US Independence Day 2025: अमेरिका सुपरपावर देश है. दुनियाभर में इसकी दादागीरी जारी है. दिलचस्प बात है कि यह देश कभी खुद दूसरे देश का गुलाम था. साल 1776 में 4 जुलाई को यह आजाद हुआ और सुपरपावर बनने की राह पर चल पड़ा. इसी बहाने जान लेते हैं कि अमेरिका कैसे गुलाम बना, उसको कैसे आजादी मिली थी? खुद कितने देशों को गुलाम बनाया और कितने देशों की सरकार प्रभावित किया? कैसे सुपर पावर देश बना?
आज अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश है.यह वही अमेरिका है, जो कभी खुद दूसरे देश का गुलाम हुआ करता था. अमेरिका पर भी अंग्रेजों का शासन था और वे मूल अमेरिकियों का शोषण करते थे. साल 1776 में 4 जुलाई को अमेरिका की 13 ब्रिटिश कॉलोनियों ने खुद को आजाद घोषित कर दिया. इसके बाद अमेरिका स्वाधीन होता चला गया. इसीलिए दिन अमेरिका अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है.
आइए जान लेते हैं कि अमेरिका कैसे गुलाम बना, उसको कैसे आजादी मिली थी? खुद कितने देशों को गुलाम बनाया और कितने देशों की सरकार प्रभावित किया? कैसे सुपर पावर देश बना?
किसने की अमेरिका की खोज?अमेरिका की गुलामी के लिए अगर कोई जिम्मेदार था, तो वह थे क्रिस्टोफर कोलंबस. यूरोप से कोलंबस निकले भारत की खोज के लिए पर गलती से अमेरिका पहुंच गए. इसके बाद कोलंबस ने यूरोप के लोगों को इसके बारे में बताया तो धीरे-धीरे ब्रिटेन के लोग वहां बड़ी संख्या में पहुंचने लगे. देखते ही देखते इन अंग्रेजों ने पूरे अमेरिकी द्वीप पर कब्जा कर लिया और मूल अमेरिकियों पर अत्याचार शुरू कर दिया. ब्रिटेन के शासक जेम्स प्रथम के शासन काल में अमेरिका ब्रिटेन का उपनिवेश बन गया. कोलंबस की सूचना पर अमेरिकी द्वीप पर ब्रिटेन ने 13 कॉलोनियां बसा लीं.
भारत की खोज में निकले क्रिस्टोफर कोलंंबस ने अमेरिका खोजा था. फोटो: mikroman6/Moment/Getty Images
शोषण से परेशान होकर आजादी की घोषणा कीमूल अमेरिकियों पर अंग्रेजों के शोषण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनको चीनी, कॉफी, चायपत्ती और स्प्रिट जैसे सामान मंगाने के लिए काफी टैक्स देना पड़ता था. समय के साथ मूल अमेरिकियों यानी रेड इंडियंस में अंग्रेजों को लेकर गुस्सा पनपने लगा और अंतत: ब्रिटिश गुलामी से खुद को आजाद करने का निर्णय ले लिया. अंत में दो जुलाई 1776 को ब्रिटिश कॉलोनियों से अमेरिकियों ने खुद की आजादी की प्रक्रिया शुरू कर दी और 4 जुलाई 1776 को इन सभी 13 कॉलोनियों के लोगों ने आजादी के घोषणा पत्र (डिक्लियरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस) को अपनाने के लिए मतदान किया. इस घोषणा पत्र पर रेड इंडियंस ने हस्ताक्षर कर खुद को आजाद घोषित कर दिया.
इन सबमें सबसे अहम भूमिका थी कॉन्टिनेंटल कांग्रेस की. इसके सदस्य थे थॉमस जेफरसन, रोजर शरमन, जॉन एडम्स, बेंजामिन फ्रैंकलिन और विलियम लिविंगस्टन. इन्हीं लोगों ने कॉन्टिनेंटल कांग्रेस कमेटी के सदस्यों के साथ चर्चा के बाद घोषणा पत्र का मसौदा तैयार किया था.
अमेरिकी की 13 ब्रिटिश कॉलोनियों ने 4 जुलाई 1776 को अपनी आजादी की घोषणा की थी, इसीलिए हर साल इसी दिन अमेरिका अपना स्वाधीनता दिवस मनाता है. यही नहीं, इसी दिन 13 कॉलोनियों में बंटा अमेरिका वास्तव में एकजुट भी हुआ था और संयुक्त राज्य अमेरिका का गठन किया गया था. इसके साथ ही अमेरिका में स्वाधीनता संग्राम के अगुवा के रूप में उभरे जॉर्ज वाशिंगटन और बेंजामिन फ्रैंकलिन राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे.
खुद को कृषि से औद्योगिक अर्थव्यवस्था में बदलाआजादी के बावजूद अमेरिका के सामने 19वीं सदी में यूरोप के अमीर और साम्राज्यवादी देशों से खतरा बरकरार था. खासकर, ब्रिटेन, फ्रांस और स्पेन की कई कॉलोनियां अमेरिका के आस-पास ही थीं. ऐसे में अमेरिका ने खुद को ताकतवर बनाने की ठानी और खुद को कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से निकाल कर औद्योगिक अर्थव्यवस्था में बदल दिया. इसके लिए टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन का सहारा लिया, जिनमें स्टीम बोट, यात्री ट्रेन और फैक्टरियों के लिए मशीन सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियां हैं. इसके बाद अमेरिका ने साल 1850 आते-आते कैरेबियन और प्रशांत महासागर के कई द्वीपों को अपने अधीन कर लिया.
गुआम, फिलीपींस और प्यूर्टो रिको समेत अमेरिका ने कई देशों पर कब्जा किया था. फोटो: Pixabay
स्पेन से लड़ाई ने बढ़ाया दबदबाअमेरिका के पड़ोसी देश क्यूबा पर स्पेन का कब्जा था. यह साल 1898 की बात है. अमेरिका ने अपना युद्धक विमान पोत सागर में उतारा था, जिसे स्पेन ने डुबो दिया. इस पर दोनों देशों में लड़ाई छिड़ गई जिसमें क्यूबा के क्रांतिकारियों ने भी अमेरिका की मदद की और कई महीनों की लड़ाई के बाद स्पेन को क्यूबा छोड़ना पड़ा. यही नहीं, स्पेन को कैरेबियन और प्रशांत महासागर भी छोड़ना पड़ा और अमेरिका इन क्षेत्रों में प्रभावशाली हो गया. स्पेन द्वारा कैरेबियन और प्रशांत महासागर के कई क्षेत्र अमेरिका को दिए गए, जिससे गुआम, फिलीपींस और प्यूर्टो रिको पर अमेरिका का कब्जा हो गया. हवाई के स्वतंत्र देश को भी अमेरिका ने खुद में मिला लिया.
पहले विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों को दिलाई मददफिर साल 1914 में पहला विश्वयुद्ध शुरू हुआ तो तीन साल तक अमेरिका इससे दूर ही रहा. हालांकि, साल 1917 में अटलांटिक महासागर में जर्मनी ने अमेरिका के जहाजों को डुबोया और जर्मनी ने मेक्सिको को प्रस्ताव दिया कि अमेरिकी क्षेत्र को दोबारा हासिल करने में उसकी मदद करेगा. इसके बदले मेक्सिको को युद्ध के लिए जर्मनी के गठबंधन में शामिल होना था. इसको देखते हुए 6 अप्रैल 1917 को अमेरिका भी इस युद्ध में कूड़ गया, जिससे मित्र राष्ट्रों को जीत हासिल हुई.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद दादागीरी की हद तक पहुंचायही स्थिति दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी हुई. वैसे तो एशिया-यूरोप में साल 1930 से ही जंग शुरू थी पर अमेरिका मित्र राष्ट्रों को कर्ज और हथियार देने के बावजूद साल 1941 तक दूसरे विश्व युद्ध से दूर ही रहा. हालांकि, इसी साल 7 दिसंबर को जापान ने पर्ल हार्बर में अमेरिकी नौसेना अड्डे पर बमबारी कर दी. इसमें लगभग 2400 अमेरिकी सैनिक मारे गए और कई अमेरिकी विमान और जहाज नेस्तानाबूद हो गए. इसके अगले ही दिन अमेरिका ने जापान के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. इसका नतीजा यह रहा कि जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी को परमाणु हमलों का भी सामना करना पड़ा. अंतत: दूसरा विश्व युद्ध भी मित्र राष्ट्रों ने अमेरिका की बदौलत ही जीता, जिससे वह करीब-करीब दादागीरी की हद तक पहुंच गया.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप.
मदद और कर्ज देकर बन गया सुपर पावरपहले और दूसरे विश्व युद्ध में भले ही यूरोप को जीत मिली पर मित्र राष्ट्रों की आर्थिक स्थिति खराब होती गई तो दूसरे पक्ष के भी आर्थिक हालात कुछ ठीक नहीं थे. दूसरी ओर, अमेरिकी अर्थव्यवस्था इस दौरान दोगुनी हो गई. डॉलर स्थिर था और ज्यादातर प्रमुख मुद्राओं ने खुद को डॉलर के साथ फिक्स कर लिया. ऐसे में अमेरिका ने यूरोप और जापान की मदद को हाथ बढ़ाए. कर्ज और आर्थिक मदद के नाम पर इन्हें काफी पैसा दिया. फिर साल 1949 में अमेरिका के साथ 10 यूरोपीय देशों ने नाटो की स्थापना की. इसके अलावा वैश्विक मुद्दों पर कई अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के निर्माण में भी अमेरिका ने अग्रणी भूमिका निभाई. इनमें संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि शामिल हैं. इन सबकी बदौलत अमेरिका सुपर पावर बन गया.
शीत युद्ध के दौरान बनाया दबदबाविश्व युद्ध खत्म होने के बाद भी अमेरिका और रूस दुनियाभर में अपना-अपना दबदबा बनाने में जुटे रहे. दुनिया को दो खेमों में बांटते रहे. इसके चलते अमेरिका को रक्षा पर काफी निवेश करना पड़ा. हथियारों के दम पर कई देशों की मदद कर उन पर दबदबा बनाया. साथ ही साथ एक से बढ़कर एक हथियार बनाता रहा.
नए-नए इनोवेशन किए. अंतरिक्ष तक अमेरिका की पहुंच हुई और 70 के दशक में अमेरिका ने इंसान को चांद तक पहुंचा दिया. खाड़ी देशों पर भी 90 के दशक में अमेरिका ने अपना प्रभाव बढ़ाया और आज पूरी दुनिया पर उसकी दादागीरी चलती है.
दूसरी ओर, अपने हथियार बेच कर अमेरिका अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है तो कभी किसी दोस्त देश को मदद के रूप में देकर उस पर अपना सिक्का बरकरार रखता है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार अब अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का निर्यातक बन चुका है. इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है. यहां तक कि लड़ाई के दौरान वह कई बार दोनों प्रतिद्वंद्वी देशों को अपने हथियार बेच देता है. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो केवल एक दिन में हथियार बेचकर अमेरिका करीब 7553 करोड़ रुपये कमाता है.
किसी न किसी देश की जड़ खोदने में लगा रहताअब तो स्थिति यह कि दुनिया के लगभग सभी देशों की सरकारों को अमेरिका प्रभावित करता रहता है. पीछे मुड़कर देखें तो कोरिया युद्ध के बाद उत्तर-दक्षिण कोरिया के निर्माण में रूस और अमेरिका का ही हाथ था. आज रूस उत्तर कोरिया के साथ तो अमेरिका दक्षिण कोरिया के साथ खड़ा दिखता है. 90 के दशक में आएं तो पहले ईरान, फिर इराक और अंत में कुवैत को अमेरिका ने प्रभावित किया. फिर खाड़ी के अन्य देशों में सरकारों को प्रभावित किया.
इराक, लीबिया और अफगानिस्तान की सत्ता को उखाड़ कर देश को बर्बाद करने में अमेरिका ने कोई कसर नहीं छोड़ी. सीरिया में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर अमेरिका जो कुछ कर रहा है वह पूरी दुनिया जानती है. रूस के खिलाफ मदद के नाम पर यूक्रेन को बेइज्जत तक कर डाला. ये तो केवल कुछ उदाहरण भर हैं. अपने हथियार बेचने और दबदूबा बनाए रखने के लिए अंदरखाने अमेरिका किसी न किसी देश की जड़ें खोदता ही रहता है. इजराइल के जरिए फिलिस्तीन को बर्बाद करने में भी अमेरिका की अग्रणी भूमिका है.
You may also like
दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता के बंगले के रेनोवेशन से जुड़ा टेंडर रद्द
बांदीकुई में डबल डेकर ट्रेन में संदिग्ध बैग से 'टिक-टिक' की आवाज, वीडियो में जानें मची अफरा-तफरी, सुरक्षा एजेंसियां सतर्क
बांदीकुई में झूपड़ीन गांव में आधी रात को छह युवकों ने की फायरिंग, वीडियो में देखें गांव में मचा हड़कंप
उदयपुर में कोटड़ा के राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल की खस्ताहाल इमारत, वीडियो में जानें 500 छात्रों को जान का जोखिम
अजमेर में पलटन बाजार में छावनी परिषद ने अवैध निर्माण पर चलाया बुलडोजर, वीडियो में देखें दो मंजिला इमारत ढहाई