Next Story
Newszop

बस कंडक्टर से बने फिल्मी कॉमेडी के बादशाह, जानें जॉनी वॉकर की दिलचस्प कहानी

Send Push

मुंबई, 28 जुलाई (आईएएनएस)। मुंबई की सड़कों पर किसी वक्त एक ऐसा शख्स बस में टिकट काटता था, जिसने आगे चलकर लोगों के चेहरे पर हंसी और दिल में प्यार भर दिया। उनका नाम था 'बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी', लेकिन दुनिया ने उन्हें 'जॉनी वॉकर' के नाम से जाना। यह वही नाम है जो आज भी पुरानी फिल्मों के शौकीनों की जुबान पर आते ही मुस्कान ला देता है।

जॉनी वॉकर का जन्म 11 नवंबर 1926 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से थे। उनके पिता कपड़ा बुनाई का काम सिखाकर घर चलाते थे। घर में 12 बच्चों का पालन-पोषण आसान नहीं था। जब पिता की नौकरी चली गई, तो पूरा परिवार रोजगार की तलाश में मुंबई आ गया।

मुंबई में बदरुद्दीन ने 'बेस्ट' (बॉम्बे इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट) में बस कंडक्टर की नौकरी की। हर दिन की भागदौड़ में, वह कंडक्टर के तौर पर बस में बैठी सवारी का टिकट काटते थे। वहीं समय मिलने पर अपने हंसाने वाले अंदाज और एक्टिंग से यात्रियों का मनोरंजन भी करते थे। वह कभी किसी फिल्मी हीरो की नकल करते, तो कभी नशे में चूर आदमी की एक्टिंग कर सबको हंसाते।

कंडक्टर के अंदर छिपे कलाकार को अभिनेता बलराज साहनी ने पहचाना। एक दिन बलराज ने उनकी यह परफॉर्मेंस देखी और प्रभावित होकर उन्हें मशहूर निर्देशक गुरु दत्त से मिलवाया। गुरु दत्त ने उनसे नशेड़ी आदमी की एक्टिंग करने के लिए कहा।

बदरुद्दीन ने जब अभिनय करके दिखाया, तो गुरुदत्त दंग रह गए और उन्होंने उसी वक्त उन्हें अपनी फिल्म 'बाजी' में काम दे दिया। साथ ही उनका नाम बदलकर मशहूर शराब ब्रांड के नाम पर 'जॉनी वॉकर' रख दिया। दिलचस्प बात ये है कि जॉनी वॉकर ने फिल्मों में बेशक कई बार शराबी का किरदार निभाया, लेकिन असल जिंदगी में उन्होंने जाम को हाथ तक नहीं लगाया।

गुरु दत्त को जॉनी वॉकर का काम काफी पसंद था, वह लगभग हर फिल्म में उन्हें काम देते थे, जिनमें 'आर-पार', 'मिस्टर एंड मिसेज 55', 'कागज के फूल', 'प्यासा', और 'चौदहवीं का चांद' जैसी फिल्में शामिल हैं।

1950 और 60 का दौर जॉनी वॉकर के लिए सुनहरे युग की तरह था। वह हर फिल्म में कॉमेडी का ऐसा तड़का लगाते कि दर्शक हंसी से लोटपोट हो जाते। उनका सबसे यादगार गाना 'ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां' है, जो फिल्म 'सीआईडी' में फिल्माया गया था। इस गाने को आज भी लोग काफी पसंद करते हैं और गुनगुनाते रहते हैं। इसके अलावा 'सर जो तेरा चकराए...' गाना भी बहुत लोकप्रिय हुआ था।

उन्होंने करीब 300 फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें 'टैक्सी ड्राइवर', 'मधुमती', 'नया दौर', 'सूरज', 'आनंद', 'प्रतिज्ञा' जैसी फिल्में शामिल हैं। 1975 की फिल्म 'प्रतिज्ञा' में उनका एक डायलॉग था, जो दर्शकों को आज भी याद है; वो डायलॉग था- 'इतनी सी बात के लिए, इतना गुस्सा...'

1970 के बाद उन्होंने धीरे-धीरे फिल्मों से दूरी बना ली, लेकिन 1997 में फिल्म 'चाची 420' में वह नजर आए। यह उनकी आखिरी फिल्म थी। इस फिल्म के लिए कमल हासन ने उन्हें काफी मनाया था, जिसके बाद वह इस फिल्म को करने के लिए राजी हुए थे। इसके बाद उन्होंने परिवार और समाज सेवा पर ध्यान देना शुरू कर दिया।

अपने शानदार करियर में उन्हें कई पुरस्कार भी मिले। फिल्म 'मधुमती' के लिए उन्हें 'फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर' का पुरस्कार मिला और 'शिकार' में शानदार कॉमेडी के लिए 'बेस्ट कॉमिक एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड' मिला।

29 जुलाई 2003 को जॉनी वॉकर का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। बेशक, आज वह हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके किरदार, कॉमेडी और मुस्कान आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं।

--आईएएनएस

पीके/एएस

Loving Newspoint? Download the app now