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भारत सुधारों के साथ वस्तुओं का एक सार्थक उत्पादक और निर्यातक बन सकता है : एचएसबीसी

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New Delhi, 18 जुलाई . एचएसबीसी की एक रिपोर्ट में Friday को कहा गया है कि ऐसे समय में जब ग्लोबल सप्लाई चेन में बदलाव हो रहा है अगर भारत सही सुधार कर सके तो देश वस्तुओं का एक सार्थक उत्पादक और निर्यातक बन सकता है, जिससे निवेश, ऋण और जीडीपी वृद्धि को बढ़ावा मिल सकता है.

एचएसबीसी ग्लोबल इन्वेस्टमेंट रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि जीडीपी वृद्धि या ऋण वृद्धि में पहले कौन बढ़ेगा की चिकन एंड ऐग डिबेट में हमारे पास एक नया कंटेंडर ‘सुधार’ सामने आया है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “सुधारों में टैरिफ दरें कम करना, व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करना, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्वागत करना और ईज-ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार करना शामिल है. शुरुआत हो चुकी है, लेकिन प्रभाव के लिए, सुधारों को गहराई तक जाना होगा.”

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “पिछले वर्ष इसी समय, हम कमजोर जमा वृद्धि को लेकर चिंतित थे. आज, हम कमजोर ऋण वृद्धि को लेकर चिंतित हैं. हमारा मानना है कि दोनों ही घटनाओं में एक बात समान है. हालांकि सभी की निगाहें इस स्थिति को सुलझाने के लिए आरबीआई पर टिकी हैं, लेकिन केंद्रीय बैंक अपने पास उपलब्ध मौद्रिक नीति के उपायों का इस्तेमाल कर समस्या का आंशिक समाधान ही कर सकता है.”

पिछले साल जमा में आई गिरावट धीमी जमा वृद्धि और संरचनागत बदलावों (बहुत कम स्थिर जमा) को लेकर चिंताएं दोहरी समस्या थी. जैसे ही महंगाई में गिरावट शुरू हुई, आरबीआई ने मौद्रिक नीति में ढील दी, जिससे आधार मुद्रा वृद्धि बढ़ गई.

रिपोर्ट में बताया गया है, “वास्तविक जमा वृद्धि 2025 की शुरुआत में बढ़ने लगी. लेकिन क्या आरबीआई ने पूरी समस्या का समाधान कर दिया? शायद नहीं. जमा में कुछ वृद्धि तो वैसे भी होती और जमा संरचना की समस्या बनी हुई है.”

क्या आरबीआई मदद कर सकता है? हां, यह कर सकता है और आरबीआई ने रेपो दर में 100 आधार अंकों की कटौती करक और बड़ी मात्रा में घरेलू लिक्विडिटी को बढ़ाकर ऐसा किया भी है.

रिपोर्ट में कहा गया है, “क्या इससे पूरी क्रेडिट स्लोडाउन की समस्या हल हो जाएगी? शायद नहीं. क्योंकि जिस तरह जमा संरचना का मुद्दा वास्तविक अर्थव्यवस्था में निहित है, उसी तरह ऋण नरमी का मुद्दा भी निहित है.”

एसकेटी/

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