जो जीवन में कुछ नहीं करते, वे आजकल अपनी भावनाएं जरूर आहत करवाते रहते हैं। खुदा न खास्ता कोई दिन ऐसा गुजर जाए कि आहत होने के लिए तड़पती इनकी भावनाएं आहत नहीं हो पातीं तो ये बेचैन हो जाते हैं। इन्हें रातभर नींद नहीं आती, पेट खराब हो जाता है, आधा सीसी हो जाता है। जीवन निरर्थक लगने लगता है। आत्महत्या करने को जी मचलने-उछलने-कूदने लगता है।
वैसे पिछले ग्यारह वर्षों में भगवान की इन पर ऐसी कृपा रही है कि शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता है जब इनकी भावनाएं आहत होने से वंचित रहती हैं! मान लो किसी दिन सुबह आहत नहीं हुईं तो लंच से पहले या लंच के बाद हो जाती हैं। फिर भी नहीं हो पाईं तो शाम का इंतजार रहता है! तब भी मान लो, ऐसी कोई घटना, ऐसा कोई उपक्रम नहीं हुआ तो रात के दो बजे तक ये इंतजार करते हैं। फिर ये वीर स्वयं अपनी भावनाओं को आहत करवाने के लिए सड़कों पर निकल पड़ते हैं। भले ही सुबह के छह बज जाएं मगर भावनाएं आहत करवाकर ही घर लौटते हैं। फिर चाय या दारू- जैसी भी इनकी श्रद्धा, आस्था या विश्वास अथवा सुविधा हो, पीते हैं और फिर फ्रेश होने चले जाते हैं।
इनकी भावनाएं अवसर देखकर आहत होती हैं। जैसे तमिलनाडु में बीजेपी की सरकार नहीं है तो वहां हिंदू भावनाएं अक्सर जाग्रत नहीं होतीं! होना चाहती हैं तो बहुत सावधानी से, बहुत सोच -समझ कर, दांये-बांये देखकर वो भी न्यूनतम स्तर पर आहत होती हैं जबकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र में सुबह-शाम भावनाएं आहत होती रहती हैं। पहले कर्नाटक में बीजेपी की सरकार थी तो इनकी भावनाओं को आहत होने से अवकाश नहीं मिलता था, अब डरते-डरते, झेंपते-झेंपते आहत होती हैं और इतनी ज्यादा आहत नहीं होतीं कि लाइलाज हो जाएं! सुबह मान लो 9 बजकर पच्चीस मिनट पर भावनाएं आहत हुईं तो दस बजकर दो मिनट तक घाव भर जाता है क्योंकि भावनाओं को डर रहता है कि वे स्वयं शांत नहीं हुईं तो उन्हें शांत करवा दिया जाएगा!
भावना आहत होने का खेल अखिल भारतीय हो चला है। आजकल कन्नड़भाषियों की भावनाएं आहत हैं। मगर इस बार आहत भावनाओं के केंद्र में वहां के मुसलमान नहीं हैं! इस बार भावनाएं भाषा के मुद्दे पर आहत हैं। कमल हासन ने अपनी फिल्म रिलीज होते समय किसी संदर्भ में कह दिया कि कन्नड़ भाषा का जन्म तमिल से हुआ है। बस इतना काफी था! वैसे फिल्म रिलीज के समय कोई फिल्म निर्माता-निर्देशक-कलाकार किसी की भी कैसी भी भावनाएं आहत करने की गलती नहीं करता, मगर भावनाएं चूंकि भड़कने के लिए कपड़े-जूते पहनकर हमेशा तैयार रहती हैं तो फिल्म वाले ऐसा होने की दशा में भी तुरंत मलहम लगा देते हैं।
कमल हासन ने ऐसा नहीं किया। कर नहीं सकते थे। उनकी अपनी समस्या थी। वे अपनी फिल्म को कर्नाटक में रिलीज़ करवाने की खातिर अपनी बात से पीछे नहीं हट सकते थे। हटते तो अपने प्रदेश तमिलनाडु के लोगों की भावनाएं आहत हो जातीं। और अगर वहां भावनाएं आहत हो जातीं तो वहां से उनका टीन टप्पर उखड़ जाता, इसलिए उन्होंने थोड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पसंद किया मगर अपनी बात से पीछे हटना नहीं। इसी में बुद्धिमानी थी और बेशक वह बुद्धिमान तो हैं ही!
वैसे भावनाएं बहुत सोच-समझकर आहत होती हैं। मैं अगर यह कह दूं कि हां कमल हासन सही कह रहे हैं तो मेरे ऐसा कहने से कन्नड़ भाषियों की भावनाएं आहत नहीं होंगी और अगर मैं यह कह दूं कि नहीं कमल हासन गलत हैं तो भी तमिल भाषियों की भावनाएं आहत नहीं होंगी क्योंकि भावनाओं को आहत करने के लिए कोई कमल हासन चाहिए, विष्णु नागर टाइप कोई नहीं। हम जैसा गुमनाम आदमी कुछ भी कहे, कोई फर्क नहीं पड़ता! मुझे दुख इस बात का है कि मैं इतना जीवन पाकर भी इस योग्य नहीं हो पाया कि जाने या अनजाने किसी वर्ग की भावनाएं आहत कर सकूं! मैं तो इतना नालायक हूं कि हिंदुओं तक की भावनाएं आहत नहीं कर पाया!
खैर मेरी बात छोड़िए। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से भावनाओं को आहत करने की इजाजत सी दे दी है। कह दिया है कि आजकल तो हर बात पर भावनाएं आहत होती हैं तो कहां तक और क्या-क्या रोकें? कभी किसी फिल्म की रिलीज होने से भावनाएं आहत हो जाती हैं तो कभी किसी की स्टैंड अप कॉमेडी से, तो कभी किसी के कविता पाठ से! कहां तक हर जगह कूद पड़ने वाली इन भावनाओं की रक्षा करें! कर्नाटक की सरकार कमल हासन की फिल्म ' ठग लाइफ' को कर्नाटक में रिलीज़ होने दे और इसमें अगर कोई बाधा डाले तो उस पर दीवानी या आपराधिक मुकदमा चलाए।
सुप्रीम कोर्ट ने तो कह दिया है मगर अब देखना यह है कि 2014 में आजाद हुए इस 'नये भारत' में सुप्रीम कोर्ट अधिक पावरफुल साबित होती है या भावनाओं के आहत होते रहने वाले लोग! लगता तो यही है कि सुप्रीम कोर्ट से ज्यादा ताकतवर ये हैं क्योंकि भावनाओं का ठेका आजकल इन्होंने हथिया रखा है! जब से ये भावनामय हुए हैं, हमने तय किया है कि हमारा भावनाविहीन होना इस समय ठीक है! इन्हें भावनाओं के आहत होने से खुशी मिलती है तो इन्हें अभी खुश हो लेने दो! खुश होने की भी एक लिमिट होती है। एक बार उसे इन्होंने क्रॉस कर लिया तो अपने आप समझ में आ जाएगा कि भावनाएं पलट कर तगड़ा वार करना भी जानती हैं!
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