रामनगरः उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अब रातों को पहले जैसी रोशनी नहीं रही। कभी पेड़ों-झाड़ियों के बीच टिमटिमाते हजारों जुगनू दिखते थे, जो जंगल को सपनों जैसा रोशन कर देते थे। लेकिन अब उनकी संख्या स्पष्ट रूप से घटी है। जुगनुओं का गायब होना सिर्फ एक कीट का कम हो जाना नहीं है, यह प्रकृति की धड़कन कमजोर होने जैसा है।
लेकिन कॉर्बेट की शांत राते शायद जल्द ही फिर से जुगनुओं की टिमटिमाहट से जगमगा उठेंगी। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व मिलकर इन खूबसूरत जीवों के संरक्षण पर एक लॉन्ग टर्म रिसर्च शुरू करने की तैयारी में है।
घटते जुगनुओं का अर्थ है बीमार धरतीये छोटे से जीव हमें बताते हैं कि हमारा पर्यावरण कैसा है। जब जुगनू कम होते हैं, तो यह संकेत है कि धरती बीमार हो रही है। उनकी रोशनी सिर्फ अंधेरे को नहीं, बल्कि जीवन की सुंदरता को भी चमक देती है। अगर हम जुगनुओं को बचाएंगे, तो असल में हम अपने जंगलों और आने वाली पीढ़ियों के लिए उम्मीद की एक रोशनी बचाएंगे। बढ़ते प्रदूषण, गाड़ियों की रोशनी, और जंगलों में कटाई ने उनके घर छीन लिए हैं। जुगनू अंधेरे, नमी और शांत माहौल में जीते हैं पर अब इंसानों की दुनिया ने उनके लिए यह सब मुश्किल बना दिया है। जहां यह संख्या कम हो रही है।
कॉर्बेट में जुगनुओं पर खोज होगी शुरूकॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला बताते हैं कि एक समय था जब इस क्षेत्र की हरियाली में असंख्य जुगनू अपनी रोशनी से रातों को सजा देते थे। लेकिन अब उनकी संख्या में स्पष्ट कमी आई है। उन्होंने बताया कि हम इस बदलाव के कारणों को समझने और उन्हें बचाने की दिशा में वैज्ञानिक अध्ययन शुरू करने जा रहे हैं।
नन्हें जीवों को जीवन देने की मुहिमकंजर्वेशन पार्टनर(WWF), नेहा सिन्हा बताती हैं कि जुगनू, तितलियां और मधुमक्खियां इकोलॉजी की आत्मा है। इनका गायब होना संकेत है कि प्रकृति असंतुलित हो रही है। कीटनाशकों का बढ़ता इस्तेमाल, मिट्टी की नमी में बदलाव और कृत्रिम रोशनी ने इनके जीवन चक्र को प्रभावित किया है। अब विशेषज्ञों की एक टीम कीट वैज्ञानिको (एंटोमोलॉजिस्ट) के साथ मिलकर यह पता लगाएगी कि कॉर्बेट जैसे संरक्षित क्षेत्र जुगनुओं के लिए फिर से कैसे सुरक्षित और अनुकूल बनाएं जा सकते हैं।
कीटनाशक से जीवन-चक्र प्रभावितदिल्ली स्थित WWF की कंजर्वेशन पार्टनर हेड नेहा सिन्हा कहती है कि अब समय है कि हम इन छोटे पर बेहद अहम जीवों पर ध्यान दें। जहां रात में बहुत अधिक कृत्रिम रोशनी होती है, वहां जुगनू अपनी प्राकृतिक चमक बंद कर देते है, जिससे उनका प्रजनन प्रभावित होता है। जुगनू को नम इलाकों और लंबी घास की जरूरत होती है इसलिए जुगनुओ की टिमटिमाहट देखने के लिए ऐसे क्षेत्रों को बचाना बेहद जरूरी है। खेती और शहरी इलाको में इस्तेमाल हो रहे केमिकल्स और कीटनाशक जुगनू के जीवन-चक्र पर प्रतिकूल असर डाल रहे है।
लेकिन कॉर्बेट की शांत राते शायद जल्द ही फिर से जुगनुओं की टिमटिमाहट से जगमगा उठेंगी। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व मिलकर इन खूबसूरत जीवों के संरक्षण पर एक लॉन्ग टर्म रिसर्च शुरू करने की तैयारी में है।
घटते जुगनुओं का अर्थ है बीमार धरतीये छोटे से जीव हमें बताते हैं कि हमारा पर्यावरण कैसा है। जब जुगनू कम होते हैं, तो यह संकेत है कि धरती बीमार हो रही है। उनकी रोशनी सिर्फ अंधेरे को नहीं, बल्कि जीवन की सुंदरता को भी चमक देती है। अगर हम जुगनुओं को बचाएंगे, तो असल में हम अपने जंगलों और आने वाली पीढ़ियों के लिए उम्मीद की एक रोशनी बचाएंगे। बढ़ते प्रदूषण, गाड़ियों की रोशनी, और जंगलों में कटाई ने उनके घर छीन लिए हैं। जुगनू अंधेरे, नमी और शांत माहौल में जीते हैं पर अब इंसानों की दुनिया ने उनके लिए यह सब मुश्किल बना दिया है। जहां यह संख्या कम हो रही है।

कॉर्बेट में जुगनुओं पर खोज होगी शुरूकॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला बताते हैं कि एक समय था जब इस क्षेत्र की हरियाली में असंख्य जुगनू अपनी रोशनी से रातों को सजा देते थे। लेकिन अब उनकी संख्या में स्पष्ट कमी आई है। उन्होंने बताया कि हम इस बदलाव के कारणों को समझने और उन्हें बचाने की दिशा में वैज्ञानिक अध्ययन शुरू करने जा रहे हैं।
नन्हें जीवों को जीवन देने की मुहिमकंजर्वेशन पार्टनर(WWF), नेहा सिन्हा बताती हैं कि जुगनू, तितलियां और मधुमक्खियां इकोलॉजी की आत्मा है। इनका गायब होना संकेत है कि प्रकृति असंतुलित हो रही है। कीटनाशकों का बढ़ता इस्तेमाल, मिट्टी की नमी में बदलाव और कृत्रिम रोशनी ने इनके जीवन चक्र को प्रभावित किया है। अब विशेषज्ञों की एक टीम कीट वैज्ञानिको (एंटोमोलॉजिस्ट) के साथ मिलकर यह पता लगाएगी कि कॉर्बेट जैसे संरक्षित क्षेत्र जुगनुओं के लिए फिर से कैसे सुरक्षित और अनुकूल बनाएं जा सकते हैं।
कीटनाशक से जीवन-चक्र प्रभावितदिल्ली स्थित WWF की कंजर्वेशन पार्टनर हेड नेहा सिन्हा कहती है कि अब समय है कि हम इन छोटे पर बेहद अहम जीवों पर ध्यान दें। जहां रात में बहुत अधिक कृत्रिम रोशनी होती है, वहां जुगनू अपनी प्राकृतिक चमक बंद कर देते है, जिससे उनका प्रजनन प्रभावित होता है। जुगनू को नम इलाकों और लंबी घास की जरूरत होती है इसलिए जुगनुओ की टिमटिमाहट देखने के लिए ऐसे क्षेत्रों को बचाना बेहद जरूरी है। खेती और शहरी इलाको में इस्तेमाल हो रहे केमिकल्स और कीटनाशक जुगनू के जीवन-चक्र पर प्रतिकूल असर डाल रहे है।
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