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पाकिस्तान पर शिकंजा कसे भारत

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पहलगाम आतंकी हमले का जवाब देते हुए भारत ने कुछ सख्त कदम उठाए हैं। इनमें सबसे अहम है सिंधु जल समझौते को निलंबित करना। उरी में आतंकी हमले के बाद भारतीय पीएम ने कहा था कि सिंधु में जल और खून एक साथ नहीं बह सकते। इस बार सरकार इसी पर आगे बढ़ी है। हालांकि इतना काफी नहीं है। पुलवामा और पहलगाम जैसी घटनाओं से बचने के लिए ज्यादा निर्णायक और सटीक कदम उठाने की जरूरत है। टेरर फंडिंग: भारत ने पुलवामा का जवाब बालाकोट से दिया था। वह अप्रत्याशित और साहसिक कदम था। हालांकि इसके बाद भी सीमा पार आतंकवाद खत्म नहीं हुआ। इसकी वजह है आतंकियों तक पहुंचने वाली वह सप्लाई चेन, जिसे पाकिस्तान चालू रखे हुए है। वह पिछले कुछ साल से गंभीर आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। उसकी गाड़ी IMF और कुछ सहयोगी देशों के कर्ज से किसी तरह चल रही है। इसके बाद भी वह आतंकवादी गतिविधियों के लिए फंडिंग का जुगाड़ कर लेता है। भारत को इसी फंडिंग को खत्म करना होगा। हथियारों पर रोक: पाकिस्तान का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता चीन है। इस्लामाबाद अपने 81% हथियार पेइचिंग से लेता है। इसके बाद नंबर है अमेरिका का। इन्हीं हथियारों का इस्तेमाल फिर भारत के खिलाफ किया जाता है। नई दिल्ली को इस बारे में दोनों देशों के साथ स्पष्ट बात करनी चाहिए। 2019 का उदाहरण भी दुनिया के सामने है, जब अमेरिकी रोक के बावजूद पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ F-16 का इस्तेमाल किया था। दुनिया को यह बताने की जरूरत है कि पाकिस्तानी सेना को दी गई एक भी गोली किसी टेरर कैंप में पहुंच सकती है। आर्थिक मदद न मिले: अमेरिका और भारत के करीबी रिश्ते हैं। दूसरी ओर, चीन के साथ सीमा विवाद भले हो, लेकिन आर्थिक रिश्ते मजबूत हैं। 2024 में दोनों के बीच 118 अरब डॉलर से ज्यादा का व्यापार हुआ और इसमें पलड़ा चीन की तरफ झुका हुआ है। अमेरिका और चीन - दोनों को भारत का बाजार चाहिए। भारत को अपनी इस मजबूत आर्थिक हैसियत का फायदा उठाते हुए साफ कर देना चाहिए कि पाकिस्तान को अब और आर्थिक मदद नहीं। इसी तरह की बातचीत यूएई और सऊदी अरब के साथ भी होनी चाहिए, जहां से इस्लामाबाद को आर्थिक मदद मिलती रहती है। दो टूक बात: पड़ोसी देश के छेड़े छद्म युद्ध से निपटने के लिए भारत को अपना रुख बेहद कड़ा करना होगा। इस दो टूक बातचीत में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि जो देश पाकिस्तान को आर्थिक या सैन्य मदद देंगे, वे भारत का भरोसा खोएंगे।
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