भारत ने अपने सपने ‘गगनयान’ मिशन की राह में एक और बड़ी कामयाबी हासिल कर ली है। इसरो (ISRO) ने आज उस सिस्टम का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया है जो अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले हमारे यात्रियों की जान बचाएगा। सरल शब्दों में कहें तो, यह एक ‘ड्रेस रिहर्सल’ थी यह देखने के लिए कि अगर लॉन्च के दौरान कोई गड़बड़ी हो जाए, तो हमारे अंतरिक्ष यात्रियों (गगनॉट्स) को सुरक्षित बचाया जा सकता है या नहीं। और भारत इस परीक्षा में पूरी तरह पास हुआ है!
क्या था यह टेस्ट और यह इतना ज़रूरी क्यों था?इसरो ने श्रीहरिकोटा से एक टेस्ट रॉकेट लॉन्च किया। इस रॉकेट के ऊपर असली ‘क्रू मॉड्यूल’ (वही कैप्सूल जिसमें अंतरिक्ष यात्री बैठेंगे) को लगाया गया था। इस मॉड्यूल के अंदर भारत की महिला ह्यूमनॉइड रोबोट ‘व्योमित्र’ भी मौजूद थी।
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मिशन का मकसद: यह जांचना था कि अगर रॉकेट में कोई खराबी आती है, तो क्या क्रू मॉड्यूल अपने आप रॉकेट से अलग होकर, पैराशूट की मदद से धीरे-धीरे और सुरक्षित रूप से धरती पर लौट सकता है।
- कैसे हुआ यह सब:
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रॉकेट लगभग 12 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचा।
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वहां पहुंचने पर, ठीक योजना के अनुसार, क्रू मॉड्यूल तेजी से रॉकेट से अलग हो गया।
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इसके बाद, पहले छोटे और फिर तीन बड़े-बड़े पैराशूट एक-एक करके खुले।
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इन पैराशूट्स ने मॉड्यूल की गति को एकदम धीमा कर दिया, और उसने बंगाल की खाड़ी में बहुत आराम से ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की।
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वहां पहले से तैयार भारतीय नौसेना की टीम ने कैप्सूल को समुद्र से सुरक्षित बाहर निकाल लिया।
इस सफल परीक्षण का मतलब है कि भारत अब अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने और उन्हें सुरक्षित वापस लाने की तकनीक में महारत हासिल करने के बहुत करीब है। यह ‘गगनयान’ मिशन का सबसे महत्वपूर्ण और जटिल हिस्सा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसरो के वैज्ञानिकों को इस शानदार सफलता के लिए बधाई दी है। यह सिर्फ एक टेस्ट नहीं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के उस सपने की जीत है, जो जल्द ही किसी भारतीय को अंतरिक्ष में देखेगा।
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