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One Nation One Election: BJP के लिए हमेशा बड़ा अजेंडा रहा है 'एक देश एक चुनाव', अब अमल की चुनौती

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नई दिल्लीः नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार ने तीसरे टर्म की शुरूआत में ही एक देश, एक चुनाव की दिशा में निर्णायक पहल की तो बहुत हैरानी नहीं हुई। दरअसल, आम चुनाव से पहले ही केंद्र सरकार ने इसके लिए पृष्ठभूमि तैयार कर दी है। असली चुनौती इसके अमल को लेकर है। भले बीजेपी दावा कर रही है कि न सिर्फ एनडीए के सभी दल बल्कि अधिकतर विपक्षी दल इस मुहिम के साथ हैं, लेकिन सवाल तब उठेंगे जब इन दलों की अगुवाई वाली सरकार के सामने फैसले लेने की बेला आएगी। इस फैसले को अगर लागू किया जाता है तो अगले कुछ सालों में कुछ विधानसभा का टर्म कम हो जाएगा तो कहीं टर्म समाप्त होने के बाद राट्रपति शासन लगाना पड़ सकता है। वहीं सरकार इस बारे में शीतकालीन सत्र में बिल लाकर सियासी रूप से आकलन कर सकती है। हालांकि, सरकार ने संकेत दे दिया कि अभी सिर्फ कमिटी की अनुशंसा को कैबिनेट ने स्वीकार किया है। इस पर निर्णायक रूप से बढ़ने से पहले मंथन का गहन दौर अभी और होगा। सभी संबंधित पक्षों से चर्चा की शुरूआत नये सिरे से होगी। विपक्षी खासकर क्षेत्रीय दलों की चिंताविपक्ष और क्षेत्रीय दलों की अपनी चिंता है। क्षेत्रीय दलों की ताकत क्षेत्रीय मुद्दे और लोकल कनेक्ट होता है। अगर एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए तो वह राष्ट्रीय परिदृश्य के प्रभाव में सिमट जाएगा जो क्षेत्रीय दलों की ताकत को कम कर सकती है। आंकड़े भी इस बात की गवाही देता है। 1952 से लेकर अब तक देखें तो जैसे-जैसे चुनाव अलग-अलग होने लगे, क्षेत्रीय दलों की ताकत बढ़ने लगी। 60 के दशक तक देश में सभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ होते थे और उस वक्त केंद्र से लेकर राज्य तक कांग्रेस की ही सरकार थी। इन्हीं तर्कों के आधार पर अधिकतर दल खासकर क्षेत्रीय पार्टियां इस प्रस्ताव के खिलाफ दिखती हैं। ऐसा नहीं है कि सभी क्षेत्रीय दल इसके खिलाफ है। जेडीयू, बीजेडी-वाईएसआर जैस दल इसे मुद्दा नहीं मानती है । लालकृष्ण आडवाणी ने शुरू की थी मुहिमबीजेपी शुरू से लोकसभा और विधानसभा चुनाव को साथ कराने के पक्ष में रही है। पार्टी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी इसके सबसे बड़े पक्षधर नेताओं में रहे हैं और उन्होनें इसके लिए आम राय बनाने की सबसे पहले पहल भी की थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी के घोषणा पत्र में जिन चुनावी सुधार का जिक्र किया गया है, उसमें यह बात शामिल भी है। एक साथ चुनाव कराने के पीछे पैसा और मशीनरी की बचत का तर्क दिया जा रहा है। पिछले सात सितंबर में हुई थी कमिटीआम चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव को लेकर कमिटी गठन का आदेश जारी कर दिया था। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कमिटी का चेयरमैन बनाया गया और साथ में 7 मेंबर बनाए गए हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मेंबर में शामिल हैं। कमिटी से कहा गया था कि वह देश में एक साथ चुनाव कराए जाने के मुद्दे का परीक्षण कर सिफारिश करें। अन्य सदस्यों में लोकसभा में विरोधी दल के तत्कालीन नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, 15वीं फाइनेंस कमीशन के पूर्व चेयरमैन एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल सुभाष सी कश्यप, सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे और पूर्व चीफ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे। बाद में अधीर रंजन चौधरी ने मेंबर बनने से मना कर दिया था। कमिटी ने मार्च में सौंपी थी अपनी 18625 पेज की रिपोर्टआम चुनाव के बीच ही कमिटी ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी थी और अगली सरकार पर आगे फैसला लेने के लिए इसे छोड़ दिया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि 47 राजनीतिक पार्टियों में 32 ने साथ चुनाव कराने का किया समर्थन दिया था। कुल 21558 नागरिकों की प्रतिक्रिया मिली है और 80 फीसदी ने चुनाव एक साथ कराने का समर्थन किया। कमिटी ने कहा था कि पहले चरण में लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराए जाएं। और उसके बाद दूसरे चरण में नगर पालिका और पंचायत चुनाव भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव के साथ कराए जाएं। नगरपालिका और पंचायत चुनाव इस तरह से हों कि उसे लोकसभा चुनाव के 100 दिन के भीतर कराया जा सके। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद-324 में संशोधन करने का रास्ता सुझाया गया। सिफारिश में यह भी कहा गया है कि अनुच्छेद-325 में भी संशोधन की दरकार है ताकि लोकसभा, विधानसभा और नगपालिका चुनाव के लिए एक तरह की मतदाता सूची और एक ही फोटो पहचान पत्र हो। imageकमिटी की एक अहम सिफारिश है कि त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी स्थिति जिसमें नए सिरे से चुनाव की स्थिति बन जाए तो नए लोकसभा का कार्यकाल, पूर्ववर्ती लोकसभा के कार्यकाल के शेष बचे कार्यकाल के लिए ही होगा और निर्धारित तिथि के बाद सदन भंग होगा। इसी तरह विधानसभा में भी अगर नए चुनाव की स्थिति बनती है तो नया विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की अवधि तक ही होगा। कुछ सवालों के जवाब1. 2029 में एक साथ चुनाव हुए तो जिनका कार्यकाल पूरा नहीं हुआ उनका क्या होगा?जवाबः 2029 में अगर लोकसभा और विधानसभा का चुनाव साथ होता है तो इसका मतलब साफ है कि 2029 आमचुनाव के दौरान जो भी विधानसभा हैं वह भंग होगा चाहे उस विधानसभा का कार्यकाल दो साल या तीन साल बचा हो या नहीं।2. एक साथ चुनाव अगर 2029 में हुए भी तो क्या उसके बाद कार्यकाल फिक्स होगा?जवाबः 2029 और उसके बाद एक साथ चुनाव प्रक्रिया अगर शुरू हुई तो फिर उसके बाद किसी कारण से अगर लोकसभा या विधानसभा बीच में भंग हुआ तो पांच साल के कार्यकाल के बीच होने वाले चुनाव के बाद गठित होने वाले लोकसभा और विधानसभा का कार्यकाल उतने ही दिनों के लिए होगा जब तक कि पहले का लोकसभा का पूर्णकाल निर्धारित है। फैसले के पीछे राजनीतिक संदेश भीबीजेपी के लिए एक देश, एक चुनाव शुरू से सबसे बड़ा सियासी अजेंडा रहा है। तीसरे टर्म की शुरुआत में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार इसे अमल में लाकर संदेश देना चाहती है कि न उनकी मजबूती में कम आई है न वह अपने स्टैंड से पीछे हट रही है। आम चुनाव में बीजेपी को 240 सीटें मिलने के बाद नई सरकार के इकबाल पर सवाल उठ रहे थे। 2019 में बड़ी जीत हासिल करने के तुरंत बाद केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया था और इसके अलावा नागरिकता संशोधन कानून और किसान बिल जैसी बड़ी पहल की थी। अब तीसरे टर्म में एक देश, एक चुनाव की दिशा में पहल कर केंद्र सरकार निरंतरता का संदेश देना चाहती है।
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