भोपाल: भारत दुनिया में पहली बार बाघों को दूसरे देश में बसाने जा रहा है। यह काम कंबोडिया में होगा। करीब दस साल पहले कंबोडिया से बाघ खत्म हो गए थे। अब भारत वहां बाघों को फिर से बसाएगा। भारत और कंबोडिया के बीच एक समझौता हुआ है। इसके तहत भारत लगभग छह बाघों को कंबोडिया के कार्डमोम पहाड़ों में भेजेगा। कंबोडिया में 2016 में बाघों को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। यह पहली बार है जब बाघों को एक देश से दूसरे देश में बसाया जा रहा है। भारत ने पहले भी पन्ना में ऐसा किया था। वहां 2009 में बाघों को फिर से बसाया गया था।
बाघों को भेजने की तैयारी चल रही है। वन्यजीव वैज्ञानिक मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में जगह देख रहे हैं। मध्य प्रदेश में भारत के सबसे ज्यादा बाघ हैं। 2022 की गिनती के अनुसार, यहां 3682 में से 785 बाघ हैं। इसलिए मध्य प्रदेश को सबसे आगे माना जा रहा है। यहां कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच जैसे बड़े बाघ अभ्यारण्य हैं।
बाघों को चाहिए ऐसा वातावरण
भारत ने 2022 में अफ्रीका से चीतों को भी लाया था। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बाघों को बसाने के लिए ज्यादा जगह और शिकार चाहिए। हर बाघ बहुत जरूरी है। ऐसे में क्या राज्य बाघों को देने के लिए तैयार होंगे? एक अधिकारी ने कहा कि कंबोडिया में बाघों को फिर से बसाने का भविष्य सही बाघों को चुनने पर निर्भर करता है। बाघों का चुनाव उनके जीन, व्यवहार और वातावरण के हिसाब से किया जाएगा।
सावधानी से लिया जा रहा जायजा
पहले यह योजना थी कि बाघों को 2024 के अंत तक भेज दिया जाएगा। लेकिन भारत सावधानी से काम ले रहा है। वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि कंबोडिया में बाघों के लिए सब कुछ ठीक हो। डॉ. कारंत जैसे विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कंबोडिया में शिकार और सुरक्षा ठीक नहीं रही, तो बाघों को बसाने का काम सफल नहीं होगा।
पर्याप्त भोजन बाघों की बड़ी जरूरत
डॉ. कारंत ने कहा कि कंबोडिया के उत्तरी मैदानों और मोंडुलकिरी जैसे प्रांतों में बहुत सारे जंगल हैं। लेकिन वहां शिकार खत्म हो गया है। सिर्फ शिकार के जानवर होने से काम नहीं चलेगा। बाघों को जिंदा रहने के लिए कम से कम 10-15 बड़े शाकाहारी जानवर चाहिए। इसका मतलब है कि कंबोडिया में बाघों के लिए पर्याप्त भोजन होना चाहिए।
बाघों को भेजने की तैयारी चल रही है। वन्यजीव वैज्ञानिक मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में जगह देख रहे हैं। मध्य प्रदेश में भारत के सबसे ज्यादा बाघ हैं। 2022 की गिनती के अनुसार, यहां 3682 में से 785 बाघ हैं। इसलिए मध्य प्रदेश को सबसे आगे माना जा रहा है। यहां कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच जैसे बड़े बाघ अभ्यारण्य हैं।
बाघों को चाहिए ऐसा वातावरण
भारत ने 2022 में अफ्रीका से चीतों को भी लाया था। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बाघों को बसाने के लिए ज्यादा जगह और शिकार चाहिए। हर बाघ बहुत जरूरी है। ऐसे में क्या राज्य बाघों को देने के लिए तैयार होंगे? एक अधिकारी ने कहा कि कंबोडिया में बाघों को फिर से बसाने का भविष्य सही बाघों को चुनने पर निर्भर करता है। बाघों का चुनाव उनके जीन, व्यवहार और वातावरण के हिसाब से किया जाएगा।
सावधानी से लिया जा रहा जायजा
पहले यह योजना थी कि बाघों को 2024 के अंत तक भेज दिया जाएगा। लेकिन भारत सावधानी से काम ले रहा है। वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि कंबोडिया में बाघों के लिए सब कुछ ठीक हो। डॉ. कारंत जैसे विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कंबोडिया में शिकार और सुरक्षा ठीक नहीं रही, तो बाघों को बसाने का काम सफल नहीं होगा।
पर्याप्त भोजन बाघों की बड़ी जरूरत
डॉ. कारंत ने कहा कि कंबोडिया के उत्तरी मैदानों और मोंडुलकिरी जैसे प्रांतों में बहुत सारे जंगल हैं। लेकिन वहां शिकार खत्म हो गया है। सिर्फ शिकार के जानवर होने से काम नहीं चलेगा। बाघों को जिंदा रहने के लिए कम से कम 10-15 बड़े शाकाहारी जानवर चाहिए। इसका मतलब है कि कंबोडिया में बाघों के लिए पर्याप्त भोजन होना चाहिए।
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