रामबाबू मित्तल, मेरठ: सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शनिवार को शहर के शास्त्रीनगर सेंट्रल मार्केट में बने 35 साल पुराने तीन मंजिला कॉम्प्लेक्स को ध्वस्त कर दिया गया। इस कॉम्प्लेक्स में 22 दुकानें थीं, जो स्थानीय व्यापारियों की आजीविका का जरिया थीं। जैसे ही बुलडोजर चला, वहां मौजूद व्यापारी और उनके परिवार फफक पड़े। किसी के लिए वह दुकान रोज़ी-रोटी का सहारा थी, तो किसी के लिए पीढ़ियों की मेहनत की पहचान।
शनिवार सुबह 11 बजे से शुरू हुई कार्रवाई करीब सात घंटे चली। पहले दिन कॉम्प्लेक्स का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा गिराया गया। रविवार को सुबह साढ़े 9 बजे फिर से ऑपरेशन शुरू हुआ। पूरे इलाके को पुलिस ने घेर लिया, सड़कों पर बैरिकेडिंग कर दी गई और सुरक्षा के लिए कई थानों की फोर्स के साथ पीएसी तैनात रही। ड्रोन से हर गतिविधि पर नज़र रखी जा रही थी।
मलबे में बिखरे अरमान
कॉम्प्लेक्स के गिरते ही आसपास धूल का गुबार छा गया। अलंकार साड़ी सूट्स शॉप के मालिक विनोद अरोड़ा अपनी पत्नी, बहन और बेटों के साथ सुबह से ही कुर्सी पर बैठे अपनी दुकान को निहारते रहे। जैसे ही बुलडोजर ने दीवारें तोड़ीं, परिवार की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। वे कहते हैं इस दुकान से ही घर चलता था, अब कैसे गुजारा करेंगे? आसपास के अन्य दुकानदार भी अपने टूटे सपनों को देखकर मायूस खड़े रहे। कई महिलाओं ने अधिकारियों से हाथ जोड़कर कार्रवाई रोकने की गुहार लगाई, लेकिन कोर्ट के आदेश के आगे किसी की एक न चली।
क्यों चला बुलडोजर
यह कॉम्प्लेक्स करीब 288 वर्गमीटर भूमि पर बना था। यह जमीन मूल रूप से काजीपुर निवासी वीर सिंह को आवासीय उपयोग के लिए आवंटित की गई थी। साल 1990 में विनोद अरोड़ा नाम के व्यक्ति ने कथित तौर पर पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए इस पर अवैध रूप से व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स खड़ा कर दिया।
मामला धीरे-धीरे अदालतों तक पहुंचा और अंततः सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर 2024 को आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर इसे खाली कराया जाए और फिर आवास विकास परिषद इसे दो सप्ताह में ध्वस्त करे। आदेश का पालन न होने पर याचिकाकर्ता लोकेश खुराना ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। कोर्ट ने सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा था। 27 अक्टूबर जवाब दाखिल करने की अंतिम तारीख थी। इसी वजह से शनिवार को जल्दबाजी में कॉम्प्लेक्स को जमींदोज कर दिया गया। अब सोमवार को राज्य सरकार को इस कार्रवाई की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में सौंपनी है।
31 और दुकानों पर गिरेगी गाज
आवास विकास परिषद के डिप्टी हाउसिंग कमिश्नर अनिल कुमार सिंह ने बताया कि इसी इलाके में आवासीय भूखंडों पर बने 31 और व्यावसायिक निर्माणों को नोटिस भेजा गया है। आने वाले दिनों में इन सभी को भी ढहाया जाएगा। ध्वस्तीकरण की इस पूरी कार्रवाई के लिए 86 लाख रुपये का टेंडर हुआ है, जिसे लखनऊ की एक कंपनी को दिया गया है।
लोगों में आक्रोश और मायूसी
कॉम्प्लेक्स ढहते ही क्षेत्र में सन्नाटा पसर गया। कई व्यापारी जमीन पर बैठकर रोते दिखे। कुछ लोग मलबे में अपनी दुकानों के बोर्ड और टूटी हुई अलमारियां खोजते नजर आए। प्रशासन ने धूल को कम करने के लिए जगह-जगह पानी का छिड़काव किया, मगर हवा में उड़ा धुआं और धूल मानो उन टूटे अरमानों की गवाही दे रहा था जो सालों की मेहनत से खड़े किए गए थे। सेंट्रल मार्केट में अब सिर्फ कॉम्प्लेक्स का मलबा बचा है वो मलबा जिसमें दब गई सैकड़ों परिवारों के सपने, उनकी खुशियां उनकी उम्मीदें और संघर्ष की वो कहानियां, जो अब सिर्फ यादों में रह गई ।
शनिवार सुबह 11 बजे से शुरू हुई कार्रवाई करीब सात घंटे चली। पहले दिन कॉम्प्लेक्स का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा गिराया गया। रविवार को सुबह साढ़े 9 बजे फिर से ऑपरेशन शुरू हुआ। पूरे इलाके को पुलिस ने घेर लिया, सड़कों पर बैरिकेडिंग कर दी गई और सुरक्षा के लिए कई थानों की फोर्स के साथ पीएसी तैनात रही। ड्रोन से हर गतिविधि पर नज़र रखी जा रही थी।
मलबे में बिखरे अरमान
कॉम्प्लेक्स के गिरते ही आसपास धूल का गुबार छा गया। अलंकार साड़ी सूट्स शॉप के मालिक विनोद अरोड़ा अपनी पत्नी, बहन और बेटों के साथ सुबह से ही कुर्सी पर बैठे अपनी दुकान को निहारते रहे। जैसे ही बुलडोजर ने दीवारें तोड़ीं, परिवार की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। वे कहते हैं इस दुकान से ही घर चलता था, अब कैसे गुजारा करेंगे? आसपास के अन्य दुकानदार भी अपने टूटे सपनों को देखकर मायूस खड़े रहे। कई महिलाओं ने अधिकारियों से हाथ जोड़कर कार्रवाई रोकने की गुहार लगाई, लेकिन कोर्ट के आदेश के आगे किसी की एक न चली।
क्यों चला बुलडोजर
यह कॉम्प्लेक्स करीब 288 वर्गमीटर भूमि पर बना था। यह जमीन मूल रूप से काजीपुर निवासी वीर सिंह को आवासीय उपयोग के लिए आवंटित की गई थी। साल 1990 में विनोद अरोड़ा नाम के व्यक्ति ने कथित तौर पर पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए इस पर अवैध रूप से व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स खड़ा कर दिया।
मामला धीरे-धीरे अदालतों तक पहुंचा और अंततः सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर 2024 को आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर इसे खाली कराया जाए और फिर आवास विकास परिषद इसे दो सप्ताह में ध्वस्त करे। आदेश का पालन न होने पर याचिकाकर्ता लोकेश खुराना ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। कोर्ट ने सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा था। 27 अक्टूबर जवाब दाखिल करने की अंतिम तारीख थी। इसी वजह से शनिवार को जल्दबाजी में कॉम्प्लेक्स को जमींदोज कर दिया गया। अब सोमवार को राज्य सरकार को इस कार्रवाई की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में सौंपनी है।
31 और दुकानों पर गिरेगी गाज
आवास विकास परिषद के डिप्टी हाउसिंग कमिश्नर अनिल कुमार सिंह ने बताया कि इसी इलाके में आवासीय भूखंडों पर बने 31 और व्यावसायिक निर्माणों को नोटिस भेजा गया है। आने वाले दिनों में इन सभी को भी ढहाया जाएगा। ध्वस्तीकरण की इस पूरी कार्रवाई के लिए 86 लाख रुपये का टेंडर हुआ है, जिसे लखनऊ की एक कंपनी को दिया गया है।
लोगों में आक्रोश और मायूसी
कॉम्प्लेक्स ढहते ही क्षेत्र में सन्नाटा पसर गया। कई व्यापारी जमीन पर बैठकर रोते दिखे। कुछ लोग मलबे में अपनी दुकानों के बोर्ड और टूटी हुई अलमारियां खोजते नजर आए। प्रशासन ने धूल को कम करने के लिए जगह-जगह पानी का छिड़काव किया, मगर हवा में उड़ा धुआं और धूल मानो उन टूटे अरमानों की गवाही दे रहा था जो सालों की मेहनत से खड़े किए गए थे। सेंट्रल मार्केट में अब सिर्फ कॉम्प्लेक्स का मलबा बचा है वो मलबा जिसमें दब गई सैकड़ों परिवारों के सपने, उनकी खुशियां उनकी उम्मीदें और संघर्ष की वो कहानियां, जो अब सिर्फ यादों में रह गई ।
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