सुप्रीम कोर्ट के नवनियुक्त चीफ जस्टिस बीआर गवई और निवर्तमान CJI संजीव खन्ना ने यह कहकर न्यायपालिका की गरिमा और विश्वसनीयता बढ़ाई है कि वे रिटायरमेंट के बाद कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे। दोनों ने पूरे सिस्टम के लिए नजीर पेश की है। पारदर्शिता के प्रयास: जस्टिस खन्ना का कार्यकाल बहुत छोटा रहा, लेकिन इसी दरम्यान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में आम लोगों का भरोसा बढ़ाने वाले कई कदम उठाए। जस्टिस यशवंत वर्मा कैश कांड उनके लिए एक परीक्षा की तरह था। लोगों के मन में तमाम सवाल उठ रहे थे। CJI खन्ना ने न केवल उस मामले को तार्किक परिणति तक पहुंचाया, बल्कि उन्हीं की पहल पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक कर स्ट्रॉन्ग पॉजिटिव मेसेज दिया। संदेह दूर किया: इसी तरह, जस्टिस खन्ना के ही दौर में कलीजियम सिस्टम पर उठ रहे संदेहों को दूर करने का प्रयास भी किया गया था। इस सिस्टम पर भाई-भतीजावाद के आरोप लग रहे थे। ऐसे में जस्टिस खन्ना ने पिछले करीब तीन साल में कलीजियम में जितने भी प्रस्ताव आए थे, उन सभी को सार्वजनिक कर दिया। कौन रिकमेंड हुआ, किस आधार पर हुआ और किनको नियुक्ति मिली- इन सवालों के जवाब मिले तो संदेह के बादल भी छंट गए। करीब तीन साल में 221 नाम भेजे गए थे, जिसमें से केवल 14 किसी जज या पूर्व न्यायाधीश के रिश्तेदार थे। संविधान सर्वोच्च: नए CJI गवई ने पद संभालने से पहले एक और महत्वपूर्ण बात कही थी। न्यायपालिका और विधायिका में कौन बड़ा - के सवाल पर उन्होंने स्पष्ट किया कि देश में संविधान की सर्वोच्चता है। पिछले दिनों चली बहस के संदर्भ में यह बात महत्वपूर्ण है। लंबित मुकदमों का भार: हालांकि नए CJI के सामने कई चुनौतियां हैं। न्यायपालिका पर लंबित मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है और इसका उन्होंने जिक्र भी किया। देश की अदालतों में पांच करोड़ से ज्यादा केस पेंडिंग हैं। ये आंकड़े न्याय मिलने की रफ्तार को धीमा करते हैं। भरोसा और पारदर्शिता बढ़ाने के साथ न्याय मिलने की रफ्तार में भी तेजी लाने की कोशिश होनी चाहिए। बड़ा मकसद: लोकतंत्र मजबूत तभी है, जब न्यायपालिका मजबूत हो, जब वह निष्पक्ष होकर बिना किसी डर या लालच के अपना कर्तव्य निभाए और निभाती हुई दिखे। जस्टिस गवई और जस्टिस खन्ना का स्टैंड इसी बड़े मकसद से प्रेरित है। इससे देश की सर्वोच्च अदालत की छवि और चमकदार बनेगी।
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