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'सभी प्राणियों के प्रति दया जरूरी है' — आवारा कुत्तों को हटाने के आदेश पर वकील की अपील सुनकर CJI गवई की प्रतिक्रिया

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दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को शेल्टर होम भेजने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जारी बहस बुधवार (13 अगस्त 2025) को फिर सुप्रीम कोर्ट में गूंज उठी। एक वकील ने इस फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की, जिस पर मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई (CJI B.R. Gavai) ने संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए कहा कि वह इस मामले की समीक्षा करेंगे।

बीते सोमवार, 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था। कोर्ट का यह रुख कुत्तों के काटने से बढ़ते रेबीज मामलों और मौतों को लेकर चिंता के बीच आया, हालांकि इस आदेश का एनिमल एक्टिविस्ट खुलकर विरोध कर रहे हैं।


पुराना आदेश और करुणा का सिद्धांत

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ता वकील ने मुख्य न्यायाधीश के सामने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला दिया। उन्होंने याद दिलाया कि उस आदेश में कहा गया था—“सभी जीवों के साथ करुणा का व्यवहार होना चाहिए।”

वकील ने दलील दी, “यह सामुदायिक कुत्तों का मामला है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि किसी भी परिस्थिति में इनकी अंधाधुंध हत्या नहीं की जा सकती। उस समय फैसला देने वाले पैनल में जस्टिस करोल भी थे। आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि प्रत्येक जीव के प्रति संवेदना रखना हमारा दायित्व है।”

CJI की प्रतिक्रिया

इन तर्कों को सुनने के बाद CJI गवई ने कहा, “लेकिन बेंच तो पहले ही अपना फैसला सुना चुकी है। फिर भी मैं इस पर नज़र डालूंगा।”
गौरतलब है कि 11 अगस्त को जस्टिस जे.बी. पारडीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने सख्त लहजे में टिप्पणी की थी—“क्या डॉग लवर्स, रेबीज से मर चुके लोगों को वापस ला सकते हैं?”

कोर्ट के निर्देश और अमल की व्यवस्था

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और नगर निगम को निर्देश दिया कि कुत्तों के काटने की घटनाओं के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए जाएं। शिकायत मिलने के अधिकतम चार घंटे के भीतर काटने वाले कुत्ते को पकड़कर स्टरलाइज और इम्यूनाइज कर शेल्टर होम भेजा जाए।
एनिमल एक्टिविस्ट की ओर से यह सुझाव भी आया कि कुत्तों को गोद लेकर घर में रखा जा सकता है, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा—“आवारा कुत्ता रातों-रात पालतू नहीं बन सकता।”

सख्त चेतावनी और रिपोर्टिंग की समयसीमा

कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि आदेश के क्रियान्वयन में कोई बाधा डालेगा तो यह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी। साथ ही, स्पष्ट निर्देश दिए गए कि पकड़े गए कुत्तों को किसी भी हाल में दोबारा सड़क पर न छोड़ा जाए।

नगर निगमों को छह हफ्ते के भीतर अपनी कार्यवाही की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का भी आदेश दिया गया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि फैसले का पालन पूरी तरह हो रहा है।

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