नई दिल्ली: ईरान और इजरायल के बीच कथित रूप से सीजफायर यानी युद्धविराम हो गया है। जब दोनों देशों के बीच जंग चल रही थी तो उस वक्त इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने खुले तौर पर एक अमेरिकी चैनल फॉक्स न्यूज से कहा था कि ईरान में सत्ता परिवर्तन हो सकता है। उन्होंने कहा था कि इजरायल के ऑपरेशन से ऐसा हो सकता है। ईरानी सरकार बहुत कमजोर सरकार है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी ईरानी शासन में बदलाव के संकेत दिए थे। अमेरिका के दो प्लान दुनिया के सामने आए थे। एक तो ईरान के परमाणु प्रोग्राम को रोकना और दूसरा ईरान में सत्ता परिवर्तन। अमेरिका ने दुनिया के कई देशों में तख्तापलट कराया है, मगर वो कई जगहों पर फेल भी हुआ है। जानते हैं अमेरिका क्या ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई को सत्ता से हटवाएगा या कुछ और करतूत को अंजाम देगा।
ट्रंप की इस पोस्ट से जानिए क्या हैं संकेत
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखी-या तो शांति होगी, या ईरान के लिए त्रासदी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो अमेरिका दूसरे टार्गेट्स पर जाएगा। एक और पोस्ट में उन्होंने लिखा-शासन परिवर्तन शब्द का इस्तेमाल करना राजनीतिक रूप से सही नहीं है, लेकिन अगर मौजूदा ईरानी शासन 'मेक ईरान ग्रेट अगेन' (MIGA) नहीं कर सकता, तो शासन परिवर्तन क्यों नहीं होगा? MIGA!!! ट्रंप की इस पोस्ट का मतलब है कि वो ईरान में अमेरिका की पसंद का लीडर सत्ता पर काबिज करवाना चाहते हैं। ट्रंप ने एक पोस्ट में यह भी लिखा था-मुझे पता है कि ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई कहां छिपे हैं। खामेनेई को मारना आसान है, लेकिन अभी हम ऐसा नहीं करेंगे। ये बातें युद्ध के दौरान ट्रंप ने कही थीं।
क्या कहता है अंतरराष्ट्रीय कानून, ट्रंप को जानना चाहिए
विदेशी ताकतों द्वारा सत्ता परिवर्तन एक बहुत ही विवादास्पद विचार है। अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, यह प्रभावित देश की संप्रभुता का स्पष्ट उल्लंघन है। अकसर, इस कदम को लोकतांत्रिक रूप से सही नहीं ठहराया जाता है। इससे अक्सर सत्ता का खालीपन या हिंसा और अस्थिरता होती है। नई सरकारें अक्सर देश की समस्याओं को हल करने की चुनौती से निपटने में असमर्थ होती हैं। इससे संकट और संघर्ष बढ़ जाते हैं।
अफगानिस्तान में क्या हुआ था, जिसे भुलाना चाहेगा अमेरिका
अफगानिस्तान में ऐसा ही हुआ। 11 सितंबर, 2001 को न्यूयॉर्क में आतंकवादी हमलों के बाद NATO ने पहली बार और अब तक के लिए NATO संधि के अनुच्छेद 5 में निहित आपसी रक्षा गारंटी का आह्वान किया। अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी सैन्य गठबंधन नाटो ने अफगानिस्तान के इस्लामी तालिबान शासन को उखाड़ फेंकने और आतंकवादी संगठन अल-कायदा से लड़ने का फैसला किया।
अफगानिस्तान में फेल हुआ अमेरिका, खूब डूबे पैसे
शुरुआत में अफगानिस्तान में अमेरिका का ऑपरेशन काफी सफल रहा और 2001 के अंत तक तालिबान को काबुल से बाहर कर दिया गया था। हालांकि, गठबंधन के विभिन्न दलों में कई बातों पर असहमति थी, जिसमें सैन्य, राजनीतिक और विकास सहायता को कैसे सहयोग करना चाहिए, यह भी शामिल था। इसलिए, 20 वर्षों तक सुरक्षा की स्थिति बेहद नाजुक बनी रही। तालिबान द्वारा बार-बार जवाबी हमले शुरू करने के कारण देश हमलों से तबाह हो गया था। 2001 और 2021 के बीच, लगभग 3,600 पश्चिमी देशों के सैनिक और लगभग 50,000 अफगान नागरिक मारे गए। अफगानिस्तान मिशन की कुल लागत लगभग 1 बिलियन डॉलर थी।
अमेरिका ने अफगानिस्तान को बदहाल कर दिया
2021 की गर्मियों में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की वापसी के बाद तालिबान सत्ता में लौट आया। तब से उन्होंने पिछले 20 वर्षों में हुई लगभग सभी प्रगति को उलट दिया है। आज अफगानिस्तान बदहाल और अलग-थलग है। 2.3 करोड़ लोग मानवीय सहायता पर निर्भर हैं।
इराक तो अमेरिका पर बदनुमा दाग है
इसी तरह इराक अमेरिका के लिए बदनुमा दाग है। जैविक हथियारों का इस्तेमाल करने के आरोप को लेकर अमेरिका ने सद्दाम हुसैन के नेतृत्व वाले इराक में सत्ता परिवर्तन करवाया। अमरीका ने कभी इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन को हथियार सप्लाई किए थे, जो दो दशकों से अधिक समय तक सत्ता में रहे। 2003 में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के समर्थन के बिना सद्दाम को उखाड़ फेंकने का फैसला किया। अमेरिका ने इस फैसले को इस दावे के साथ सही ठहराया कि सद्दाम हुसैन अल-कायदा का समर्थन कर रहे थे और उनके पास सामूहिक विनाश के हथियार थे। ये दावे बाद में झूठे साबित हुए।
गहरे गृहयुद्ध के दलदल में धंस गया अमेरिका
एक बार जब सद्दाम हुसैन को उखाड़ फेंका गया, तो अमेरिका ने वहां एक अस्थायी सरकार स्थापित की, जिसकी बाद में कुप्रबंधन और देश के ज्ञान की कमी के लिए भारी आलोचना की गई। इराक के विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच मौजूदा दुश्मनी सुन्नी और शिया मुसलमानों के बीच गृहयुद्ध जैसी स्थिति में बदल गई। घातक हमले तकरीबन रोज ही होने लगे। इराकी सेना से निकाले गए सैनिकों ने अमेरिकी सैनिकों से लड़ना शुरू कर दिया, जिन्होंने पहले सद्दाम हुसैन को उखाड़ फेंका था।
इस्लामिक स्टेट ने इराक को किया बर्बाद
अमेरिकी फौजों के रहने के दौरान ही इराक में एक नए और खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने जन्म लिया, जिसने बरसों तक इराक, सीरिया और यमन में आतंकी हमलों को अंजाम दिया। 2014 से बेहद एक्टिव हुए इस आतंकी संगठन ने एक समय मोसुल जैसे शहरों को अपने कब्जे में ले लिया था। 2017 में इराकी सेना ने आईएस पर जीत का ऐलान किया। इस संगठन का जाल भारत में भी कई अवसरों पर नजर आया है। अमेरिकी हमलों और इराक में शासन परिवर्तन के प्रयास के बीस साल बाद हालात में सुधार हुआ है। हिंसा कम हो गई है और संसदीय चुनावों का अगला दौर नवंबर में होने वाला है। फिर भी, इराक परिवर्तन के संक्रमण काल से अभी तक जूझ रहा है।
ट्रंप की इस पोस्ट से जानिए क्या हैं संकेत
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखी-या तो शांति होगी, या ईरान के लिए त्रासदी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो अमेरिका दूसरे टार्गेट्स पर जाएगा। एक और पोस्ट में उन्होंने लिखा-शासन परिवर्तन शब्द का इस्तेमाल करना राजनीतिक रूप से सही नहीं है, लेकिन अगर मौजूदा ईरानी शासन 'मेक ईरान ग्रेट अगेन' (MIGA) नहीं कर सकता, तो शासन परिवर्तन क्यों नहीं होगा? MIGA!!! ट्रंप की इस पोस्ट का मतलब है कि वो ईरान में अमेरिका की पसंद का लीडर सत्ता पर काबिज करवाना चाहते हैं। ट्रंप ने एक पोस्ट में यह भी लिखा था-मुझे पता है कि ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई कहां छिपे हैं। खामेनेई को मारना आसान है, लेकिन अभी हम ऐसा नहीं करेंगे। ये बातें युद्ध के दौरान ट्रंप ने कही थीं।
विदेशी ताकतों द्वारा सत्ता परिवर्तन एक बहुत ही विवादास्पद विचार है। अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, यह प्रभावित देश की संप्रभुता का स्पष्ट उल्लंघन है। अकसर, इस कदम को लोकतांत्रिक रूप से सही नहीं ठहराया जाता है। इससे अक्सर सत्ता का खालीपन या हिंसा और अस्थिरता होती है। नई सरकारें अक्सर देश की समस्याओं को हल करने की चुनौती से निपटने में असमर्थ होती हैं। इससे संकट और संघर्ष बढ़ जाते हैं।

अफगानिस्तान में क्या हुआ था, जिसे भुलाना चाहेगा अमेरिका
अफगानिस्तान में ऐसा ही हुआ। 11 सितंबर, 2001 को न्यूयॉर्क में आतंकवादी हमलों के बाद NATO ने पहली बार और अब तक के लिए NATO संधि के अनुच्छेद 5 में निहित आपसी रक्षा गारंटी का आह्वान किया। अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी सैन्य गठबंधन नाटो ने अफगानिस्तान के इस्लामी तालिबान शासन को उखाड़ फेंकने और आतंकवादी संगठन अल-कायदा से लड़ने का फैसला किया।
अफगानिस्तान में फेल हुआ अमेरिका, खूब डूबे पैसे
शुरुआत में अफगानिस्तान में अमेरिका का ऑपरेशन काफी सफल रहा और 2001 के अंत तक तालिबान को काबुल से बाहर कर दिया गया था। हालांकि, गठबंधन के विभिन्न दलों में कई बातों पर असहमति थी, जिसमें सैन्य, राजनीतिक और विकास सहायता को कैसे सहयोग करना चाहिए, यह भी शामिल था। इसलिए, 20 वर्षों तक सुरक्षा की स्थिति बेहद नाजुक बनी रही। तालिबान द्वारा बार-बार जवाबी हमले शुरू करने के कारण देश हमलों से तबाह हो गया था। 2001 और 2021 के बीच, लगभग 3,600 पश्चिमी देशों के सैनिक और लगभग 50,000 अफगान नागरिक मारे गए। अफगानिस्तान मिशन की कुल लागत लगभग 1 बिलियन डॉलर थी।
अमेरिका ने अफगानिस्तान को बदहाल कर दिया
2021 की गर्मियों में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की वापसी के बाद तालिबान सत्ता में लौट आया। तब से उन्होंने पिछले 20 वर्षों में हुई लगभग सभी प्रगति को उलट दिया है। आज अफगानिस्तान बदहाल और अलग-थलग है। 2.3 करोड़ लोग मानवीय सहायता पर निर्भर हैं।
इराक तो अमेरिका पर बदनुमा दाग है
इसी तरह इराक अमेरिका के लिए बदनुमा दाग है। जैविक हथियारों का इस्तेमाल करने के आरोप को लेकर अमेरिका ने सद्दाम हुसैन के नेतृत्व वाले इराक में सत्ता परिवर्तन करवाया। अमरीका ने कभी इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन को हथियार सप्लाई किए थे, जो दो दशकों से अधिक समय तक सत्ता में रहे। 2003 में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के समर्थन के बिना सद्दाम को उखाड़ फेंकने का फैसला किया। अमेरिका ने इस फैसले को इस दावे के साथ सही ठहराया कि सद्दाम हुसैन अल-कायदा का समर्थन कर रहे थे और उनके पास सामूहिक विनाश के हथियार थे। ये दावे बाद में झूठे साबित हुए।
गहरे गृहयुद्ध के दलदल में धंस गया अमेरिका
एक बार जब सद्दाम हुसैन को उखाड़ फेंका गया, तो अमेरिका ने वहां एक अस्थायी सरकार स्थापित की, जिसकी बाद में कुप्रबंधन और देश के ज्ञान की कमी के लिए भारी आलोचना की गई। इराक के विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच मौजूदा दुश्मनी सुन्नी और शिया मुसलमानों के बीच गृहयुद्ध जैसी स्थिति में बदल गई। घातक हमले तकरीबन रोज ही होने लगे। इराकी सेना से निकाले गए सैनिकों ने अमेरिकी सैनिकों से लड़ना शुरू कर दिया, जिन्होंने पहले सद्दाम हुसैन को उखाड़ फेंका था।
इस्लामिक स्टेट ने इराक को किया बर्बाद
अमेरिकी फौजों के रहने के दौरान ही इराक में एक नए और खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने जन्म लिया, जिसने बरसों तक इराक, सीरिया और यमन में आतंकी हमलों को अंजाम दिया। 2014 से बेहद एक्टिव हुए इस आतंकी संगठन ने एक समय मोसुल जैसे शहरों को अपने कब्जे में ले लिया था। 2017 में इराकी सेना ने आईएस पर जीत का ऐलान किया। इस संगठन का जाल भारत में भी कई अवसरों पर नजर आया है। अमेरिकी हमलों और इराक में शासन परिवर्तन के प्रयास के बीस साल बाद हालात में सुधार हुआ है। हिंसा कम हो गई है और संसदीय चुनावों का अगला दौर नवंबर में होने वाला है। फिर भी, इराक परिवर्तन के संक्रमण काल से अभी तक जूझ रहा है।
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