लाइव हिंदी खबर :-हिन्दू धर्म में मार्गशीर्ष के महीने को दान-धर्म और भक्ति का माह माना जाता है। श्रीमदभागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि महीनों में मैं मार्गशीर्ष का पवित्र महीना हूं। पौराणिक मान्याताओं के अनुसार मार्गशीर्ष माह से ही सतयुग काल आरंभ हुआ था।
हिन्दू महीने मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। बत्तीसी पूर्णिमा या कोरला पूर्णिमा इसके दूसरे नाम हैं, जिन्हें अक्सर मार्गशीर्ष पूर्णिमा के लिए जाना जाता है।
इस दिन स्नान, दान और तप का विशेष महत्व बताया गया है। इस माह में नदी स्नान करना सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, जिसके चलते मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन हरिद्वार, बनारस, मथुरा और प्रयागराज आदि जगहों पर श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान और तप आदि करते हैं।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि :
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन व्रत और पूजन करने सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है-
: इस दिन भगवान नारायण के पूजन का विधान है, इसलिए प्रातःकाल उठकर भगवान का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
: स्नान के बाद सफेद कपड़े पहनें और फिर आचमन करें। इसके बाद ऊँ नमोः नारायण कहकर आह्वान करें तथा आसन, गंध और पुष्प आदि भगवान को अर्पण करें।
: पूजा स्थल पर वेदी बनाएं और हवन के लिए उसमे अग्नि जलाएं। इसके बाद हवन में तेल, घी और बूरा आदि की आहुति दें।
: हवन की समाप्ति के बाद भगवान का ध्यान करते हुए उन्हें श्रद्धापूर्वक व्रत अर्पण करें।
: रात्रि को भगवान नारायण की मूर्ति के पास ही शयन करें।
: व्रत के दूसरे दिन जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराएँ और दान-दक्षिणा देकर उन्हें विदा करें।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का धार्मिक महत्व :
पौराणिक मान्यता है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर तुलसी की जड़ की मिट्टी से पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करने से भगवान विष्ण की विशेष कृपा मिलती है। इस दिन किये जाने वाले दान का फल अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना अधिक मिलता है, इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण की पूजा व कथा भी कही जाती है। यह परम फलदायी बताई गई है। कथा के बाद इस दिन सामर्थ्य के अनुसार गरीबों व ब्राह्मणों को भोजन और दान-दक्षिणा देने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।
इसके अलावा पूर्णिमा के दिन भगवान शिव और चंद्र देव की पूजा अर्चना करने का भी विशेष महत्व माना जाता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा पूजा :
चाकोर वेदी बनाकर हवन किया जाता है, हवन की समाप्ति के पश्चात के बाद भगवान का पूजन करना चाहिए और प्रसाद को सभी जनों में बांट कर स्वयं भी ग्रहण करें ब्राह्मणों को भोजन कराए साथ ही सामर्थ्य अनुसार दान भी देना चाहिए। पूजा के बाद सभी लोगों में प्रसाद वितरित करना चाहिए व भगवान विष्णु जी से मंगल व सुख कि कामना करनी चाहिए।
मार्गशीर्ष माह के संदर्भ में मान्यता है कि इस महीने में स्नान एवं दान का विशेष महत्व होता ह।. इस माह में नदी स्नान का विशेष महत्व माना गया है। जिस प्रकार कार्तिक ,माघ, वैशाख आदि महीने गंगा स्नान के लिए अति शुभ एवं उत्तम माने गए हैं। उसी प्रकार मार्गशीर्ष माह में भी गंगा स्नान का विशेष फल प्राप्त होता है। मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व खूब रहा है। जिस दिन मार्गशीर्ष माह में पूर्णिमा तिथि हो, उस दिन मार्गशिर्ष पूर्णिमा का व्रत करते हुए श्रीसत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा की जाती है जो अमोघ फलदायी होती है।
भगवान दत्तात्रेय जयंती :
सनातन धर्म के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शंकर की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था, इसीलिए उन्हें त्रिदेव का स्वरूप भी कहा जाता है। दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है। यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय थे। भगवान दत्तात्रेय से वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था।
ब्रह्माजी के मानसपुत्र महर्षि अत्रि इनके पिता तथा कर्दम ऋषि की कन्या और सांख्यशास्त्र के प्रवक्ता कपिलदेव की बहन सती अनुसूया इनकी माता थीं। श्रीमद्भागवत में महर्षि अत्रि एवं माता अनुसूया के यहां त्रिदेवों के अंश से तीन पुत्रों के जन्म लेने का उल्लेख मिलता है।
पुराणों अनुसार इनका तीन मुख, छह हाथ वाला त्रिदेवमयस्वरूप है। चित्र में इनके पीछे एक गाय औश्र इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है। विभिन्न मठ, आश्रम और मंदिरों में इनके इसी प्रकार के चित्र का दर्शन होता है।
दत्तात्रेय का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इन पर दो ग्रंथ हैं ‘अवतार-चरित्र’ और ‘गुरुचरित्र’, जिन्हें वेदतुल्य माना गया है। मार्गशीर्ष 7 से मार्गशीर्ष 14, यानी दत्त जयंती तक दत्त भक्तों द्वारा गुरुचरित्र का पाठ किया जाता है। इसके कुल 52 अध्याय में कुल 7491 पंक्तियां हैं। इसमें श्रीपाद, श्रीवल्लभ और श्रीनरसिंह सरस्वती की अद्भुत लीलाओं व चमत्कारों का वर्णन है।
मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य प्रात: काशी में गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका दत्त भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है। इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है। देशभर में भगवान दत्तात्रेय को गुरु के रूप में मानकर इनकी पादुका को नमन किया जाता है।
मान्यता अनुसार दत्तात्रेय ने परशुरामजी को श्रीविद्या-मंत्र प्रदान की थी। यह मान्यता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय ने अनेक विद्याएं दी थी। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय दत्तात्रेय को ही जाता है। दूसरी ओर मुनि सांकृति को अवधूत मार्ग, कार्तवीर्यार्जुन को तंत्र विद्या एवं नागार्जुन को रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई थी। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय की भक्ति से प्राप्त हुआ।
You may also like
Land Rover Classic Unveils Defender V8 Soft Top with Bespoke Options and Powerful V8 Engine
बहुत कुछ बताता है अंगूठे पर बना आधा चाँद, जानिए क्या संकेत देता है ये …, ⤙
क्या Anrich Nortje का रिकॉर्ड तोड़ पाएंगे Kuldeep Yadav? DC vs KKR मैच में चटकाने होंगे इतने विकेट
उत्तराखंड: मुखबा से मां गंगा की उत्सव डोली रवाना, बुधवार को खुलेंगे गंगोत्री धाम के कपाट
रानी दियारा और टपुआ दियारा में गंगा नदी का कटाव जारी, एमएलसी ने लिया जायजा