मुंबई। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक बार फिर साथ आ गए हैं। उद्धव और राज ठाकरे के साथ आने के बाद महाराष्ट्र में सियासत नया रंग ले सकती है। इसकी वजह ये है कि इस साल बृहन्नमुंबई महानगर पालिका यानी बीएमसी समेत महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव होने वाले हैं। हालांकि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे अब तक महाराष्ट्र की सियासत में अकेले अपने दम पर झंडा फहराने में नाकाम रहे हैं।
उद्धव ठाकरे की बात करें, तो एकनाथ शिंदे गुट के अलग होने पर उन्होंने शिवसेना (यूबीटी) बनाई और कांग्रेस व एनसीपी के साथ लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव लड़े। 2024 के लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना (यूबीटी) ने 9 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, एकनाथ शिंदे की शिवसेना को महाराष्ट्र की 7 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई। शिंदे के मुकाबले अपनी पार्टी की ज्यादा सीटें आने से उद्धव ठाकरे उत्साह में आए, लेकिन कुछ महीने बाद महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव नतीजों ने उनके उत्साह पर पानी फेर दिया। महाराष्ट्र विधानसभा के पिछले चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) को 20 सीटें ही हासिल कर सकी। जबकि, एकनाथ शिंदे की शिवसेना के खाते में 57 सीटें गईं।
अब बात राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) की करते हैं। राज ठाकरे ने 2024 के लोकसभा चुनाव न लड़ने का फैसला कर बीजेपी का समर्थन किया था। एमएनएस की स्थापना राज ठाकरे ने 2006 में की थी। साल 2007 में बीएमसी के चुनाव में राज ठाकरे की एमएनएस ने 7 सीट हासिल की। फिर 2009 के लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे ने महाराष्ट्र की 11 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। इनमें से 10 सीट पर एमएनएस को 1.25 लाख से 1.50 लाख तक वोट मिले और उन सीटों पर शिवसेना की हार हुई। 2009 में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हुए, तो एमएनएस के 13 विधायक भी जीते। फिर 2012 के बीएमसी चुनाव में एमएनएस के 28 पार्षदों ने भी जीत हासिल की। नासिक में एमएनएस का मेयर तक बना, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे के सभी 10 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। फिर 2019 में एमएनएस ने लोकसभा चुनाव ही नहीं लड़ा। अगर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की बात करें, तो राज ठाकरे ने साल 2014 में अपनी पार्टी के 219 और 2019 में 101 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, लेकिन दोनों ही बार एमएनएस का सिर्फ 1-1 प्रत्याशी ही जीत सका।
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