बिहार में वोटर लिस्ट को लेकर चल रही उठा-पटक के बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फ़ैसला सुनाया है,जिससे लाखों लोगों को बड़ी राहत मिली है। अब कोई भी व्यक्ति जिसका नाम वोटर लिस्ट से हट गया है या जिसे नया नाम जुड़वाना है,वह पहचान के तौर पर अपने आधार कार्ड का इस्तेमाल कर सकेगा। साथ ही,चुनाव आयोग को यह भी निर्देश दिया गया है कि लोग घर बैठे ऑनलाइन आवेदन कर सकें,उन्हें दफ्तरों के चक्कर काटने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए।क्या था पूरा मामला?दरअसल,चुनाव आयोग ने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट का'विशेष गहन पुनरीक्षण' (Special Intensive Revision - SIR)शुरू किया था। इसके तहत उन लोगों से नागरिकता के सबूत मांगे जा रहे थे जो2003की मतदाता सूची में नहीं थे। मुश्किल यह थी कि चुनाव आयोग पहचान के लिए11तरह के दस्तावेज़ तो मान रहा था,लेकिन उनमें आधार कार्ड शामिल नहीं था। आज के समय में जब आधार सबसे ज़रूरी पहचान पत्र बन चुका है,इस फ़ैसले से कई लोग परेशान थे।इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर की गई थीं। कोर्ट ने लोगों की इस परेशानी को समझा और चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने या किसी भी तरह की आपत्ति दर्ज कराने के लिए आधार कार्ड को भी मान्य दस्तावेज़ माना जाए।ऑनलाइन आवेदन की सुविधाअदालत ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि पूरी प्रक्रिया'मतदाता के अनुकूल'होनी चाहिए। कई लोगों के नाम मसौदा वोटर लिस्ट से हटा दिए गए थे। अब वे सभी लोग बिना किसी ऑफिस के चक्कर काटे,सीधे ऑनलाइन अपना नाम जुड़वाने के लिए आवेदन दे सकते हैं। यह एक बहुत बड़ा कदम है,जिससे आम आदमी का समय और पैसा दोनों बचेगा।राजनीतिक दलों को भी दी नसीहतसुनवाई के दौरान एक और दिलचस्प बात सामने आई। चुनाव आयोग ने बताया कि इस प्रक्रिया में85,000नए मतदाता जोड़े गए,लेकिन राजनीतिक दलों की तरफ़ से सिर्फ़ दो ही आपत्तियाँ आईं। इस पर कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि यह काम तो असल में राजनीतिक कार्यकर्ताओं का है। अदालत ने राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे अपने बूथ लेवल एजेंटों (BLA)को लोगों की मदद करने के लिए कहें,ताकि जिनका नाम कट गया है,वे आसानी से अपना नाम वापस जुड़वा सकें।यह फ़ैसला सिर्फ़ बिहार के लिए ही नहीं,बल्कि एक तरह से पूरे देश के लिए एक नज़ीर है कि कैसे चुनावी प्रक्रियाओं को आम आदमी के लिए और ज़्यादा आसान और सुविधाजनक बनाया जा सकता है।
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