तेल अवीव: इजरायल के हाइफा शहर में भारतीय सैनिकों को याद किया गया है। इन सैनिकों ने प्रथम विश्व युद्ध में यानी अब से 107 साल पहले ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ हाइफा में लड़ाई लड़ी थी। हाइफा में तुर्की के ओटोमन साम्राज्य की सेना को हराने वाले भारतीय सैनिक ही थे। यह वह समय था, जब भारत पर ब्रिटिश का शासन था। ऐसे में इसका श्रेय ब्रिटेन को मिला। हालांकि अब हाइफा के मेयर ने स्पष्टतौर पर कहा है कि हाइफा को ब्रिटिश नहीं बल्कि भारतीयों ने मुक्त कराया था, जिसने पूरे क्षेत्र का नक्शा बदल दिया।
इजरायली शहर हाइफा प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शहर को ओटोमन शासन से मुक्त कराने में भारतीय सैनिकों की भूमिका को औपचारिक रूप से पहचान देने का फैसला लिया है। शहर के मेयर ने स्कूल के किताबों में भारतीय सैनिकों के इस योगदान को शामिल करने का ऐलान किया है। स्थानीय ऐतिहासिक सोसायटी के नए शोध के आधार पर ये बदलाव किया जाएगा। ये रिसर्च बताती है कि किस बहादुरी से भारतीय सैनिकों ने लड़ाई लड़ी और असंभव को संभव कर दिखाया।
हाइफा में लड़े भारतीय सैनिकहाइफा में स्कूली किताबों में बदलाव मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर लांसर्स की वीरता पर प्रकाश डालता है। इन्होंने सितंबर, 1918 को हाइफा में ओटोमन सेना से लड़ाई लड़ी थी। भालों और तलवारों से लैस भारतीय घुड़सवार रेजिमेंटों ने माउंट कार्मेल की चट्टानी ढलानों से ओटोमन सेनाओं को खदेड़कर शहर को आजाद कराया। इस लड़ाई को ज्यादातर इतिहासकार 'इतिहास का आखिरी घुड़सवार अभियान' कहते हैं।
हाइफा में लड़ने वाले मेजर दलपत सिंह को हाइफा का हीरो कहा जाता है। उनको बहादुरी के लिए मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। इस युद्ध में भारतीयों की घुड़सवार सेना ने दुनिया के हैरान करते हुए किलेबंद शहर हाइफा पर कब्जा किया था। इससे हाइफा ब्रिटिश और सहयोगियों के नियंत्रण में आ गया और पूरे क्षेत्र में उनको इसका लाभ हुआ। भारतीय सैनिकों की यह जीत आज भी इतिहासकारों को अचंभित करती है।
प्रथम विश्व युद्ध में भारत के सैनिकभारतीय सेना की 15वीं इंपीरियल कैवलरी ब्रिगेड के सैनिकों ने हाइफा को 23 सितंबर 1918 को अपने कब्जे में लिया था। इसमें मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर की रियासतों से ली गई भारतीय घुड़सवार सेना रेजिमेंट ने मशीनगनों और तोपखाने से लैस तुर्क सेना पर हमला किया था। भारतीय सैनिकों की इस जीत ने ओटोमन साम्राज्य को बेहद कमजोर कर दिया। हाइफा गंवाने के बाद कुछ समय बाद ही ओटोमन साम्राज्य टूट गया था।
प्रथम विश्व युद्ध में 74,000 से ज्यादा भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी, जो उस वक्त ब्रिटिश आर्मी से लड़ रहे थे। इनमें 4,000 से ज्यादा फौजियों की जान पश्चिम एशिया में गई। इनमें से बहुत से सैनिकों की कब्रें इजरायल के हाइफा, यरुशलम और रामले शहरों के युद्ध कब्रिस्तानों में संरक्षित हैं। हाइफा आज इजरायल का एक बंदरगाह शहर है, जो तेल अवीव से 90 किमी दूर है।
इजरायली शहर हाइफा प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शहर को ओटोमन शासन से मुक्त कराने में भारतीय सैनिकों की भूमिका को औपचारिक रूप से पहचान देने का फैसला लिया है। शहर के मेयर ने स्कूल के किताबों में भारतीय सैनिकों के इस योगदान को शामिल करने का ऐलान किया है। स्थानीय ऐतिहासिक सोसायटी के नए शोध के आधार पर ये बदलाव किया जाएगा। ये रिसर्च बताती है कि किस बहादुरी से भारतीय सैनिकों ने लड़ाई लड़ी और असंभव को संभव कर दिखाया।
हाइफा में लड़े भारतीय सैनिकहाइफा में स्कूली किताबों में बदलाव मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर लांसर्स की वीरता पर प्रकाश डालता है। इन्होंने सितंबर, 1918 को हाइफा में ओटोमन सेना से लड़ाई लड़ी थी। भालों और तलवारों से लैस भारतीय घुड़सवार रेजिमेंटों ने माउंट कार्मेल की चट्टानी ढलानों से ओटोमन सेनाओं को खदेड़कर शहर को आजाद कराया। इस लड़ाई को ज्यादातर इतिहासकार 'इतिहास का आखिरी घुड़सवार अभियान' कहते हैं।
हाइफा में लड़ने वाले मेजर दलपत सिंह को हाइफा का हीरो कहा जाता है। उनको बहादुरी के लिए मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। इस युद्ध में भारतीयों की घुड़सवार सेना ने दुनिया के हैरान करते हुए किलेबंद शहर हाइफा पर कब्जा किया था। इससे हाइफा ब्रिटिश और सहयोगियों के नियंत्रण में आ गया और पूरे क्षेत्र में उनको इसका लाभ हुआ। भारतीय सैनिकों की यह जीत आज भी इतिहासकारों को अचंभित करती है।
प्रथम विश्व युद्ध में भारत के सैनिकभारतीय सेना की 15वीं इंपीरियल कैवलरी ब्रिगेड के सैनिकों ने हाइफा को 23 सितंबर 1918 को अपने कब्जे में लिया था। इसमें मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर की रियासतों से ली गई भारतीय घुड़सवार सेना रेजिमेंट ने मशीनगनों और तोपखाने से लैस तुर्क सेना पर हमला किया था। भारतीय सैनिकों की इस जीत ने ओटोमन साम्राज्य को बेहद कमजोर कर दिया। हाइफा गंवाने के बाद कुछ समय बाद ही ओटोमन साम्राज्य टूट गया था।
प्रथम विश्व युद्ध में 74,000 से ज्यादा भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी, जो उस वक्त ब्रिटिश आर्मी से लड़ रहे थे। इनमें 4,000 से ज्यादा फौजियों की जान पश्चिम एशिया में गई। इनमें से बहुत से सैनिकों की कब्रें इजरायल के हाइफा, यरुशलम और रामले शहरों के युद्ध कब्रिस्तानों में संरक्षित हैं। हाइफा आज इजरायल का एक बंदरगाह शहर है, जो तेल अवीव से 90 किमी दूर है।
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