हम सभी के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जो हमारी आत्मा को झकझोर देते हैं — कुछ दुःखद अनुभव, रिश्तों की टूटन, दुर्घटनाएं या भावनात्मक आघात जो हमें अंदर तक तोड़ देते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन घटनाओं को वर्षों तक मन में संजोकर रखना हमारे मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर कितना गहरा असर डाल सकता है?
अतीत का बोझ और वर्तमान की बर्बादीजब हम अतीत की दुखद यादों को बार-बार याद करते हैं, तो हम न केवल उस पल को दोहराते हैं, बल्कि अपने वर्तमान को भी धीरे-धीरे खो देते हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि लगातार बीते हुए दर्द को मन में जीवित रखना, हमारे मस्तिष्क में स्ट्रेस हार्मोन ‘कॉर्टिसोल’ का स्तर बढ़ा देता है। इसका असर केवल मानसिक स्थिति पर नहीं, बल्कि शारीरिक बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, अनिद्रा, सिरदर्द और पाचन समस्याओं तक पहुंचता है।
भावनात्मक जंजीरों में जकड़ा मनकई लोग भावनात्मक स्तर पर इतने बंध जाते हैं कि उन्हें यह समझ ही नहीं आता कि वे कब डिप्रेशन, एंग्जायटी या ओवरथिंकिंग के शिकार हो चुके हैं। खासकर अगर कोई व्यक्ति धोखा, ग़लतफहमी या असफलता से गुजरा हो, तो वह इन घटनाओं को अपने आत्म-सम्मान और पहचान से जोड़ लेता है। धीरे-धीरे यह मानसिक स्थिति इतनी गहरी हो जाती है कि व्यक्ति नए रिश्तों, नई संभावनाओं और वर्तमान की खुशियों को पूरी तरह खो देता है।
सामाजिक और पारिवारिक जीवन पर असरअतीत का ग़म केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, यह उसके रिश्तों, परिवार और सामाजिक व्यवहार पर भी असर डालता है। जिन लोगों में नकारात्मक अनुभवों की स्मृति अधिक प्रबल होती है, वे अक्सर क्रोध, चिड़चिड़ापन और संवादहीनता के शिकार हो जाते हैं। इससे रिश्तों में दरार आ जाती है और कई बार तो ये दरारें स्थायी रूप से संबंधों को खत्म कर देती हैं।
कैसे बनती है ये स्मृतियाँ एक मानसिक रोगआधुनिक समय में PTSD (पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) एक गंभीर मानसिक रोग बन चुका है, जिसका कारण ही है — अतीत की कोई भयावह घटना जो बार-बार दिमाग में घूमती रहती है। कई बार बचपन की यातनाएं, घरेलू हिंसा, यौन शोषण या युद्ध जैसे अनुभव लंबे समय तक व्यक्ति को मानसिक रूप से बीमार बना सकते हैं। यदि समय रहते इन पर ध्यान न दिया जाए, तो व्यक्ति आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम भी उठा सकता है।
क्या है इससे बाहर निकलने का रास्ता?अतीत को भुलाना आसान नहीं है, लेकिन नामुमकिन भी नहीं। पहला कदम है — स्वीकार करना कि जो हुआ वो बीत चुका है, अब हम केवल उसके असर को खत्म कर सकते हैं। इसके लिए मेडिटेशन, काउंसलिंग, जर्नलिंग और सेल्फ-हेल्प बुक्स काफी मददगार हो सकते हैं। कई बार केवल अपनी भावनाओं को खुलकर किसी करीबी से साझा करना ही राहत का सबसे बड़ा जरिया बन जाता है।
धर्म और अध्यात्म से भी मिल सकती है राहतभारत की सांस्कृतिक परंपरा में अतीत से मुक्ति के लिए कई आध्यात्मिक उपाय बताए गए हैं। भगवद गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं — "जो हुआ, अच्छा हुआ। जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है। जो होगा, वो भी अच्छा ही होगा।" यह विचारधारा व्यक्ति को वर्तमान में जीने की प्रेरणा देती है और अतीत की स्मृतियों से मुक्त होने में सहायक बनती है।
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