हिंदू धर्म में जब ज्ञान, धर्म और सद्गुणों की बात आती है, तो सबसे पहले एक नाम आता है, बृहस्पति। बृहस्पति को देवताओं का गुरु कहा जाता है और वे नवग्रहों में सबसे प्रमुख ग्रह भी हैं। बृहस्पति को गुरु ग्रह भी कहा जाता है, जिनकी बुद्धि, नीति और वेदों के ज्ञान पर स्वयं इंद्र भी निर्भर हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बृहस्पति न केवल देवताओं के सलाहकार हैं, बल्कि उनका सीधा संबंध भगवान विष्णु से भी है?
गुरु बृहस्पति कौन हैं?
बृहस्पति ग्रह, जिन्हें गुरु, देवगुरु या ब्रह्मणस्पति भी कहा जाता है, अंगिरा ऋषि के पुत्र हैं और उनकी माता का नाम सुरूपा है। गुरु ग्रह के पुत्र का नाम कच है, जो शिक्षा प्राप्ति के लिए दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के आश्रम गए थे। गुरु ग्रह का स्वरूप पीला है, वक्षस्थल पर रत्नों की माला, कमंडल और वेदधारी हैं। इन्हें नवग्रहों में 'बृहस्पति ग्रह' का अधिपति माना जाता है और गुरुवार का दिन इन्हें समर्पित है। वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को ज्ञान, धर्म, शिक्षा, संतान, विवाह, न्याय और गुरु का कारक माना जाता है। इनकी शुभता से व्यक्ति को राज-सम्मान, संतान सुख और धार्मिक उन्नति प्राप्त होती है। बृहस्पति वृषभ, कर्क, धनु और मीन राशि में शुभ फल प्रदान करते हैं।
भगवान विष्णु के अंशावतार गुरु बृहस्पति
शास्त्रों के अनुसार, बृहस्पति को भगवान विष्णु का अंशावतार या उनका अंश माना जाता है। बृहस्पति धर्म, वेद, ज्ञान और नीति के देवता हैं और ये सभी गुण भगवान विष्णु के अंश हैं। भगवान विष्णु सहनशीलता, धैर्य, नीति और ज्ञान के स्वामी हैं; ये गुण बृहस्पति के माध्यम से संसार में कार्य करते हैं। वेदों में इन्हें वाणी का स्वामी, बुद्धि का जनक और शांति का दाता बताया गया है। देवताओं के सभी यज्ञों, निर्णयों, मंत्रों और युद्ध-नीति में गुरु बृहस्पति की सलाह अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
धर्म और नीति का संगम
जहाँ बृहस्पति धर्म और सदाचार के प्रतीक हैं, वहीं विष्णु धर्म के पोषक और रक्षक हैं। भगवान विष्णु के प्रत्येक अवतार में बृहस्पति के नीति और ज्ञान की छाया देखी जा सकती है। विष्णु के सहस्रनाम में भी 'बृहस्पतिः' नाम आता है, जिसका अर्थ है गुरु के समान। यह दर्शाता है कि भगवान विष्णु की लीलाओं में बृहस्पति का बौद्धिक मार्गदर्शन सदैव सम्मिलित रहा है। रामायण में ऋषि वशिष्ठ और महाभारत में कृष्ण के नीति पक्ष में जो धर्म और नीति का पक्ष आता है, वह ब्रह्मज्ञान की परंपरा से आता है, जिसके मूल में बृहस्पति का ज्ञान है। कुछ ग्रंथों में तो यह भी वर्णन है कि भगवान राम और श्रीकृष्ण ने अपने-अपने काल में गुरु बृहस्पति की पूजा करके मार्गदर्शन प्राप्त किया था।
गुरुवार को गुरु बृहस्पति की पूजा क्यों की जाती है?
गुरुवार बृहस्पति ग्रह को समर्पित है, जो विवाह, शिक्षा, नौकरी, धन और संतान के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। गुरु बृहस्पति की पूजा करने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है, वाणी में मधुरता और प्रभाव बढ़ता है। सरकारी नौकरी, शिक्षक या न्यायिक सेवा में सफलता मिलती है। कुंडली में बृहस्पति दोष से मुक्ति मिलती है, जिससे भाग्य का पूरा साथ मिलता है। साथ ही, दाम्पत्य जीवन में भी सामंजस्य बना रहता है, जिससे सभी प्रकार के तनावों से मुक्ति मिलती है।
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