

हालांकि लड़कियों को 'पराया धन' बताने वाली मानसिकता हरियाणा तक ही सीमित नहीं है.

साल 2019 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में कुल 9 महिलाओं ने जीत हासिल की थी. इस लिहाज से राज्य विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व महज़ 10 फ़ीसदी था.

इस बार के चुनावों में भी अब तक हरियाणा में बीजेपी ने कुल 10 और कांग्रेस ने दो लिस्ट में 6 महिलाओं को ही टिकट दिया है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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