New Delhi, 2 सितंबर . हॉलीवुड से एक बार फिर दुखद खबर सामने आई है. मशहूर कनाडाई अभिनेता ग्राहम ग्रीन का 73 साल की उम्र में निधन हो गया. वह लंबे समय से बीमार थे. उन्होंने टोरंटो के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली. एजेंट माइकल ग्रीन ने उनके निधन की पुष्टि की और बताया कि यह पूरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है.
ग्राहम ग्रीन का जन्म 22 जून 1952 को कनाडा के ओंटारियो प्रांत में स्थित सिक्स नेशंस रिजर्व में हुआ था. वह एक आदिवासी पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते थे और अपनी पहचान बनाने के लिए उन्होंने जीवन में कड़े संघर्ष किए. एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने से पहले उन्होंने कई अलग-अलग काम किए, लेकिन उनके अंदर छुपा कलाकार हमेशा जिंदा रहा.
उन्होंने थियेटर से शुरुआत की और धीरे-धीरे टेलीविजन और फिर फिल्मों की ओर बढ़े. 1979 में टीवी शो ‘द ग्रेट डिटेक्टिव’ से उन्होंने एक्टिंग करियर की शुरुआत की और 1983 में आई फिल्म ‘रनिंग ब्रेव’ से बड़े पर्दे पर डेब्यू किया.
हालांकि, ग्राहम ग्रीन को असली पहचान 1990 में आई फिल्म ‘डांस विद वोल्वस’ से मिली. इस फिल्म में उन्होंने ‘किकिंग बर्ड’ का किरदार निभाया, जिसने दुनियाभर के दर्शकों का दिल जीत लिया. इस फिल्म को 12 ऑस्कर नॉमिनेशन मिले और ग्राहम खुद बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए नामांकित हुए. यह उनके करियर का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुआ और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
‘डांस विद वोल्वस’ के बाद ग्रीन कई बड़ी फिल्मों में नजर आए और उन्होंने हॉलीवुड के दिग्गज सितारों के साथ काम किया. वे 1994 में ‘मैवरिक’ में मेल गिब्सन और जोडी फोस्टर के साथ, 1995 में ‘डाई हार्ड विद अ वेंजेंस’ में ब्रूस विलिस के साथ, और 1999 में ‘द ग्रीन माइल’ में टॉम हैंक्स के साथ दिखाई दिए.
इसके अलावा, ‘ट्वाइलाइट सागा: न्यू मून’, ‘विंड रिवर’, ‘1883’, और ‘टुल्सा किंग’ जैसी कई फिल्मों और सीरीज में उन्होंने अहम भूमिकाएं निभाईं.
ग्राहम ग्रीन को सिर्फ एक अभिनेता के रूप में ही नहीं, बल्कि एक आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में भी जाना जाता था. उन्होंने उस दौर में हॉलीवुड में कदम रखा, जब आदिवासी कलाकारों के लिए दरवाजे लगभग बंद थे. उन्होंने न सिर्फ अपनी पहचान बनाई बल्कि दूसरों के लिए भी रास्ते खोले. आने वाली पीढ़ियों के लिए वे एक मिसाल बन गए.
अपनी निजी जिंदगी में वे बेहद शांत और जमीन से जुड़े इंसान थे. उनकी पत्नी, हिलरी ब्लैकमोर, और बेटी, लिली लाजारे, उनके सबसे करीब थे. उनका मानना था कि फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहीं होतीं, बल्कि ये समाज को सोचने का तरीका देती हैं.
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पीके/एबीएम
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