नई दिल्ली: सऊदी अरब भारत में दो रिफाइनरी बनाने के लिए भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर काम करेगा। यह कदम वह भारत के रिफाइनिंग सेक्टर में अपनी जगह बनाने के लिए उठा रहा है। पहले सऊदी अरब को इस क्षेत्र में दो बार असफलता मिली थी। अब सऊदी अरब अपने तेल के भविष्य को सुरक्षित करना चाहता है। सूत्रों के अनुसार, प्रत्येक रिफाइनरी की क्षमता लगभग 90 लाख टन सालाना होगी। इसमें 26% इक्विटी हिस्सेदारी के लिए अरामको को लगभग 18,000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की जेद्दा में हुई मुलाकात के बाद दोनों देशों ने भारत में दो रिफाइनरी स्थापित करने पर सहमति जताई है। सऊदी अरब का भारत में दो रिफाइनरी बनाने के लिए भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर काम करने का निर्णय महत्वपूर्ण है जिसके कई निहितार्थ हैं। खासकर पाकिस्तान के संदर्भ में। यह सौदा न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा बल्कि भू-राजनीतिक रूप से भी उसकी ताकत बढ़ाएगा। पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव बढ़ गया है। खास बात यह है कि तमाम देशों के साथ सऊदी अरब ने भी इस आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की है। रिफाइनरी परियोजनाओं में 26% तक हिस्सेदारी खरीदने की बातईटी ने अक्टूबर में यह खबर दी थी कि भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (BPCL) और ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉर्पोरेशन (ONGC) अपनी अलग-अलग रिफाइनरी परियोजनाओं में सऊदी अरामको को भागीदार बनाने के लिए बातचीत कर रहे हैं।अरामको दोनों रिफाइनरी परियोजनाओं में 26% तक हिस्सेदारी खरीदने के लिए बातचीत कर रही है। बीपीसीएल आंध्र प्रदेश में अपनी रिफाइनरी-कम-पेट्रोकेमिकल फैक्ट्री के लिए एक रिपोर्ट तैयार कर रही है। इस फैक्ट्री की क्षमता 9-12 मिलियन टन सालाना हो सकती है। सूत्रों के अनुसार, 9 mtpa क्षमता वाली सुविधा की लागत लगभग 95,000 करोड़ रुपये हो सकती है। इसमें कर्ज और इक्विटी का अनुपात 65:35 होने की संभावना है। बीपीसीएल और उसकी सहयोगी को इक्विटी में 33,000 करोड़ रुपये का निवेश करना होगा। परियोजना में 26% इक्विटी हिस्सेदारी के लिए अरामको को लगभग 9,000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं। ओएनजीसी के साथ इसी तरह का सौदा होने पर अरामको को लगभग 18,000 करोड़ रुपये का निवेश करना पड़ सकता है।अरामको ने इक्विटी हिस्सेदारी के बदले यह शर्त रखी है कि प्रस्तावित रिफाइनरी अपने पूरे जीवनकाल में ज्यादातर कच्चे तेल की सप्लाई अरामको से ही लेगी। भारतीय रिफाइनरियों ने इस शर्त को अस्वीकार कर दिया है। भारतीय कंपनियों ने रखी है शर्त सूत्रों के अनुसार, भारतीय कंपनियां सऊदी कच्चे तेल (क्रूड) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा लेने के लिए तभी सहमत हो सकती हैं जब अरामको कीमत में छूट, माल ढुलाई में छूट या 90 दिनों की क्रेडिट अवधि जैसी रियायतें दे।ओएनजीसी के साथ अरामको की बातचीत अभी शुरुआती दौर में है। सूत्रों के अनुसार, ओएनजीसी परियोजना में 20-49% हिस्सेदारी देने को तैयार है। लेकिन, अरामको अपनी हिस्सेदारी को 26% या उससे कम तक सीमित रखना चाहती है। अभी तक स्थान, रिफाइनरी का ढांचा और निर्माण लागत तय नहीं हुई है। ओएनजीसी उत्तर प्रदेश में 9 mtpa या उससे बड़ी रिफाइनरी-सह-पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स बनाने पर विचार कर रही है। उत्तर प्रदेश में रिफाइनरियों की सप्लाई की तुलना में ईंधन की खपत बहुत अधिक है। ओएनजीसी प्रयागराज के पास जमीन का एक टुकड़ा देख रही है जिसे BPCL ने एक दशक पहले एक रिफाइनरी परियोजना के लिए खरीदा था। लेकिन, उसे कभी विकसित नहीं किया। सूत्रों ने बताया कि ONGC की रिफाइनरी गुजरात में नहीं बनने की संभावना है, क्योंकि राज्य में पहले से ही भारत की एक तिहाई रिफाइनिंग क्षमता मौजूद है।2018 में, सऊदी अरामको ने सरकारी रिफाइनरियों के एक समूह- इंडियन ऑयल, BPCL और HPCL- के साथ महाराष्ट्र में 60 मिलियन टन प्रति वर्ष की रिफाइनरी-सह-पेट्रोकेमिकल परियोजना में 50% हिस्सेदारी के लिए एक समझौता किया था। हालांकि, जमीन अधिग्रहण में कठिनाइयों के कारण यह परियोजना आगे नहीं बढ़ पाई। 2019 में, अरामको ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के तेल-से-रसायन व्यवसाय में 15 अरब डॉलर में 20% हिस्सेदारी खरीदने पर सहमति जताई। लेकिन, मूल्यांकन में असहमति के कारण दो साल बाद यह सौदा रद्द कर दिया गया।
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