The Chopal Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के हिस्से की हकदारी पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि अमान्य और शून्य विवाह से जन्मे बच्चे भी अपने पूर्वज की संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार रखते हैं। साथ ही अदालत ने स्पष्ट किया कि बच्चों को वैध माना जाएगा और उन्हें समान पूर्वज के विस्तारित परिवार का हिस्सा माना जाएगा।
मद्रास हाईकोर्ट का फैसला जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने पलट दिया। पीठ ने निर्णय दिया कि एक समान (कॉमन) पूर्वज ने शून्य व अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैध संतान माना हो तो वे संपत्ति के उसी तरह हकदार होंगे जैसे वैध विवाह से पैदा हुए बच्चे।
मामले के अनुसार मृत मुथुसामी गौंडर ने तीन विवाह किए थे। जिनमें से दो शादियां अवैध ठहराई गईं। गौंडर इन तीन शादियों से पांच बच्चे है: चार बेटे और एक बेटी। वैध विवाह से पैदा हुए वैध पुत्र ने ट्रायल कोर्ट में संपत्ति के विभाजन का मुकदमा दायर किया। विवाहित बच्चों को भी ट्रायल कोर्ट में प्रतिवादी के रूप में प्रस्तुत किया गया था। विवाहित बच्चे के पक्ष में ट्रायल कोर्ट ने बंटवारे का फैसला सुनाया।
हाईकोर्ट ने अपील खारिज की: अमान्य विवाह से जन्मे बच्चों ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील की जो हाईकोर्ट ने खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुथुसामी गौंडर का विवाह अवैध है लेकिन बच्चों को उनकी संपत्ति में हिस्सा नहीं देना कानून के खिलाफ है। बच्चों को न्याय मिलता है और उनके अधिकार सुरक्षित हैं इस निर्णय से।
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