उत्तर प्रदेश में जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत काम कर रही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने एक बार फिर अपने अधिकारियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाया है। मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक में अनुपस्थित रहने वाले पांच अधिकारियों को महंगा पड़ गया। मंडलायुक्त अनिल ढींगरा ने इन अधिकारियों का वेतन रोकने का आदेश जारी किया और सभी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए शासन को पत्र लिखा।
सूत्रों के अनुसार, यह कार्रवाई उन अधिकारियों के खिलाफ की गई जो समीक्षा बैठक में शामिल नहीं हुए। बैठक का उद्देश्य विभागों की प्रगति और सरकारी नीतियों के कार्यान्वयन की समीक्षा करना था। अनुपस्थित रहकर अधिकारियों ने न केवल बैठक की गंभीरता को नजरअंदाज किया, बल्कि शासन की कार्यप्रणाली में सुस्ती का संकेत भी दिया।
मंडलायुक्त अनिल ढींगरा ने स्पष्ट किया कि "सभी अधिकारी अपने कर्तव्यों के प्रति जवाबदेह होंगे। अनुपस्थिति जैसी घटनाओं को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई आवश्यक है।" उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम यह संदेश देता है कि सरकारी अधिकारियों के लिए जवाबदेही और समय पर उपस्थित होना अनिवार्य है। किसी भी बैठक में अनुपस्थित रहना न केवल सरकारी कामकाज में बाधा डालता है, बल्कि जनता के प्रति जिम्मेदारी का उल्लंघन भी माना जाता है।
सूत्रों ने बताया कि सभी पांच अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर दी गई है। इसमें उनकी अनुपस्थिति के कारण और नीतियों के पालन में कमी का विस्तृत विश्लेषण किया जाएगा। शासन के पत्र के बाद संबंधित विभागों को आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं।
स्थानीय प्रशासन ने भी इस कदम की सराहना की है। उनका कहना है कि यह कार्रवाई शासन की अनुशासन नीति और जीरो टॉलरेंस दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से दर्शाती है। इससे अधिकारियों में सतर्कता बढ़ेगी और सरकारी कामकाज की गुणवत्ता में सुधार आएगा।
इस घटना से यह संदेश मिलता है कि उत्तर प्रदेश सरकार अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के पालन में किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेगी। अधिकारियों की जिम्मेदारी के प्रति यह सख्त कदम सरकार की अनुशासन नीति की प्रभावशीलता को साबित करता है।
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