नई दिल्ली: दिल्ली और एनसीआर ही नहीं बल्कि देशभर में पुरानी गाड़ियों की खरीद-फरोख्त में भारी लापरवाही बरती जा रही है। लाल किला कार धमाके में हरियाणा नंबर की जिस आई-20 कार का इस्तेमाल किया गया था। उसमें भी खरीदार को गाड़ी आधिकारिक रूप से ट्रांसफर नहीं हुई थी। अधिकतर लोकल कार डीलर तो इस गोरखधंधे को करते ही हैं।
ऐसे काम में लगी कुछ प्रतिष्ठित कंपनियां भी इस तरह की लापरवाही बरत रहीं हैं। जिसमें एजेंसियों की तरफ से दूसरे लोगों को कार बेचने वाले का आधार कार्ड और पैन कार्ड तक लीक कर रही हैं। इस तरह से ना जाने कितने लोगों की कार गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल लोगों तक पहुंच रही हैं। जिसकी उन्हें भनक तक नहीं।
अथॉरिटी की तरफ से नहीं हो रही जांच
इस धंधे में अथॉरिटी की तरफ से कागजों की कोई जांच नहीं की जा रही। एक्सपर्ट का कहना है कि पुरानी कारों को खरीदने वालों का भी बाकायदा प्रॉपर वेरिफिकेशन होना चाहिए। जिससे पता लग सके कि कार का असल मालिक कौन है। इसी तरह के एक मामले में सोशल मीडिया एक्स पर एक यूजर ने लिखा भी कि जिस तरह से रेड फोर्ट ब्लास्ट में कार का इस्तेमाल किया गया। उसे देखकर पुरानी कारों की बिक्री के तरीके पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। स्थानीय एजेंसियों ही नहीं बल्कि प्रतिष्ठित एजेंसियां भी आपको डरा सकती हैं।
एजेंसी की मिलीभगत
उन्होंने लिखा कि जब उनकी डीजल कार 10 साल की हो गई। तो उन्होंने उसे 2023 में बेच दिया। एजेंसी ने उनसे यह कहते हुए खाली ट्रांसफर कागजात पर हस्ताक्षर करवा लिए कि यह ट्रांसफर हो जाएगी। लेकिन कुछ ही दिनों में उन्हें गुजरात से कोई मिस्टर खान के रूप में पहचान बताने वाले अलग-अलग लोगों के फोन आने लगे। हर दिन एक नया आदमी फोन करता था।
उनके पास उनका आधार कार्ड और पैन कार्ड भी पहुंच गया था। जो उन्होंने एजेंसी को दिया था। वह लीक हो गया था। वे चाहते थे कि मैं आरटीओ गुरुग्राम में उपस्थित रहूं ताकि कार उनके नाम पर ट्रांसफर करने के लिए एनओसी दे सकूं। लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि कार उन्होंने एक एजेंसी को ट्रांसफर की है। फिर धमकियां, बहस होने लगी और अचानक एक दिन सब शोर बंद हो गया। पता नहीं आज वह कार किसके पास है और वे उसके साथ क्या कर रहे हैं।
पुरानी कारों की खरीद-फरोख्त भी एक बड़ा धंधा
मामले में ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट और एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसपोर्ट डेवलपमेंट के सीनियर फैकल्टी अनिल छिकारा कहते हैं कि असल में पुरानी कारों की खरीद-फरोख्त का भी एक बड़ा धंधा है। जिसका इस्तेमाल कई तरह से किया जा रहा है। इसमें जिन कारों का चालान, फिटनेस, पॉल्यूशन सर्टिफिकेट या अन्य कागजी कार्रवाई पूरी नहीं होती और इन पुरानी कारों को इनके मालिक बेचना चाहते हैं तो ऐसी कारों को पुरानी कारों की खरीद-फरोख्त का काम करने वालों को बेच दिया जाता है। इसमें कोई कागजी कार्रवाई नहीं होती।
जबकि ऐसे भी कुछ मामले होते हैं। जिसमें कार बेचने वाले से साइन कराकर बोल दिया जाता है कि उनकी कार को ट्रांसफर करा दिया जाएगा। लेकिन कार को ट्रांसफर नहीं कराया जाता। पुरानी कारों के पुर्जे भी बेचे जाते हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि कायदे में पुरानी कारों की खरीद-फरोख्त में भी खरीदार की केवाईसी होनी चाहिए। जिसमें खरीदार की पहचान साबित होती हो।
ऐसे काम में लगी कुछ प्रतिष्ठित कंपनियां भी इस तरह की लापरवाही बरत रहीं हैं। जिसमें एजेंसियों की तरफ से दूसरे लोगों को कार बेचने वाले का आधार कार्ड और पैन कार्ड तक लीक कर रही हैं। इस तरह से ना जाने कितने लोगों की कार गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल लोगों तक पहुंच रही हैं। जिसकी उन्हें भनक तक नहीं।
अथॉरिटी की तरफ से नहीं हो रही जांच
इस धंधे में अथॉरिटी की तरफ से कागजों की कोई जांच नहीं की जा रही। एक्सपर्ट का कहना है कि पुरानी कारों को खरीदने वालों का भी बाकायदा प्रॉपर वेरिफिकेशन होना चाहिए। जिससे पता लग सके कि कार का असल मालिक कौन है। इसी तरह के एक मामले में सोशल मीडिया एक्स पर एक यूजर ने लिखा भी कि जिस तरह से रेड फोर्ट ब्लास्ट में कार का इस्तेमाल किया गया। उसे देखकर पुरानी कारों की बिक्री के तरीके पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। स्थानीय एजेंसियों ही नहीं बल्कि प्रतिष्ठित एजेंसियां भी आपको डरा सकती हैं।
एजेंसी की मिलीभगत
उन्होंने लिखा कि जब उनकी डीजल कार 10 साल की हो गई। तो उन्होंने उसे 2023 में बेच दिया। एजेंसी ने उनसे यह कहते हुए खाली ट्रांसफर कागजात पर हस्ताक्षर करवा लिए कि यह ट्रांसफर हो जाएगी। लेकिन कुछ ही दिनों में उन्हें गुजरात से कोई मिस्टर खान के रूप में पहचान बताने वाले अलग-अलग लोगों के फोन आने लगे। हर दिन एक नया आदमी फोन करता था।
उनके पास उनका आधार कार्ड और पैन कार्ड भी पहुंच गया था। जो उन्होंने एजेंसी को दिया था। वह लीक हो गया था। वे चाहते थे कि मैं आरटीओ गुरुग्राम में उपस्थित रहूं ताकि कार उनके नाम पर ट्रांसफर करने के लिए एनओसी दे सकूं। लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि कार उन्होंने एक एजेंसी को ट्रांसफर की है। फिर धमकियां, बहस होने लगी और अचानक एक दिन सब शोर बंद हो गया। पता नहीं आज वह कार किसके पास है और वे उसके साथ क्या कर रहे हैं।
पुरानी कारों की खरीद-फरोख्त भी एक बड़ा धंधा
मामले में ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट और एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसपोर्ट डेवलपमेंट के सीनियर फैकल्टी अनिल छिकारा कहते हैं कि असल में पुरानी कारों की खरीद-फरोख्त का भी एक बड़ा धंधा है। जिसका इस्तेमाल कई तरह से किया जा रहा है। इसमें जिन कारों का चालान, फिटनेस, पॉल्यूशन सर्टिफिकेट या अन्य कागजी कार्रवाई पूरी नहीं होती और इन पुरानी कारों को इनके मालिक बेचना चाहते हैं तो ऐसी कारों को पुरानी कारों की खरीद-फरोख्त का काम करने वालों को बेच दिया जाता है। इसमें कोई कागजी कार्रवाई नहीं होती।
जबकि ऐसे भी कुछ मामले होते हैं। जिसमें कार बेचने वाले से साइन कराकर बोल दिया जाता है कि उनकी कार को ट्रांसफर करा दिया जाएगा। लेकिन कार को ट्रांसफर नहीं कराया जाता। पुरानी कारों के पुर्जे भी बेचे जाते हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि कायदे में पुरानी कारों की खरीद-फरोख्त में भी खरीदार की केवाईसी होनी चाहिए। जिसमें खरीदार की पहचान साबित होती हो।
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