पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में अभी छह महीने बाकी हैं। पर, सियासी सरगर्मी अभी से परवान चढ़ने लगी है। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की यात्राएं होने लगी हैं। राजनीतिक दलों की ताबड़तोड़ बैठकें हो रही हैं। सम्मेलन, रैली और महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि के आयोजन होने लगे हैं। अब तक की कुछ बड़ी रैलियों और सभाओं की सूचनाएं तैरने लगी हैं। आयोजनों के पोस्टर-बैनर लगाने लगे हैं। कन्हैया की पदयात्रा कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार इन दिनों बिहार में पदयात्रा कर रहे हैं। आज पदयात्रा के क्रम में वे पटना पहुंचे थे। पटना सिटी गुरुद्वारे में पदयात्रा से पहले उन्होंने मत्था टेका। प्रेस कांफ्रेंस किया। प्रेस कांफ्रेंस में उनकी महत्वपूर्ण बात यह रही कि अब तक सत्ता में रह कर किसने क्या किया है, यह बताने से बेहतर होगा कि हम सत्ता में आने पर क्या करेंगे, इसकी जानकारी दी जाए। राजनीतिक समझ रखने वाले लोग इसे तेजस्वी यादव से जोड़ कर देख रहे हैं। तेजस्वी ही घूम-घूम कर लोगों को बताते फिर रहे हैं कि 17 महीने सरकार में रहते उन्होंने नौकरियों के द्वार खोले। जाति आधारित सर्वेक्षण कराया। आरक्षण की सीमा बढ़वाई। पटना में जन सुराज का जुटान प्रशांत किशोर के नेतृत्व वाली जन सुराज पार्टी ने शुक्रवार (11 अप्रैल) को पटना के गांधी मैदान में 'बिहार बदलो रैली' रखी है। जन सुराज से जुड़े लोगों का गुरुवार से ही पटना पहुंचना शुरू हो गया है। पार्टी का दावा है कि रैली में पांच लाख लोग पक्का आएंगे। दावे की असलियत तो रैली के दिन उजागर होगी, लेकिन इससे यह अनुमान तो जरूर लग जाएगा कि बिहार की चुनावी राजनीति में जन सुराज की कितनी दखल होगी। प्रशांत किशोर बिहार में लीक से हट कर नई धारा की राजनीति करने का संकल्प दोहराते रहे हैं। शराब और शिक्षाप्रशांत किशोर लगातार शराबबंदी को लेकर भी हमलावर रहे हैं। इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के लोग शराबबंदी कानून खत्म करने-कराने पर खुल कर नहीं बोलते, लेकिन प्रशांत किशोर स्पष्ट कहते हैं कि सत्ता मिली तो घंटे भर में शराबबंदी खत्म करेंगे। उससे मिलने वाला राजस्व शिक्षा पर खर्च करेंगे। JDU का 13 को भीम संवाद जब सभी सक्रिय हो गए हैं तो जेडीयू कैसे पीछे रहता। जेडीयू के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ ने पटना के बापू सभागार में 13 अप्रैल भीम संवाद का आयोजन किया है। संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की जयंती पर यह आयोजन है। चुनावी साल में भीम संवाद के आयोजन का मकसद समझना मुश्किल नहीं है। बिहार में दलित आबादी 19 प्रतिशत है। इस पर इसी श्रेणी से आने वाले एनडीए नेता जीतन राम मांझी और चिराग पासवान अक्सर दावा करते हैं। हालांकि दोनों दलों को सम्मिलित रूप से करीब सात-आठ प्रतिशत वोट ही मिलते रहे हैं। जेडीयू में अशोक चौधरी भी इसी कैटेगरी में आते हैं। दलित- महादलित बंटवारा वैसे दलित-महादलित का बंटवारा कर जेडीयू ने पहले से ही दलितों के ज्यादातर वोट पर कब्जा जमा लिया है। महागठबंधन की पार्टियों में कांग्रेस ने तो दलित प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर दलित को बिठा कर जाल फेंका है। दलित वोटों के लिए लालू यादव और तेजस्वी यादव ने चिराग पासवान के चाचा को पटा कर अपने पाले में कर लिया है। वामपंथी दलों के साथ सर्वहारा के रूप में दलित भी कम नहीं। भाजपा की दूसरे ढंग की है। उसके हिन्दुत्व के एजेंडे में दलितों को सवर्ण के समान स्वीकृति दलित वोटरों को पटाने का ही तो नुस्खा है!
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