अर्श रोग के होने पर मलद्वार के बाहर की ओर मांसांकुर (मस्से) निकल आते हैं। मांसांकुर (मस्से) से खून शौच के साथ खून पतली रेखा के रुप में निकलता है। रोगी को चलने-फिरने में परेशानी होना, पांव लड़खड़ाना, नेत्रों के सामने अंधेरा छाना तथा सिर में चक्कर आने लगना आदि इसके लक्षण है। इस रोग के होने पर स्मरण-शक्ति खत्म होने लगती है।
अर्श रोग (बवासीर) की उत्पत्ति कब्ज के कारण होती है। जब कोई अधिक तेल-मिर्च से बने तथा अधिक मसालों के चटपटे खाद्य-पदार्थों का अधिक सेवन करता है तो उसकी पाचन क्रिया खराब हो जाती है। पाचन क्रिया खराब होने के कारण पेट में कब्ज बनती है।
जो पेट में सूखेपन की उत्पत्ति कर मल को अधिक सूखा कर देती है। मल अधिक कठोर हो जाने पर मल करते समय अधिक जोर लगाना पड़ता है। अधिक जोर लगाने से मलद्वार के भीतर की त्वचा छिल जाती है। जिसके कारण मलद्वार के भीतर जख्म या मस्से बन जाने से खून निकलने लगता है। अर्श रोग (बवासीर) में आहार की लापरवाही तथा चिकित्सा में अधिक देरी के कारण यह अधिक फैल जाता है।
बवासीर ऐसी बीमारी नहीं है जो आपको एक दिन में हो जाए बल्कि बवासीर हमारी गलतियों के कारण होता है। इसलिए आज हम आपको कुछ ऐसी आदतों के बारे में बताने जा रहे है जो अगर आप अपनाते है तो आपको बवासीर की बीमारी कभी नही होगी।
बवासीर से हमेशा बचने के लिए अपनाए ये आदते | Bawasir | Piles
प्रतिदिन सुबह और शाम सही समय पर खाना खाए.क्योंकि सही समय पर भोजन ग्रहण करने से पाचन क्रियाए सही रहती हैं.जिससे कब्ज एसिडिटी अपच जैसी अनेक समस्याए नही होती हैं।
खाना खाते समय जल्द बाजी न करे.भोजन को धीरे और चबा चबाकर ग्रहण करें.जिससे पाचन क्रिया निश्चित समय पर होती है और पाचन सही तरीके से होता है।
मसाले वाला खाना और तली हुई चीजों का सेवन कम से कम करना बहुत जरूरी है.प्रतिदिन अपने घर पर बना भोजन करना चाहिए. जस्ट अभी जिसमें अनेक तरह के फल सलाद और उबली हुई अलग अलग सब्जी होना आवश्यक हैं।
कब्ज को दूर करने वाली औषधी का सेवन ज्यादा मात्रा में नही करना चाहिए.क्योंकि यह पाचन क्रिया को कमजोर बना देती हैं.जिससे कब्ज की समस्या दूर होने की बजाय और बढ़ जाने की संभावना बढ़ जाती हैं।
रोज अलग अलग फलों और सलाद का सेवन करना चाहिए.जिससे पाचन रस में व्रद्धि होती है और कब्ज अपच गैस की समस्या हमेशा दूर रहती हैं।
बवासीर या अर्श के चमत्कारी घरेलु उपाय
हारसिंगार : हारसिंगार के 2 ग्राम फूलों को 30 ग्राम पानी में रात को भिगोकर रखें। सुबह फूलों को पानी में मसल कर छान लें और 1 चम्मच खांड़ मिलाकर खाली पेट खायें। रोज 1 सप्ताह खाने से बवासीर मिट जाती है। या हारसिंगार का (बिना छिलके का) बीज 10 ग्राम तथा कालीमिर्च 3 ग्राम को मिलाकर पीस लें और चने के बराबर गोलियां बनाकर खायें। रोजाना 1-1 गोली गुनगुने जल के साथ सुबह-शाम खाने से बवासीर ठीक होती है। या हारसिंगार के बीजों को छील लें। 10 ग्राम बीज में 3 ग्राम कालीमिर्च मिलाकर पीसकर गुदा पर लगाने से बादी बवासीर ठीक होती है।
कपूर : कपूर, रसोत, चाकसू और नीम का फूल सबको 10-10 ग्राम कूट कर पाउडर बनालें। मूली को लम्बाई में बीच से काटकर उसमें सबके पाउडर को भरें और मूली को कपड़े से लपेटे तथा मिट्टी लगाकर आग में भून लें। भुन जाने पर मूली के ऊपर से मिट्टी और कपड़े को उतारकर उसे शिलबट्टे (पत्थर) पर पीस लें और मटर के बराबर गोलियां बना लें। 1 गोली प्रतिदिन सुबह खाली पेट पानी से लेने पर 1 सप्ताह में ही बवासीर ठीक हो जाती है।
वनगोभी : वनगोभी के पत्तों को कूटकर उसका रस निकालकर दिन में तीन से चार बार बवासीर के मस्सों पर लगायें। इसको लगाने से एक सप्ताह में ही मस्सें ठीक हो जाते हैं।
मूली : मूली के 125 मिलीलीटर रस में 100 ग्राम जलेबी को मिलाकर एक घण्टे तक रखें। एक घण्टे बाद जलेबी को खाकर रस को पी लें। इस क्रिया को एक सप्ताह तक करने से बवासीर रोग ठीक हो जाता है।
रीठा या अरीठा : रीठा के छिलके को कूटकर आग पर जला कर कोयला बना लें। इसके कोयले के बराबर मात्रा में पपरिया कत्था मिलाकर चूर्ण बनाकर रखें। लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में लेकर मलाई या मक्खन में मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से मस्सों में होने वाली खुजली व जख्म नष्ट होते हैं। या रीठा के छिलके को जलाकर भस्म बनायें और 1 ग्राम शहद के साथ चाटने से बवासीर में खून का गिरना बन्द हो जाता है।
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