सीएसआईआर से की करियर की शुरुआत

अनूप कुमार सरमा असम के बिस्वनाथ चरियाली के रहने वाले हैं। उन्होंने 2002 में गुवाहाटी यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। अपने करियर की शुरुआत CSIR - नॉर्थ ईस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (पहले रीजनल रिसर्च लेबोरेटरी) में रिसर्च असिस्टेंट के तौर पर की। वहां उन्होंने पांच साल काम किया। इसके बाद उन्होंने 15 साल से ज्यादा एक NGO के साथ काम किया। इस दौरान उन्होंने अलग-अलग राज्यों और विदेशों में भी अनुभव प्राप्त किया।
100 एकड़ तक ऐसे फैला कारोबार
अपने करियर में आगे बढ़ते हुए अनूप ने महसूस किया कि आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है। इसी सोच के साथ उन्होंने मछली पालन में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने सिर्फ 10 एकड़ जमीन से शुरुआत की थी। आज उनका कारोबार 100 एकड़ में फैल गया है। इसमें मुख्य रूप से कार्प और कैटफिश, मांगुर और कोई जैसी महंगी मछलियों की खेती होती है। मछली पालन के साथ अनूप फिश स्पॉन (मछली के बीज) प्रोडक्शन यूनिट भी चलाते हैं। इससे वह हर साल एक करोड़ से ज्यादा मछली के बीज पैदा करते हैं। उनके स्पॉन भारत के 10 से ज्यादा राज्यों में भेजे जाते हैं। इससे मछली पालन उद्योग को बढ़ने और टिकाऊ बनाने में मदद मिलती है। असम में ज्यादा बारिश और बाढ़ आती है। इसलिए यह राज्य मछली के लिए आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों पर निर्भर था। लेकिन, अनूप की पहल ने इस निर्भरता को खत्म किया है।
हजारों को सिखाया है मछली पालन
अनूप ने मछली उत्पादन के साथ एक और बड़ी समस्या का समाधान किया है। यह समस्या है मछली के भोजन की ज्यादा कीमत। उन्होंने देखा कि बाजार में मिलने वाला मछली का भोजन बहुत महंगा होता है। इसलिए उन्होंने अपना खुद का भोजन उत्पादन यूनिट शुरू किया। इससे वह हर साल 200 टन मछली का भोजन बनाते हैं। इससे न सिर्फ उनकी लागत कम हुई है, बल्कि दूसरे मछली किसानों को भी फायदा हुआ है। अनूप का कारोबार सिर्फ पैसे कमाने के बारे में नहीं है। यह दूसरों को सशक्त बनाने के बारे में भी है। वह इच्छुक मछली किसानों को ट्रेनिंग और मार्गदर्शन देते हैं। उनका लक्ष्य है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को मछली पालन में सफल होने के लिए जरूरी कौशल और ज्ञान मिले। अब तक वह 2,000 से ज्यादा लोगों को मछली पालन सिखा चुके हैं।
3 करोड़ रुपये का टर्नओवर
अनूप ने CSIR लैब में वैज्ञानिक के तौर पर काम किया है। इसलिए वह 'लैब टू लैंड' की अवधारणा में विश्वास रखते हैं। इसका मतलब है कि वैज्ञानिक रिसर्च का फायदा सीधे किसानों को मिलना चाहिए। लेकिन, रिसर्च संस्थानों और किसानों के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान में अभी भी कमी है। इसी वजह से उन्होंने मछली पालन का कारोबार शुरू करने का फैसला किया। उनकी पहल से किसानों तक वैज्ञानिक तकनीक पहुंच रही है। बहुत से लोग कम सैलरी वाली नौकरी से संतुष्ट हो जाते हैं। लेकिन, अनूप जैसे उद्यमी इस सोच को बदल रहे हैं। भारत और विदेश में काम करने के बाद उन्होंने अपने राज्य में वापस आकर कुछ ऐसा करने का फैसला किया जिससे लोगों को फायदा हो। आज उनका सालाना मछली उत्पादन 100 टन है। उनके कारोबार का टर्नओवर 3 करोड़ रुपये है।
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