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हसीना सरकार के जाने के बाद बांग्लादेश–पाकिस्तान नजदीक? वीजा-फ्री एंट्री पर बनी सहमति, भारत सतर्क

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नई दिल्ली। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के जाने के बाद पाकिस्तान ने वहां की नई अंतरिम सरकार के साथ अपने रिश्ते तेज़ी से सुधारने शुरू कर दिए हैं। इसी क्रम में अब दोनों देशों ने राजनयिक और आधिकारिक पासपोर्ट धारकों के लिए वीजा-मुक्त यात्रा की व्यवस्था पर सहमति जता दी है। इस फैसले ने भारत की सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया है।

ढाका में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में पाकिस्तान के गृह मंत्री मोहसिन नकवी और बांग्लादेश के गृह मंत्री जहांगीर आलम चौधरी ने इस समझौते को अंतिम रूप दिया। पाकिस्तान गृह मंत्रालय के अनुसार, दोनों पक्षों ने "वीजा-फ्री एंट्री" की दिशा में औपचारिक सहमति दी है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह व्यवस्था कब से लागू होगी।

बातचीत के अहम बिंदु



बैठक के दौरान सिर्फ वीजा ही नहीं, बल्कि आंतरिक सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी उपाय, पुलिस प्रशिक्षण, नशीली दवाओं पर नियंत्रण और मानव तस्करी जैसे अहम मुद्दों पर भी चर्चा हुई। इन सभी क्षेत्रों में सहयोग के लिए एक संयुक्त समिति बनाई जा रही है, जिसका नेतृत्व पाकिस्तान की ओर से गृह सचिव खुर्रम अघा करेंगे।

इसके अलावा, दोनों देशों ने पुलिस अकादमियों के बीच ट्रेनिंग एक्सचेंज प्रोग्राम शुरू करने पर भी सहमति जताई है, जिसके तहत बांग्लादेश का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही इस्लामाबाद स्थित पाकिस्तान की राष्ट्रीय पुलिस अकादमी का दौरा करेगा।

भारत क्यों है चिंतित?

भारत की सुरक्षा एजेंसियों को आशंका है कि यह वीजा-फ्री समझौता पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों और असामाजिक तत्वों को बांग्लादेश के जरिए भारत में घुसपैठ करने में मदद कर सकता है।

शेख हसीना के शासन में पाकिस्तान के साथ रिश्ते बहुत सीमित थे और पाकिस्तानी राजनयिकों की गतिविधियों पर करीबी नजर रखी जाती थी। लेकिन अंतरिम सरकार आने के बाद पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंधों में अचानक तेजी भारत के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है।

नई दिल्ली को यह भी डर है कि इस सहयोग से वे तत्व सक्रिय हो सकते हैं जो भारत विरोधी गतिविधियों में पहले से शामिल रहे हैं। क्षेत्र में अस्थिरता और सुरक्षा जोखिम बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।

पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ता सहयोग केवल दो देशों का आपसी मामला नहीं है—यह पूरे दक्षिण एशिया की रणनीतिक संतुलन पर असर डाल सकता है। भारत के लिए यह विकास कूटनीतिक और सुरक्षा दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील है, और आने वाले समय में नई दिल्ली को इस दिशा में और सतर्कता बरतनी पड़ सकती है।

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