हर व्यक्ति चाहता है कि वह कभी कर्ज में न फंसे। हालाँकि, कुछ कर्ज ऐसे होते हैं जो व्यक्ति पर जन्म से ही लग जाते हैं। शास्त्रों में पितृ ऋण, मातृ ऋण, ऋषि ऋण और देव ऋण के बारे में विस्तार से बताया गया है। ये चारों ऋण जन्म से ही लग जाते हैं और इन्हें चुकाना अनिवार्य है। यदि कोई व्यक्ति इन चारों ऋणों को समय पर नहीं चुका पाता है, तो वह जीवन भर परेशान रहता है। हालाँकि, कुछ उपायों से पितृ ऋण, मातृ ऋण, ऋषि ऋण और देव ऋण चुकाए जा सकते हैं।
आज के कालचक्र में कुंडली विशेषज्ञ पंडित सुरेश पांडे आपको बताएंगे कि कैसे कोई व्यक्ति यह जान सकता है कि उस पर पितृ ऋण, मातृ ऋण, ऋषि ऋण या देव ऋण है। साथ ही, इन्हें चुकाने के तरीके भी जानेंगे।
पितृ ऋण
पितृ ऋण माता-पिता और पूर्वजों का ऋण होता है, जिसे वंश को आगे बढ़ाने के लिए चुकाना आवश्यक होता है।
कुंडली में सूर्य का राहु, शनि या केतु के साथ युति।
राहु, शनि या केतु की सूर्य पर दृष्टि।
पंचमेश की अष्टम भाव में स्थिति।
कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य का होना।
संकट-
निःसंतानता।
बार-बार गर्भपात होना।
संतान होने के बाद भी बीमार रहना।
संतान की बुरी संगति में पड़ना।
संतान की मानसिक स्थिति ठीक नहीं होना।
समाज और परिवार में मान-सम्मान की कमी।
बार-बार नौकरी छूटना।
दुर्भाग्य के आगे हार न मानें।
परिवार के सदस्यों पर दुर्घटनाओं का साया।
बार-बार दुर्घटनाओं का शिकार होना।
उपाय-
अमावस्या तिथि पर मंदिर में दूध, चीनी, सफेद वस्त्र और धन दान करें।
पीपल के वृक्ष की 108 दिनों तक नियमित परिक्रमा करें।
श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध करें।
ग्रहण के समय दान-पुण्य करें।
यदि घर के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हो जाए तो उसका दान करें।
नवरात्रि में घर में दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
घर में पितृ दोष निवारण यंत्र स्थापित करें।
श्रीमद्भागवत, गरुड़ पुराण या रामचरितमानस का नियमित पाठ करें।
जनकल्याण के कार्य करें।
वृक्ष या जल दान करें।
ज़रूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करें।
गाय को हरा चारा खिलाएँ।
गया, त्र्यंबकेश्वर या हरिद्वार में पिंडदान करें।
हर अमावस्या को ज़रूरतमंदों को भोजन कराएँ और दान करें।
शाम को पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएँ और उसके पास दीपक जलाएँ।
बरगद, पीपल और तुलसी के पौधे लगाएँ। उनकी सेवा भी करें।
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