नई दिल्ली, 10 मई . अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से पाकिस्तान को एक अरब डॉलर के वितरण को मंजूरी दिए जाने के बाद अनुभवी वैश्विक निवेशक जिम रोजर्स ने शनिवार को कहा कि आतंकवाद को वित्तपोषित करना बेतुका है, जिसे रोका जाना चाहिए.
सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत ने ऐसे देश को धन मुहैया कराने का कड़ा विरोध किया है, जो सीमा पार आतंकवाद को प्रायोजित करना जारी रखता है.
भारत ने चेतावनी दी है कि इस तरह के समर्थन से वैश्विक संस्थाओं की प्रतिष्ठा को खतरा है और अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों को कमजोर किया जा रहा है.
समाचार एजेंसी के साथ बातचीत में 82 वर्षीय रोजर्स ने कहा कि वह वैश्विक संगठनों द्वारा आतंकवाद को वित्तपोषित किए जाने के खिलाफ हैं.
उन्होंने भारत द्वारा अपनी सीमाओं की रक्षा के प्रयासों की सराहना की.
रोजर्स ने कहा, “मैं निश्चित रूप से आतंकवाद को वित्तपोषित किए जाने के खिलाफ हूं और मुझे उम्मीद है कि पूरी दुनिया भी इसके खिलाफ है. आतंकवाद को वित्तपोषित किया जाना बेतुका है; आतंकवादी बेतुके हैं.”
देशों के बीच चल रहे संघर्ष पर, सिंगापुर में स्थित अमेरिकी निवेशक ने कहा, “भारत अपनी सीमाओं की रक्षा करने को लेकर सही है. हर देश अपनी सीमाओं की रक्षा करने में हमेशा सही होता है, लेकिन सवाल हमेशा यह होता है कि वास्तव में सीमाओं की रक्षा कौन कर रहा है और कौन हमला कर रहा है.”
उन्होंने कहा, “भारत दुनिया के महान देशों में से एक है.”
राजनीतिक नेताओं और विशेषज्ञों ने पाकिस्तान को आईएमएफ प्रतिपूर्ति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है, उन्होंने जोर देकर कहा कि इससे भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुता को कम करने में मदद नहीं मिलेगी.
भारत ने पाकिस्तान को आईएमएफ से और अधिक वित्तीय सहायता का कड़ा विरोध किया है.
वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “सीमा पार आतंकवाद के निरंतर प्रायोजन को पुरस्कृत करना एक खतरनाक संदेश देता है.”
मंत्रालय ने कहा, “यह फंडिंग एजेंसियों की प्रतिष्ठा के जोखिम में डालता है और वैश्विक मूल्यों को कमजोर करता है.”
सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत ने पाकिस्तान को लोन दिए जाने की अपनी असहमति जताते हुए खुद को वोटिंग से अलग कर लिया.
भारत ने मतदान में भाग न लेकर आईएमएफ की मतदान प्रणाली की सीमाओं के भीतर अपनी प्रबल असहमति व्यक्त की और इस अवसर का उपयोग औपचारिक रूप से अपनी आपत्तियों को दर्ज करने के लिए किया.
सूत्रों के अनुसार, भारत ने आईएमएफ की मौजूदा सहायता की प्रभावशीलता पर सवाल उठाया और कहा कि पाकिस्तान को पिछले 35 वर्षों में से 28 वर्षों में सहायता मिली है. इनमें पिछले पांच साल में चार कार्यक्रम शामिल हैं, जिनमें सार्थक या स्थायी सुधार नहीं हुआ है.
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एसकेटी/एकेजे
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