कोलकाता : पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने पश्चिम बंगाल का अपराजिता बिल वापस कर दिया है। उन्होंने इस बिल को यह कहते हुए बंगाल विधानसभा को वापस भेजा है कि इस पर फिर से विचार करें। बंगाल राजभवन के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार ने ममता बनर्जी सरकार के इस बिल में कुछ बातों पर गंभीर आपत्तियां जताई हैं और उन्होंने इन्हें बदलने को कहा है। ये आपत्तियां भारतीय न्याय संहिता (BNS) में प्रस्तावित बदलावों को लेकर हैं।
केंद्र सरकार ने कहा है कि अपराजिता महिला एवं बाल बिल सितंबर 2024 में पास हुआ था। उसमें BNS की कई धाराओं के तहत रेप के मामलों में सजा के प्रावधानों में बदलाव किए गए हैं। केंद्र का मानना है कि बिल में प्रस्तावित सजाएं बहुत कठोर और अनुपातहीन हैं।
धारा 64 को लेकर विवादसूत्रों की मानें तो विवाद का मुख्य मुद्दा BNS की धारा 64 में किया गया संशोधन है। बंगाल सरकार के बिल में रेप के लिए न्यूनतम सजा 10 साल से बढ़ाकर दोषी को आजीवन कारावास या मौत का सजा देने का प्रस्ताव है। केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) का मानना है कि यह सजा बहुत ज्यादा सख्त है और यह अपराध की गंभीरता के अनुपात में नहीं है।
केंद्र को इन धाराओं से भी आपत्तिएक और बदलाव जिस पर गृह मंत्रालय ने आपत्ति जताई है, वह है BNS की धारा 65 को हटाना। बीएनएस की यह धारा नाबालिगों के साथ यौन उत्पीड़न के लिए सख्त सजा का प्रावधान करती है। केंद्र सरकार का मानना है कि इस धारा को हटाने से कमजोर वर्गों के लिए सुरक्षा कम हो जाएगी और रेप कानूनों में उम्र के आधार पर किए गए वर्गीकरण का उद्देश्य कमजोर हो जाएगा। केंद्र सरकार को सबसे ज्यादा परेशानी धारा 66 से है। इस धारा में यह प्रावधान रखा गया है कि रेप के मामले में अगर पीड़िता की मौत हो जाती है या वह कोमा में चली जाती है तो दोषी को मृत्युदंड अनिवार्य होगा।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस पर संवैधानिक चिंताएं जताई हैं। सूत्रों के अनुसार, उनका कहना है कि इस तरह के कानून से सजा सुनाने में न्यायाधीशों का विवेक खत्म हो जाएगा। इसके अलावा स्थापित कानूनी मानदंडों और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन भी होगा।
आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र का भी रुका है बिलवहां बंगाल सरकार का कहना है कि उन्हें अभी तक केंद्र सरकार या राजभवन से इन आपत्तियों के बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई है। अपराजिता जैसे बिल जैसे कानून अन्य राज्यों में पहले से लागू हैं। उन्होंने आंध्र प्रदेश दिशा बिल 2019 और महाराष्ट्र शक्ति बिल 2020 का जिक्र किया। इन बिल में रेप और गैंगरेप के सभी मामलों में अनिवार्य मृत्युदंड का प्रावधान था, राज्य विधानसभाओं ने इन्हें सर्वसम्मति से पारित किया। इन बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली।
केंद्र सरकार ने कहा है कि अपराजिता महिला एवं बाल बिल सितंबर 2024 में पास हुआ था। उसमें BNS की कई धाराओं के तहत रेप के मामलों में सजा के प्रावधानों में बदलाव किए गए हैं। केंद्र का मानना है कि बिल में प्रस्तावित सजाएं बहुत कठोर और अनुपातहीन हैं।
धारा 64 को लेकर विवादसूत्रों की मानें तो विवाद का मुख्य मुद्दा BNS की धारा 64 में किया गया संशोधन है। बंगाल सरकार के बिल में रेप के लिए न्यूनतम सजा 10 साल से बढ़ाकर दोषी को आजीवन कारावास या मौत का सजा देने का प्रस्ताव है। केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) का मानना है कि यह सजा बहुत ज्यादा सख्त है और यह अपराध की गंभीरता के अनुपात में नहीं है।
केंद्र को इन धाराओं से भी आपत्तिएक और बदलाव जिस पर गृह मंत्रालय ने आपत्ति जताई है, वह है BNS की धारा 65 को हटाना। बीएनएस की यह धारा नाबालिगों के साथ यौन उत्पीड़न के लिए सख्त सजा का प्रावधान करती है। केंद्र सरकार का मानना है कि इस धारा को हटाने से कमजोर वर्गों के लिए सुरक्षा कम हो जाएगी और रेप कानूनों में उम्र के आधार पर किए गए वर्गीकरण का उद्देश्य कमजोर हो जाएगा। केंद्र सरकार को सबसे ज्यादा परेशानी धारा 66 से है। इस धारा में यह प्रावधान रखा गया है कि रेप के मामले में अगर पीड़िता की मौत हो जाती है या वह कोमा में चली जाती है तो दोषी को मृत्युदंड अनिवार्य होगा।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस पर संवैधानिक चिंताएं जताई हैं। सूत्रों के अनुसार, उनका कहना है कि इस तरह के कानून से सजा सुनाने में न्यायाधीशों का विवेक खत्म हो जाएगा। इसके अलावा स्थापित कानूनी मानदंडों और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन भी होगा।
आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र का भी रुका है बिलवहां बंगाल सरकार का कहना है कि उन्हें अभी तक केंद्र सरकार या राजभवन से इन आपत्तियों के बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई है। अपराजिता जैसे बिल जैसे कानून अन्य राज्यों में पहले से लागू हैं। उन्होंने आंध्र प्रदेश दिशा बिल 2019 और महाराष्ट्र शक्ति बिल 2020 का जिक्र किया। इन बिल में रेप और गैंगरेप के सभी मामलों में अनिवार्य मृत्युदंड का प्रावधान था, राज्य विधानसभाओं ने इन्हें सर्वसम्मति से पारित किया। इन बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली।
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