DNA हमारे जीवन का ब्लूप्रिंट है, यानी हमारा आनुवंशिक कोड। दशकों की रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों ने इसके बारे में काफी जानकारी हासिल कर ली है। अब वे इसकी कार्यप्रणाली को और गहराई से समझना चाहते हैं। इसी लक्ष्य से सिंथेटिक ह्यूमन जीनोम प्रॉजेक्ट शुरू किया गया है। इसके तहत मानव आनुवंशिक सामग्री को प्रयोगशाला में नए सिरे से बनाने की तैयारी हो रही है। इस प्रॉजेक्ट के तहत वैज्ञानिक ऐसे टूल और तकनीक डिवेलप करेंगे, जिनकी मदद से लैब में DNA को बनाया जा सके। इसे फिर जीवित कोशिकाओं में डालकर यह समझने की कोशिश की जाएगी कि कोड वास्तव में कैसे काम करता है।
बीमारी में उपयोगी: वैज्ञानिक ऐसी कोशिकाएं विकसित करना चाहते हैं, जो खास तरह के वायरस और इम्यून सिस्टम के हमलों का सामना कर सकें। इन कोशिकाओं को ऑटोइम्यून रोगों से पीड़ित मरीजों या वायरस संक्रमण की वजह से लीवर का नुकसान झेल रहे रोगियों में ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। कैम्ब्रिज स्थित मॉलिक्यूलर बायोलॉजी लैब (LMB) में इस प्रॉजेक्ट का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर जेसन चिन के अनुसार, मानव जीनोम (संपूर्ण जीन सेट) के निर्माण से मिली जानकारी किसी भी बीमारी के उपचार में उपयोगी हो सकती है।
कई यूनिवर्सिटी शामिल: वैज्ञानिक आज DNA को ‘पढ़’ सकते हैं। 25 साल पहले मानव जीनोम के पहले ड्राफ्ट की घोषणा की गई थी। इसने वर्तमान आनुवंशिकी क्रांति का आधार तैयार किया। हालांकि जीनोम पढ़ने की तकनीक तेजी से विकसित हुई है, लेकिन उसे ‘लिखना’ ज्यादा मुश्किल साबित हुआ है। रिसर्चर मानव क्रोमोसोम के खंड बनाकर और उनका मानव त्वचा कोशिकाओं में परीक्षण करके इस प्रॉजेक्ट की शुरुआत करेंगे। प्रॉजेक्ट में कैम्ब्रिज, केंट, मैनचेस्टर, ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और इंपीरियल कॉलेज लंदन की टीमें शामिल हैं।
डार्क मैटर: प्रफेसर चिन की टीम ने हाल ही में ई.कोलाई बैक्टीरिया का पूरा जीनोम तैयार किया है। इस जीवाणु के जीनोम में लगभग 45 लाख बेस पेयर होते हैं, जिन्हें G, T, C और A अक्षरों द्वारा दर्शाया जाता है। मानव जीनोम इससे कहीं अधिक जटिल है, जिसमें 3 अरब से ज्यादा बेस पेयर होते हैं। LMB के वैज्ञानिक डॉ. जूलियन सेल का कहना है कि मानव जीनोम एक तार पर बंधे जीनों का समूह भर नहीं है। इसका एक हिस्सा इतना बड़ा है कि हम अभी तक उसके काम के बारे में नहीं जान सके हैं। इस हिस्से को कभी-कभी जीनोम का डार्क मैटर भी कहा जाता है। यदि हम जीनोम का सफलतापूर्वक निर्माण कर लें, तो उस हिस्से को पूरी तरह समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि अभी हमारे हाथ में ऐसी कोई ठोस चीज नहीं आई है जिसका उपयोग चिकित्सा के रूप में किया जा सके।
रोग से बचाव: मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के आनुवंशिक वैज्ञानिक प्रो. इयन ब्रैसिंगटन का मानना है कि वास्तविक दुनिया में कृत्रिम जीनोम के इस्तेमाल तक पहुंचने में अभी समय लगेगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस रिसर्च से माइटोकॉन्ड्रिया के सिंथेटिक संस्करण विकसित हो सकते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिश का पावरहाउस भी कहते हैं। इसी से कोशिका को ऊर्जा मिलती है। रिसर्च का उपयोग माइटोकॉन्ड्रियल रोग से पीड़ित महिलाओं में किया जा सकता है, ताकि यह बीमारी उनके बच्चों में न ट्रांसफर हो।
संभावनाएं और चिंता: कृत्रिम जीनोम से ऐसे बैक्टीरिया बनाना संभव हो सकता है, जो पेट्रो-रसायनों को पचा सकें। इस तरह के बैक्टीरिया प्लास्टिक कचरे को खत्म कर सकते हैं, तेल रिसाव साफ कर सकते हैं। हालांकि इनका इस्तेमाल बहुत सावधानी से करना होगा, क्योंकि पर्यावरण पर ऐसे कृत्रिम जीवाणुओं का असर खतरनाक भी हो सकता है। एक और चिंता डिजाइनर शिशुओं को लेकर है। माता-पिता जन्म से पहले अपने बच्चों को आकार देने के लिए इस तकनीक का उपयोग कर सकते हैं। क्या पता आगे चल कर सिलेब्रिटीज अपने जीनोम के कुछ हिस्सों को ‘लाइसेंस’ पर देना भी शुरू दें ताकि लोग उनके जीन की नकल कर सकें। संभावनाएं कई हैं, जीनोम प्रॉजेक्ट की प्रगति से ही पता चलेगा कि ये साइंस फिक्शन जैसी बातें कितनी सच होती हैं।
बीमारी में उपयोगी: वैज्ञानिक ऐसी कोशिकाएं विकसित करना चाहते हैं, जो खास तरह के वायरस और इम्यून सिस्टम के हमलों का सामना कर सकें। इन कोशिकाओं को ऑटोइम्यून रोगों से पीड़ित मरीजों या वायरस संक्रमण की वजह से लीवर का नुकसान झेल रहे रोगियों में ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। कैम्ब्रिज स्थित मॉलिक्यूलर बायोलॉजी लैब (LMB) में इस प्रॉजेक्ट का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर जेसन चिन के अनुसार, मानव जीनोम (संपूर्ण जीन सेट) के निर्माण से मिली जानकारी किसी भी बीमारी के उपचार में उपयोगी हो सकती है।
कई यूनिवर्सिटी शामिल: वैज्ञानिक आज DNA को ‘पढ़’ सकते हैं। 25 साल पहले मानव जीनोम के पहले ड्राफ्ट की घोषणा की गई थी। इसने वर्तमान आनुवंशिकी क्रांति का आधार तैयार किया। हालांकि जीनोम पढ़ने की तकनीक तेजी से विकसित हुई है, लेकिन उसे ‘लिखना’ ज्यादा मुश्किल साबित हुआ है। रिसर्चर मानव क्रोमोसोम के खंड बनाकर और उनका मानव त्वचा कोशिकाओं में परीक्षण करके इस प्रॉजेक्ट की शुरुआत करेंगे। प्रॉजेक्ट में कैम्ब्रिज, केंट, मैनचेस्टर, ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और इंपीरियल कॉलेज लंदन की टीमें शामिल हैं।
डार्क मैटर: प्रफेसर चिन की टीम ने हाल ही में ई.कोलाई बैक्टीरिया का पूरा जीनोम तैयार किया है। इस जीवाणु के जीनोम में लगभग 45 लाख बेस पेयर होते हैं, जिन्हें G, T, C और A अक्षरों द्वारा दर्शाया जाता है। मानव जीनोम इससे कहीं अधिक जटिल है, जिसमें 3 अरब से ज्यादा बेस पेयर होते हैं। LMB के वैज्ञानिक डॉ. जूलियन सेल का कहना है कि मानव जीनोम एक तार पर बंधे जीनों का समूह भर नहीं है। इसका एक हिस्सा इतना बड़ा है कि हम अभी तक उसके काम के बारे में नहीं जान सके हैं। इस हिस्से को कभी-कभी जीनोम का डार्क मैटर भी कहा जाता है। यदि हम जीनोम का सफलतापूर्वक निर्माण कर लें, तो उस हिस्से को पूरी तरह समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि अभी हमारे हाथ में ऐसी कोई ठोस चीज नहीं आई है जिसका उपयोग चिकित्सा के रूप में किया जा सके।
रोग से बचाव: मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के आनुवंशिक वैज्ञानिक प्रो. इयन ब्रैसिंगटन का मानना है कि वास्तविक दुनिया में कृत्रिम जीनोम के इस्तेमाल तक पहुंचने में अभी समय लगेगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस रिसर्च से माइटोकॉन्ड्रिया के सिंथेटिक संस्करण विकसित हो सकते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिश का पावरहाउस भी कहते हैं। इसी से कोशिका को ऊर्जा मिलती है। रिसर्च का उपयोग माइटोकॉन्ड्रियल रोग से पीड़ित महिलाओं में किया जा सकता है, ताकि यह बीमारी उनके बच्चों में न ट्रांसफर हो।
संभावनाएं और चिंता: कृत्रिम जीनोम से ऐसे बैक्टीरिया बनाना संभव हो सकता है, जो पेट्रो-रसायनों को पचा सकें। इस तरह के बैक्टीरिया प्लास्टिक कचरे को खत्म कर सकते हैं, तेल रिसाव साफ कर सकते हैं। हालांकि इनका इस्तेमाल बहुत सावधानी से करना होगा, क्योंकि पर्यावरण पर ऐसे कृत्रिम जीवाणुओं का असर खतरनाक भी हो सकता है। एक और चिंता डिजाइनर शिशुओं को लेकर है। माता-पिता जन्म से पहले अपने बच्चों को आकार देने के लिए इस तकनीक का उपयोग कर सकते हैं। क्या पता आगे चल कर सिलेब्रिटीज अपने जीनोम के कुछ हिस्सों को ‘लाइसेंस’ पर देना भी शुरू दें ताकि लोग उनके जीन की नकल कर सकें। संभावनाएं कई हैं, जीनोम प्रॉजेक्ट की प्रगति से ही पता चलेगा कि ये साइंस फिक्शन जैसी बातें कितनी सच होती हैं।
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