एक खच्चर वाला जिसने अपने गृह राज्य आने वाले पर्यटकों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी, एक गाइड जिसने 11 लोगों के एक परिवार को बचाया और अनगिनत स्थानीय निवासी उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने कश्मीर के आतिथ्य को उस समय एक नया आयाम दिया, जब मंगलवार को पहलगाम में आतंकवादियों ने निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाया।
पर्यटकों पर हुए बर्बर हमले को लेकर जहां एक तरफ देश भर में रोष देखने को मिला, वहीं स्थानीय लोगों द्वारा उन लोगों की मदद करने की कहानियां भी सामने आने लगीं जो भयावह स्थिति में फंसे हुए थे।
ये कहानियां उन लोगों से जुड़ीं है, जिन्होंने आतंकी हमले के दौरान ‘‘फरिश्ता’’ बनकर पर्यटकों की जान बचाई और उनके सबसे बड़े संकट के समय मदद का हाथ बढ़ाया था।
जब आतंकी हमले के पीड़ितों की प्रारंभिक सूची सार्वजनिक की गई, तो सैयद आदिल हुसैन शाह का नाम ही स्थानीय लोगों में से एक था। उनकी बहादुरी की कहानी सुनकर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला समेत हजारों लोग बुधवार को पहलगाम के एक गांव में उनके जनाजे में शामिल हुए।
जब कौस्तुभ गनबोटे और संतोष जगदाले नामक दो पीड़ितों के परिवार हथियारबंद आतंकवादियों के सामने खड़े थे, तो 30 वर्षीय खच्चर वाला शाह ने उनसे पूछा कि वे निर्दोष लोगों को क्यों मार रहे हैं। पर्यटकों की रक्षा करने के साहसी प्रयास में, शाह ने हथियार छीनने की कोशिश की। आतंकियों ने शाह की छाती में तीन गोलियां मारीं, जिससे उनकी मौत हो गयी।
संतोष जगदाले की बेटी असावरी जगदाले बताया कि जब वे लोग इस अफरातफरी से बचकर निकले तो एक अन्य खच्चर वाले ने उनकी मदद की थी।
पुणे से पहलगाम गईं असावरी ने बताया, ‘‘मैंने हिम्मत जुटाई और अपनी मां और अन्य रिश्तेदार के साथ भागने में कामयाब रही। नीचे उतरते समय मेरी मां के पैर में चोट लग गई। एक खच्चर वाले ने हमें सहारा दिया और उम्मीद जगाई। वह हमें खच्चर पर बैठाकर हमारे चालक के पास तक ले गया।’’
असावरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उनके कैब चालक और खच्चर वाला ‘‘ईश्वर के भेजे गए फरिश्तों की तरह थे जो हमले के समय उनके साथ खड़े रहे। खच्चर वाले ने हमारा साथ नहीं छोड़ा, वह हमारे साथ था। उसने मेरी मां, एक रिश्तेदार और मुझे मौके से बचाया।’’
सैयद आदिल हुसैन शाह के चचेरे भाई नजाकत अहमद शाह भी घटनास्थल पर मौजूद थे और उन्होंने तीन बच्चों सहित 11 पर्यटकों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
नजाकत (28) चार जोड़ों और तीन बच्चों को कश्मीर यात्रा के अंतिम चरण में बैसरन ले गए थे। समूह के उस स्थान से निकलने से ठीक पहले, गोलियों की आवाज सुनकर नजाकत सचेत हो गए और वह दो बच्चों के साथ जमीन पर लेट गये।
नजाकत ने बताया, ‘‘मेरी पहली चिंता पर्यटक परिवारों की सुरक्षा थी। मैंने दोनों बच्चों को लिया और जमीन पर लेट गया। यह इलाका बाड़ से घिरा हुआ था, इसलिए भागना आसान नहीं था। मैंने एक छोटा सा रास्ता देखा और परिवारों से उस रास्ते से बाहर निकलने को कहा। उन्होंने मुझसे पहले बच्चों को बचाने को कहा। मैं दोनों बच्चों को लेकर उस रास्ते से निकल गया और पहलगाम शहर की ओर भागा।’’
बच्चों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के बाद वह वापस मौके पर पहुंचे और बाकी लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला।
नजाकत के निस्वार्थ कार्य की कहानी तब सामने आई जब पर्यटकों में शुमार अरविंद अग्रवाल ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर नजाकत शाह के साथ अपनी और अपनी बेटी की तस्वीरें पोस्ट कीं।
उन्होंने लिखा, ‘‘आपने अपनी जान जोखिम में डालकर हमारी जान बचाई, हम नजाकत भाई का कर्ज कभी नहीं चुका पाएंगे।’’
एक अन्य पर्यटक कुलदीप ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘‘नजाकत भाई, आपने उस दिन न केवल मेरी जान बचाई, बल्कि आपने मानवता को भी जिंदा रखा। मैं आपको जीवन भर नहीं भूलूंगा।’’
इसी तरह टूरिस्ट गाइड साजद अहमद भट ने भी पर्यटकों को बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की। एक बच्चे को अपनी पीठ पर लेकर पहाड़ से नीचे उतरते हुए उनके वीडियो काफी प्रसारित हुए और कई लोग जानना चाहते थे कि यह बहादुर, मददगार व्यक्ति कौन है।
भट ने ‘पीटीआई वीडियो’ से कहा, ‘‘मानवता सबसे ऊपर है... यह (आतंकी हमला) मानवता की हत्या है।’’