प्रवेश सिंह, ग्रेटर नोएडा: जेवर में बसे रीसेटलमेंट एंड रीहैबलिटेशन (RR) सेंटर में एंट्री करते ही चौड़ी सड़कें, स्ट्रीट लाइट, ग्रीनरी, साइन बोर्ड देख लगेगा कि किसी पॉश एरिया में आ गए। यहां लोगों के पास रहने के लिए अच्छी छत तो है, लेकिन खाने, बच्चों को पढ़ाने और इलाज के लिए पैसे है न रोजगार।
लोगों ने नोएडा एयरपोर्ट के पहले चरण के लिए अपनी जमीन दी। इसके बाद विस्थापित हो गए। अब रोजगार का साधन नहीं होने से बदहाली का जीवन जी रहे हैं। मुआवजे का पैसा खत्म हो गया और जीवन यापन के संसाधनों के वादे 5 साल बाद भी हवा में है।
जो मिला था, वह घर बनाने और कर्ज उतारने में खर्च
एयरपोर्ट के पहले चरण के लिए 1334 हेक्टेयर जमीन ली गई थी। 2020 में नगला गणेशी, रोही, नगला शरीफ खां, नगला फूल खां, नगला छीतर, दयानतपुर खेड़ा, किशोरपुर आदि गांवों के करीब 9 हजार परिवारों को आरआर सेंटर में बसाया गया। इनमें करीब 40 प्रतिशत किसान परिवार ऐसे थे, जिनके पास ज्यादा जमीनें थीं और उनको मोटा मुआवजा मिला। ये लोग आज भी पैसे वाले हैं।
बाकी परिवार कम जमीन वाले थे या फिर जिनके पास जमीनें नहीं थीं। वे बड़े किसानों के यहां खेतीबाड़ी का काम कर या पशु पालकर गुजारा करते थे। विस्थापित होने के बाद ये लोग परेशान है। आसपास रोजगार के साधन नहीं है। सेंटर में बेरोजगार युवाओं का जमावड़ा लगा रहता है। रोजगार के जो संसाधन विकसित होने थे, उन पर काम नहीं हुआ।
मुआवजे की रकम घर बनाने, कर्ज उतारने और 5 साल का खर्च उठाने में खत्म हो गई। युवा किसान रोहित कहते हैं, 'हमने जमीन दी ताकि देश और प्रदेश को एयरपोर्ट मिल सके। बदले में हमें बदहाली और बेरोजगारी मिली। वादे के मुताबिक, हर परिवार से एक सदस्य को नौकरी नहीं मिली। बुजुर्ग रामनिवास अगली पीढ़ी की चिंता में फफक उठे।
5 साल में भी ये वादे पूरे नहीं
लोगों ने नोएडा एयरपोर्ट के पहले चरण के लिए अपनी जमीन दी। इसके बाद विस्थापित हो गए। अब रोजगार का साधन नहीं होने से बदहाली का जीवन जी रहे हैं। मुआवजे का पैसा खत्म हो गया और जीवन यापन के संसाधनों के वादे 5 साल बाद भी हवा में है।
जो मिला था, वह घर बनाने और कर्ज उतारने में खर्च
एयरपोर्ट के पहले चरण के लिए 1334 हेक्टेयर जमीन ली गई थी। 2020 में नगला गणेशी, रोही, नगला शरीफ खां, नगला फूल खां, नगला छीतर, दयानतपुर खेड़ा, किशोरपुर आदि गांवों के करीब 9 हजार परिवारों को आरआर सेंटर में बसाया गया। इनमें करीब 40 प्रतिशत किसान परिवार ऐसे थे, जिनके पास ज्यादा जमीनें थीं और उनको मोटा मुआवजा मिला। ये लोग आज भी पैसे वाले हैं।
बाकी परिवार कम जमीन वाले थे या फिर जिनके पास जमीनें नहीं थीं। वे बड़े किसानों के यहां खेतीबाड़ी का काम कर या पशु पालकर गुजारा करते थे। विस्थापित होने के बाद ये लोग परेशान है। आसपास रोजगार के साधन नहीं है। सेंटर में बेरोजगार युवाओं का जमावड़ा लगा रहता है। रोजगार के जो संसाधन विकसित होने थे, उन पर काम नहीं हुआ।
मुआवजे की रकम घर बनाने, कर्ज उतारने और 5 साल का खर्च उठाने में खत्म हो गई। युवा किसान रोहित कहते हैं, 'हमने जमीन दी ताकि देश और प्रदेश को एयरपोर्ट मिल सके। बदले में हमें बदहाली और बेरोजगारी मिली। वादे के मुताबिक, हर परिवार से एक सदस्य को नौकरी नहीं मिली। बुजुर्ग रामनिवास अगली पीढ़ी की चिंता में फफक उठे।
5 साल में भी ये वादे पूरे नहीं
- पशुपालन के लिए पशुवाड़ा 2021 तक बनाया जाना था, 2025 में भी नहीं बना है।
- विस्थापितों को इंडस्ट्रीज मे रोजगार दिए जाने थे। अभी न के बराबर इंडस्ट्री स्थापित हुई।
- एयरपोर्ट में जिन लोगों को रोजगार मिलना था, उनमे भी अभी किसी को नहीं मिला है।
- इलाज के लिए सीएचसी बननी थी, जिसका निर्माण 5 साल मे भी नहीं किया जा सका।
- खेल का मैदान, पोस्ट ऑफिस और बैंक का काम भी अभी तक नहीं हुआ।
- प्राइमरी स्कूल का निर्माण अधूरा है। शिक्षक और संसाधनों के अभाव में पढ़ाई नाममात्र की होती है।
- सरकारी योजनाओं का लाभप्राथमिकता से मिले, इसके लिए परिचय पत्र बनने थे, जो नहीं बने।
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