सीयूईटी यानी कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट पास करने के साथ ही स्टूडेंट्स के लिए अच्छे कॉलेज में दाख़िला लेने की जद्दोजहद चालू हो जाती है.
उनके सामने कई सवाल होते हैं. जैसे कौन सा कॉलेज चुनें, कौन सा कोर्स हो, या अगर किसी मनचाहे कॉलेज में दाखिला नहीं मिला तो फिर कौन से विकल्प तलाशें.
इन सबके लिए ज़रूरी है कि स्टूडेंट्स को सही प्रक्रिया पता हो और उन्हें कटऑफ़ ट्रेंड की भी समझ हो.
हमने कुछ एक्सपर्ट्स से इन्हीं सवालों के जवाब जानने की कोशिश की ताकि स्टूडेंट्स को ये तय करने में मदद मिले कि वे बेस्ट कॉलेज या बेस्ट कोर्स में सीट कैसे पक्की करा सकते हैं.

रिज़ल्ट के बाद कैंडिडेट्स अपने स्कोर के हिसाब से अपनी पसंद के कॉलेज या कोर्स में दाखिले के लिए आवेदन कर सकते हैं.
इसके बाद अब हर यूनिवर्सिटी अपनी कटऑफ़ लिस्ट जारी करती है.
करियर काउंसलिंग में करीब 20 साल से अधिक का अनुभव रखने वालीं तुलिका कपूर कृष्णा के मुताबिक, स्टूडेंट्स को ऐसे कॉलेज की तलाश होनी चाहिए जहां वे फ़िट हों.
उनकी नज़र में किसी भी कोर्स में दाखिले से पहले स्टूडेंट्स को कई बातें ध्यान रखनी चाहिए.
जैसे, "क्या वाकई हमारे मन में उस कोर्स के लिए रुचि है, क्या अब तक उस विषय में अच्छा करते आए हैं? क्या वो कोर्स ऐसे कॉलेज में मिल रहा है जहां फ़ैकल्टी वाकई अच्छी है? क्या उस कॉलेज का माहौल बढ़िया है, क्या वहां अनुशासन है और क्या वहां प्लेसमेंट अच्छा है? ये सभी चीज़ें एक स्टूडेंट के काम आती हैं."
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कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जब किसी स्टूडेंट को कोर्स तो अच्छा मिल रहा हो लेकिन कॉलेज पसंद का नहीं होता. कई बार स्थितियां इसके उलट भी होती हैं जिसमें कोर्स नापसंद हो लेकिन कॉलेज अच्छी ब्रांडिंग वाला हो.
मगर जानकार, स्टूडेंट्स को ये सलाह देते हैं कि वो हमेशा कोर्स को कॉलेज से अधिक प्राथमिकता दें.
करियर काउंसलिंग के क्षेत्र में सेंटर फ़ॉर करियर डेवलपमेंट एक जाना-माना नाम है.
इसके संस्थापक जितिन चावला भी स्टूडेंट्स को ये सलाह देते हैं कि उन्हें कॉलेज की बजाय कोर्स को ऊपर रखना चाहिए.
वो कहते हैं, "हर स्टूडेंट को टॉप आठ-नौ कॉलेजों के नाम पता होते हैं और सबका मन उन्हीं कॉलेजों में दाखिला लेने का होता है. लेकिन आपको अगर उनके अलावा भी कोई अच्छा कॉलेज मिल रहा है तो ये ध्यान में रखना चाहिए कि डिग्री एक जैसी ही होती है सबकी."
"डीयू की ही बात करें तो डिग्री पर किसी कॉलेज का नाम नहीं लिखा होता, ये हर स्टूडेंट के लिए एक जैसी होती है."
जितिन चावला के मुताबिक़, "आजकल स्किल्स का ज़माना है और ये स्टूडेंट्स पर निर्भर करता है कि किस तरह की स्किल्स वो अपने अंदर बढ़ा रहे हैं. क्या उन्होंने किसी कोर्स के साथ इंटर्नशिप की, कोई एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी में हिस्सा लिया, ऑनलाइन कोर्स किया."
वह कहते हैं, "आप बिज़नेस पढ़ रहे हैं तो आप डिजिटल मार्केटिंग के कोर्स भी अलग से कर सकते हैं. फ़ाइनेंस में आपकी रुचि है तो बॉम्बे स्टॉक एक्चेंज का इंस्टिट्यूट है बीएसई इंस्टिट्यूट, वहां से आप कोई प्रोग्राम कर सकते हैं. जब आप ये सब चीज़ें करते हैं तो ही आपकी एक मज़बूत प्रोफ़ाइल बनती है, न सिर्फ़ कॉलेज से."
तुलिका कपूर कृष्णा की मानें तो, "हमेशा कोर्स को कॉलेज से ऊपर रखना चाहिए. क्योंकि आप ऐसी डिग्री का क्या करेंगे, जिसमें न तो आपकी रुचि है और आप उसमें कुछ अच्छा भी नहीं कर पा रहे."
"इन दोनों के बीच संतुलन बनाना होता है. अब ऐसा भी नहीं कि एकदम गुमनाम कॉलेज में चले जाएं. हमेशा ये चेक करना है कि उस कॉलेज की स्वीकार्यता कितनी है, उसमें प्लेसमेंट कैसा होता है."
इस बार देश के 49 केंद्रीय विश्वविद्यालय के साथ 36 स्टेट यूनिवर्सिटीज़, 24 डीम्ड और कई प्राइवेट यूनिवर्सिटीज़ सीयूईटी का हिस्सा थीं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी समेत कई बड़े विश्वविद्यालयों की पहली कटऑफ़ लिस्ट इस सप्ताह के अंत तक आएगी. हालांकि, इसमें नाम न आने पर भी स्टूडेंट्स के पास विकल्प बचते हैं.
जितिन चावला कहते हैं, "अगर पहली लिस्ट में नाम नहीं आता है तो दूसरी यूनिवर्सिटीज़ देखिए. आंबेडकर यूनिवर्सिटी है, आईपी यूनिवर्सिटी है. काफ़ी हैं, प्राइवेट यूनिवर्सिटीज़ देखिए, दूसरे राज्यों की यूनिवर्सिटी देखिए. जैसे मुंबई में करीब 100 कॉलेजों में बिज़नेस मैनेजमेंट स्टडीज़ का विकल्प है जबकि दिल्ली में कम है. तो इस तरह से दायरा बढ़ाकर देखना ज़रूरी है."
सीयूईटी में कम स्कोर हो तो क्या करें?अच्छा या बुरा स्कोर आमतौर पर हर कोर्स के लिए अलग होता है.
जितिन चावला कहते हैं कि हो सकता है साइकोलॉजी के कोर्स में जाने के लिए 1000 में से 850 या उससे ऊपर स्कोर अच्छा हो. लेकिन किसी दूसरे कोर्स के लिए टॉप कॉलेज में इससे ज़्यादा स्कोर की भी ज़रूरत पड़ सकती है.
लेकिन अगर किसी का स्कोर 600-650 हो तो? क्या स्कोर बेहतर करने के लिए किसी स्टूडेंट को अगले साल फिर से सीयूईटी देना चाहिए या उनके पास और कोई विकल्प भी है?
तुलिका कपूर का कहना है कि इस तरह की परिस्थिति में छात्रों को दूसरी सेंट्रल यूनिवर्सिटी, प्राइवेट यूनिवर्सिटी या डीम्ड यूनिवर्सिटी की ओर रुख़ करना चाहिए.
साथ ही अगर कम स्कोर की वजह से किसी को पसंद का कोर्स नहीं मिल रहा लेकिन यूनिवर्सिटी अच्छी मिल रही है तो तुलिका कपूर ऐसे में दाखिला लेना बेहतर मानती हैं.
वह कहती हैं, "अगर मनचाहा कोर्स नहीं मिल रहा है लेकिन कॉलेज मिल रहा है तो फिलहाल एडमिशन तो ले लेना चाहिए. ये ज़रूर हो सकता है कि बाद में देखा जाए कि क्या करना है. लेकिन मिली हुई सीट को बर्बाद नहीं करना चाहिए."
ऐसी ही सलाह जितिन चावला की है. उनका मानना है कि कम स्कोर पर भी स्टूडेंट्स को अगले साल का इंतज़ार किए बगैर पढ़ाई शुरू कर देनी चाहिए. मगर उन्हें कुछ एक्स्ट्रा कोर्स करते हुए अपनी प्रोफ़ाइल बढ़ानी चाहिए.
तुलिका कहती हैं कि आख़िर में ये सबसे अहम है कि करियर का लक्ष्य क्या है. शिक्षा का आधार ये होता है कि हम वो पढ़ें, जिससे करियर में अच्छा करें. अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो फिर किसी बात का फ़ायदा नहीं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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