अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने 13 अगस्त को कहा था कि राष्ट्रपति पुतिन और ट्रंप के बीच अलास्का में बातचीत नाकाम रही तो भारत पर 25 फ़ीसदी का अतिरिक्त टैरिफ़ और बढ़ सकता है.
इस ख़बर को एक्स पर रीपोस्ट करते हुए जियोपॉलिटिक्स और अर्थशास्त्र पर गहरी नज़र रखने वाले फ्रांस के अरनॉड बरट्रैंड ने लिखा, ''यह स्पष्ट रूप से भारत की मल्टी-अलाइनमेंट डिप्लोमैटिक रणनीति की नाकामी है. इस रणनीति से भारत को सबके लिए ज़रूरी बनना था लेकिन सबके लिए ग़ैर-ज़रूरी बन गया.''
''दूसरे शब्दों में कहें तो भारत ने ख़ुद को ऐसा बना लिया है कि जिसे लोग बिना किसी जोखिम के आसानी से चोट दे रहे हैं. चीन से पंगा लिए बिना जब ट्रंप को प्रतिबंधों के ज़रिए कड़ा संदेश देना होता है तो वह भारत को धमकाते हैं क्योंकि भारत इतना बड़ा है कि थोड़ी अहमियत रखता है लेकिन इतना ताक़तवर नहीं है कि प्रभावी पलटवार कर सके.''
अरनॉड बरट्रैंड ने लिखा है, ''जब आप हर किसी के दोस्त बनने की कोशिश करते हैं तो आप हर किसी के लिए प्रेशर वॉल्व बन जाते हैं. ख़ास करके तब जब आप अपना रुख़ मनवाने की क्षमता नहीं रखते हैं.''
मल्टी-अलाइनमेंट का मतलब है कि भारत सभी गुटों के साथ रहेगा. इसे नेहरू के नॉन अलाइनमेंट यानी गुटनिरेपेक्ष से अलग माना जाता है लेकिन कई लोग मानते हैं कि बस शब्द का फ़र्क़ है क्योंकि जब आप सबके साथ होने का दावा करते हैं तो किसी के साथ नहीं होते हैं.
लेकिन अरनॉड की भाषा छह दिन बाद भारत को लेकर बदली दिखी. 19 अगस्त को पीएम मोदी ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाक़ात की तस्वीर पोस्ट की थी.
इसी पोस्ट को रीपोस्ट करते हुए अरनॉडने लिखा है, ''भारत के बारे में आप चाहे जो कुछ भी कह सकते हैं लेकिन मोदी में वो राजनीतिक साहस है, जो यूरोप में नहीं है. आप कल्पना कीजिए कि अगर यूरोप ने यही काम रूस के साथ किया होता तो ट्रंप को इतना मौक़ा नहीं मिलता. यूरोप को ट्रंप की मध्यस्थता की ज़रूरत नहीं पड़ती.''
''मैं तो इस बारे में बात भी नहीं कर रहा हूं कि कैसे ट्रंप ने यूरोप के नेताओं से स्कूली बच्चों की तरह व्यवहार किया और आर्थिक नुक़सान पहुँचाया. हालात ये हैं कि यूरोप को हर तरह से भुगतना पड़ रहा है. एक तो अमेरिका के पिछलग्गू के रूप में अपमान हो रहा है और ट्रंप इस स्थिति का आर्थिक दोहन भी कर रहे हैं. यूरोप को छद्म युद्ध की क़ीमत भी चुकानी पड़ रही है और अपने पड़ोस से बैर भी मोल लेना पड़ रहा है. वहीं ट्रंप रूस से संबंध सुधार रहे हैं.''
अरनॉड ने लिखा है, ''चीन को लेकर भारतीयों के मन में जिस तरह की शत्रुता का भाव है, वैसा यूरोप में रूस को लेकर नहीं है. यानी भारत के लिए ये सब करना यूरोप की तुलना में राजनीतिक रूप से ज़्यादा मुश्किल था. एशिया के नेता जिस तरह से रणनीतिक स्वायत्तता को लेकर प्रतिबद्ध दिख रहे हैं, वैसी प्रतिबद्धता यूरोप में नहीं है.''
अरनॉड के इस बदले रुख़ पर अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिन्दू' के अंतरराष्ट्रीय संपादक स्टैनली जॉनी ने लिखा है, ''देश लंबी अवधि के लिए सोचते हैं और विश्लेषक छोटी अवधि के लिए.''
फ्रांस में भारत के राजदूत रहे जावेद अशरफ़ से पूछा कि वाक़ई मोदी सरकार की मल्टी-अलाइनमेंट की नीति नाकाम हो रही है?
जावेद अशरफ़ कहते हैं, ''मैं ऐसा नहीं मानता हूँ. नरेंद्र मोदी एससीओ समिट में जा रहे हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि अमेरिका के ख़िलाफ़ जा रहे हैं. ट्रंप के आने से पहले से ही चीन से संबंधों में सुधार की कोशिश शुरू हो गई थी. अमेरिका के साथ भी संबंध ट्रेड के स्तर पर ख़राब है, बाक़ी संबंध तो वैसे ही हैं.''
जावेद अशरफ़ कहते हैं, ''भारत और अमेरिका में कोई समझौता न होने का कारण यह भी है कि भारत ने अपने हितों से समझौता नहीं किया. यानी भारत अमेरिका से बात रणनीतिक स्वायत्तता के साथ ही कर रहा है. चीन और रूस ज़्यादा शक्तिशाली हैं, इसलिए ये अमेरिका को जवाब उसी की भाषा में दे रहे हैं. अगर हमारे पास भी वो ताक़त होती तो हम भी जवाब देते. अंतर बस इतना ही है.''
थिंक टैंक ब्रूकिंग्स इंस्टिट्यूशन की सीनियर फेलो तन्वी मदान मानती हैं कि भले ट्रंप के रुख़ से मोदी के चीन दौरे को जोड़ा जा सकता है लेकिन चीन से संबंध सुधाने की यह प्रक्रिया कोई अचानक नहीं शुरू हुई है.
तन्नी मदान ने ब्लूमबर्गसे कहा, ''पिछले साल रूस के कजान में भी पीएम मोदी की मुलाक़ात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई थी. भारत चीन के साथ रिश्ते सुधारने के लिए इसलिए कोशिश कर रहा है ताकि वह अपना रणनीतिक और आर्थिक दायरा बढ़ा सके और सीमा पर तनाव को ना बढ़ने दे.''
''लेकिन सवाल यह है कि क्या चीन इन प्रतिबद्धताओं पर खरा उतरेगा? हमने देखा है कि बातचीत की कई कोशिशें सीमा पर तनाव की वजह से अधूरी रह गईं. अगर चीन भारत को कमज़ोर देखता है तो सीमा पर तनाव की घटनाएं और देखने को मिल सकती हैं.''
- भारत पर ट्रंप की सख़्ती से रूस के फ़ायदे की बात क्यों कही जा रही है?
- रूस को लेकर बढ़ा दबाव, क्या भारत झुकेगा या उसकी दुविधा बढ़ेगी?
- अमेरिका क्या भारत में रूस की जगह ले सकता है?
चीन के विदेश मंत्री वांग यी 18 और 19 अगस्त को भारत के दौरे पर थे. इसके बाद वह 21 अगस्त को पाकिस्तान पहुँचे हैं. भारत के बाद वांग यी के पाकिस्तान दौरे के कई मायने निकाले जा रहे हैं.
शंघाई के फ़ुदान यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया से चीन के संबंधों के एक्सपर्ट लिन मिनवांग ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, ''अगर भारत चीन से संबंधों को सुधारना चाहता है तो चीन इसका स्वागत करेगा लेकिन भारत को कोई छूट नहीं मिलेगी. चीन अपने हितों से समझौता नहीं करेगा और न ही पाकिस्तान को समर्थन देना बंद करेगा.''
अमेरिका ने भारत के ख़िलाफ़ 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया है. अगर 27 अगस्त से भारत के ख़िलाफ़ ये 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लागू हो जाता है तो अमेरिका से व्यापार करना मुश्किल हो जाएगा.
पिछले चार सालों से अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. 2024-25 में भारत का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार 131.84 अरब डॉलर का था.
अगर अमेरिका के साथ इतना बड़ा व्यापार बाधित होता है तो भारत की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना लाजिमी है. ऐसे में भारत के ऊपर दबाव है कि वह या तो अमेरिका के साथ संबंध सुधारे या फिर नए बाज़ार की तलाश करे.
ब्लूमबर्गने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है, ''भारत अगर डिप्लोमैसी के बदले अमेरिका के सामने झुकने से इनकार करना चुनता है तो उसे अपना सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर और दुनिया का सबसे बड़ा कंज्यूमर मार्केट खोना पड़ सकता है. चीन के साथ भाईचारा बढ़ाना या देश में आर्थिक सुधार जैसे क़दम अच्छे हैं लेकिन इससे अमेरिका की जगह की भरपाई नहीं हो पाएगी.''
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और चीन दूसरे पायदान पर है. भारत भी एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, ऐसे में अमेरिका और चीन से ख़राब संबंध रखकर अपनी मुश्किलें और नहीं बढ़ाना चाहता है.
लेकिन यह सच्चाई है कि दोनों देशों से संबंधों में गर्मजोशी नहीं है. ऐसा तब है, जब अमेरिका और चीन दोनों ही भारत के शीर्ष के कारोबारी साझेदार हैं. चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. 2024-25 में चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 127.7 अरब डॉलर का था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तियानजिन में 31 अगस्त से एक सितंबर तक आयोजित एससीओ (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन) समिट में शामिल होने चीन जा रहे हैं. मोदी सात साल बाद चीन जा रहे हैं.

मोदी का यह दौरा तब हो रहा है, जब पूर्वी लद्दाख में अप्रैल 2020 से पहले की यथास्थिति बहाल नहीं हो पाई है.
चीन ने 2020 के बाद कई बार अरुणाचल प्रदेश के कई इलाक़ों का मंदारिन में नामकरण किया है. चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत कहता है. ये अलग बात है कि भारत वन चाइना पॉलिसी को मानता है, जिसमें तिब्बत और ताइवान दोनों चीन के हिस्सा हैं.
पीएम मोदी के एससीओ समिट में शामिल होने के लिए चीन जाने के फ़ैसले को बहुत प्रत्याशित नहीं माना जा रहा है. 2023 में एससीओ की अध्यक्षता भारत के पास थी और भारत ने इस समिट को वर्चुअल आयोजित किया था.
समिट को वर्चुअल आयोजित करने के फ़ैसले का मायने यह निकाला गया कि भारत चीन के दबदबे वाले गुटों को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है. वहीं 2022 में भारत में जी-20 समिट हुआ था और इसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग शामिल नहीं हुए थे. ऐसे में मोदी के चीन दौरे को अमेरिका के साथ भारत के ख़राब हो रहे संबंधों से जोड़ा जा रहा है.
'कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ इंडो-पैसिफिक स्टडीज' के संस्थापक प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा ऐसा नहीं मानते हैं कि अमेरिका से ब्रेकअप होने कारण भारत चीन को प्रेम प्रस्ताव भेज रहा है.
प्रोफ़ेसर महापात्रा कहते हैं, ''न तो अमेरिका से ब्रेकअप हुआ है और न ही चीन को कोई नया प्रेम प्रस्ताव भेजा जा रहा है. ट्रंप ने कुछ फ़ैसले लिए हैं, जिनका असर केवल भारत पर ही नहीं दुनिया भर में है. लेकिन भारत के हर फ़ैसले को ट्रंप से जोड़कर नहीं देख सकते हैं. चीन से हमारा व्यापार तनाव के दिनों में भी बढ़ा है.''
भारत की इंडस्ट्री की निर्भरता चीनी तकनीक पर बढ़ी है. ब्लूमबर्गके अनुसार, भारत ने 2024 में चीन ने 48 अरब डॉलर की क़ीमत के इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल उपकरण आयात किए थे.
भारत के टेलिकॉम नेटवर्क, स्मार्टफोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में चीनी तकनीक की ज़रूरत है. इसके अलावा फार्मासूटिकल इंडस्ट्री भी कच्चा माल चीन से ही आयात करती है.
भारत रेयर अर्थ के मामले में भी चीन पर ही निर्भर है. इसके बिना भारत इलेक्ट्रिक गाड़ियां, अक्षय ऊर्जा के साथ कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर्स का लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता है. हाल ही में चीन ने इसके आयात को सीमित किया था तो भारत की कई इंडस्ट्री बुरी तरह से प्रभावित हुई थी. ख़ासकर ऑटो सेक्टर पर ज़्यादा असर पड़ा. दूसरी तरफ़ चीन को भी भारत की ज़रूरत है. भारत एक बड़ा बाज़ार है और चीन को अपना सामान खपाने की पर्याप्त संभावनाएं हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
You may also like
एशियाई चैंपियनशिप में एलावेनिल वलारिवन ने 10 मीटर एयर राइफल में जीता स्वर्ण
जयपुर में फैक्ट्री तक पहुंचा लेपर्ड, एमएनआईटी और स्मृति वन में सर्च
रिषड़ा बांगुड पार्क में ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने की पहल, भाजपा पार्षद ने सड़क पर उतारे स्वयंसेवक
फेस्टिव सीजन में Hyundai का तोहफा, कंपनी ने लॉन्च किया Exter का नया वेरिएंट, कीमत 8 लाख से भी कम
रोज खाली पेट सिर्फ 2 इलायची चबाने से शरीर को मिलतेˈˈ हैं चमत्कारी फायदे डॉक्टर भी रह जाएंगे हैरान