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कोरबा : सुशीला हो या मूलको बाई, तेंदूपत्ता के बढ़े दाम ने संग्राहकों में खुशियां जगाई

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गाँव-गाँव इन दिनों तेंदूपत्ता संग्रहण का चल रहा सिलसिला

कोरबा, 11 मई . इन दिनों सूरज की धूप बहुत तेज है. गाँव के अनेक तालाब में पानी कम है. खेत सूखे हुए हैं. दोपहर को भले ही गलियों में सन्नाटा पसरा है, फिर भी गाँव के उन अनगिनत लोगों में उत्साह है जो इन दिनों तेंदूपत्ता का संग्रहण करते हैं. उनका उत्साह सुबह से लेकर देर शाम तक है. आसपास के जंगलों में तेंदूपत्ता तोड़ाई करते ग्रामीण, गठरी या बोरे में बांधकर घर लौटते ग्रामीण या फिर घर की डेहरी, परछियों में एकजुट होकर तेंदू के पत्ते को बंडल बनाकर जमाते हुए, गाँव के किसी खुली जगह में फड़ प्रभारी की उपस्थिति में इन तेंदूपत्ता के गड्डी को एकबारगी क्रम से सजाते हुए अनायास नजर आ रहे हैं. गाँव के बच्चे, महिलाएं, युवा, बुजुर्ग सभी इस काम में लगे हुए हैं. उन्हें खुशी है कि इस हरे सोने के दाम बढ़ने से उनकी आमदनी भी बढ़ेगी और जितना ज्यादा संग्रहण होगा उतना ही अधिक राशि उन्हें मिलेगी. संग्रहणकर्ताओं में खुशी है कि अब तेंदूपत्ता प्रति मानक बोरा का दाम 4 हजार से 5500 रुपये प्रति मानक बोरा कर दिया गया है.

जिले के कोरबा और कटघोरा वनमंडल में बड़े भू भाग पर जंगल है. इन जंगलो में और गाँव के आसपास खुली जगहों में तेंदुपत्ता भी है. सरकार द्वारा तेंदूपत्ता संग्राहकों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन और राशि से वनांचल क्षेत्र में रहने वाले ज्यादातर परिवार तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य करते हैं. यह उनके आमदनी का प्रमुख स्रोत भी है. खासकर गर्मी के दिनों में जब कुछ काम नहीं होता तब तेंदूपत्ते के संग्रहण से उन्हें एक अतिरिक्त आय का जरिया मिल जाता है. ऐसे ही पोड़ी उपरोड़ा क्षेत्र के दूरस्थ ग्राम दम्हामुड़ा में रहने वाले आदिवासी परिवार देव प्रताप पोर्ते और उनकी पत्नी सुशीला पोर्ते बताते हैं कि आजकल अल सुबह से जंगल की ओर निकल जाते हैं. सिर्फ वे ही नहीं जाते, गाँव में रहने वाले ज्यादातर तेन्दूपत्ता तोड़ने वाले संग्राहक जाते हैं. सुशीला बताती है कि सुबह से दोपहर तक पत्ते तोड़ने का काम चलता है. इसके बाद इसे गठरी में बांधकर घर लाते हैं. दोपहर बाद खाना खाने के बाद फिर से काम शुरू होता है. तोड़े हुए तेंदूपत्ते को 50-50 पत्ते का बंडल बनाकर रखते हैं. पत्ते को साफ कर बंडल बनाया जाता है. घर के परछी पर बंडल बनाते हुए सुशीला के पति देव प्रताप का कहना है कि वे लोग बहुत ज्यादा दूर नहीं जाते. आसपास जंगल से पत्ता तोड़कर लाते हैं. परसा पेड़ के छाल से रस्सी बनाकर 50-50 पत्तो की गड्डी बनाते हैं.

सुशीला बाई ने बताया कि इस बार की तुलना में पिछले साल ज्यादा पत्ते नहीं तोड़ पाए थे. इस बार अभी से लगे हैं. महतारी वन्दन योजना से प्रति माह एक हजार रुपये प्राप्त करने वाली सुशीला बाई ने बताया कि अब 5500 रुपये प्रति मानक बोरा है. इससे उनकी आमदनी बढ़ेगी. पहले मेहनत भी ज्यादा करना पड़ता था और कीमत भी कम मिलती थी. अब दाम बढ़ने से मैं ही नहीं अन्य संग्राहक भी खुश है और बड़े उत्साह के साथ पत्ते तोड़ रहे हैं. उन्होंने बताया कि महतारी वन्दन योजना की राशि उनके बहुत काम आती है. तेन्दूपत्ता से जो राशि मिलेगी उसका उपयोग घर बनाने के लिए करने का मन बनाया है. अपने घर के आसपास तेन्दूपत्ता तोड़ने में व्यस्त मूलको बाई ने बताया कि वे जितना ज्यादा पत्ता तोड़ेगी उन्हें उतनी ही राशि मिलेगी. पहले 2500, फिर 4000 और अब 5500 रुपये प्रति मानक बोरा है. यह दूर-दराज में रहने वाले ग्रामीणों के आर्थिक आमदनी का महत्वपूर्ण जरिया है. दम्हा मुड़ा की ही रहने वाली मूलको बाई ने बताया कि रोज सुबह से तेन्दूपत्ता तोड़ने जंगल जाती है. इसे बंडल बनाकर रख रही है. उन्होंने बताया कि यह खुशी की बात है अब पहले से ज्यादा पैसा मिलेगा. सुशीला बाई ने बताया कि तेन्दूपत्ता संग्राहकों का कार्ड भी बना हुआ है. इसके माध्यम से बीमा सहित पढाई करने वाले बच्चों को छात्रवृत्ति की सुविधा भी है. इन संग्राहकों ने प्रति मानक बोरा में वृद्धि के लिए खुशियां जताते हुए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को धन्यवाद भी दिया.

/ हरीश तिवारी

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/ हरीश तिवारी

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